कुछ यही हो गया है यंग जनरेशन का हाल – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Mon, 12 Nov 2018 09:35:13 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 ‘कुछ भी कर सोशल मीडिया पर डाल’, कुछ यही हो गया है यंग जनरेशन का हाल http://www.shauryatimes.com/news/17796 Mon, 12 Nov 2018 09:35:13 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=17796

 कभी लोगों को कहते सुना जाता था, नेकी कर दरिया में डाल। अब लोग कहने लगे हैं कुछ भी कर सोशल मीडिया पर डाल। यहां केवल शब्दों में ही नहीं, हमारे व्यवहार और व्यक्तित्व में भी बदलाव आया है। इसकी मुख्य वजह लोगों में सोशल मीडिया का बहुत अधिक इस्तेमाल और लगातार बढ़ती पोस्ट करने की आदत है। कोई भी चीज एक सीमा तक ही सही रहती है। इसके बाद अपने दुष्परिणाम दिखाने लगती है। कुछ ऐसा ही हमारे साथ हो रहा है। इसके पीछे सोशल मीडिया पर पोस्ट की जाने वाले सेल्फी हैं, जिनका क्रेज पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। अब इसे लेकर किए गए एक अध्ययन में इसके दुष्परिणाम का भी जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि बहुत ज्यादा सेल्फी पोस्ट करने से लोगों में आत्ममुग्धता बढ़ती है। लोगों में यह बदलाव अच्छा संकेत नहीं है।  

ओपेन साइकोलॉजी नामक जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि शोधकर्ता एक विशेष अध्ययन के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 18 से 34 वर्ष के 74 लोगों पर निगरानी रखी और उनमें व्यक्तित्व यह बदलाव देखा। ब्रिटेन स्थित स्वांजी यूनिवर्सिटी और इटली की मिलान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से यह अध्ययन किया है।

शोधकर्ताओं ने ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचेट जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर प्रतिभागियों की गतिविधियों पर निगरानी रखी। शोधकर्ताओं का कहना है कि आत्ममुग्धता व्यक्तित्व की एक विशेषता है, जिसमें व्यक्ति अपने आपको बहुत अधिक प्रदर्शित करता है और स्वयं को हर चीज के हकदार के रूप में दिखाता है। साथ ही दूसरों को कमतर आंकता है।

शोधकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर प्रतिभागियों की गतिविधियों पर चार माह तक निगरानी रखी और पाया कि जिन प्रतिभागियों ने सोशल मीडिया का बहुत अधिक इस्तेमाल किया और अत्यधिक सेल्फी पोस्ट कीं उनमें आत्ममुग्धता के लक्षण में 25 फीसद का इजाफा देखने को मिला। मापक पैमाने का प्रयोग कर शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि ऐसे प्रतिभागियों में इस लक्षण का यह स्तर विकार के स्तर तक पहुंच गया। यह उनके व्यक्तित्व के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बुरा था।

अध्ययन में यह भी सामने आया कि प्रतिभागियों ने अपनी सेल्फी को सबसे ज्यादा फेसबुक पर पोस्ट किया। कुल सेल्फी की 60 फीसद सेल्फी फेसबुक पर, 25 फीसद इंस्टाग्राम पर और 13 फीसद ट्विटर, स्नैपचेट व अन्य साइट्स पर पोस्ट की गईं।

यह भी आया सामने

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी पता लगाया कि जो लोग ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइट का अपने विचार या शब्दों को पोस्ट करने के लिए अधिक प्रयोग करते हैं, उनमें इस तरह के लक्षण दिखाई नहीं दिए। यानी आत्ममुग्धता के लक्षण केवल बहुत अधिक सेल्फी पोस्ट करने वालों में ही सामने आए।

दो फीसद लोग इस बीमारी से ग्रस्त

बार-बार सेल्फी लेना और सुंदर दिखने के लिए फिल्टर्स का प्रयोग कर फोटो की एडिटिंग करना, अब ये शौक नहीं दिमागी बीमारी बनता जा रहा है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के आधार पर पता लगाया कि फोटो, खासकर सेल्फी में सुंदर दिखने वाले युवा शारीरिक कुरूपता संबंधी मानसिक विकार के शिकार हो रहे हैं। युवा पहले सेल्फी लेते हैं और फिर उन्हें फोटो पसंद न आए तो एडिटिंग के जरिये अपने लुक को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। बार-बार फोटो में सुंदर न दिखने पर लोग प्लास्टिक सर्जरी और अन्य थेरेपी की ओर रुख कर रहे हैं। कुल जनसंख्या में करीब दो प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं।

शल मीडिया को माना प्रामाणिक

शोध में सामने आया है कि बार-बार अपनी फोटो बदलने वाली और हाव-भाव बदल फोटो अपलोड करने वालीं लड़कियां मानती हैं कि सोशल मीडिया पर ही सुंदर दिखना वास्तव में सुंदर होना है। शोध में शामिल किए किए गए 55 प्रतिशत प्लास्टिक सर्जन का भी यही कहना है कि उनके पास सबसे ज्यादा ऐसे मरीज आ रहे हैं जो सेल्फी में सुंदर दिखना चाहते हैं।

दिखावे से बचें

नीलम वाशी का कहा है कि यह समस्या किशोरों के लिए बहुत खतरनाक है। चिकित्सकों को चाहिए कि वे अपने मरीजों को सोशल मीडिया के प्रभावों के बारे में बताएं और उनकी काउंसिलिंग करें। वहीं, उन्होंने सलाह दी है कि दिखावे को ज्यादा हावी न होने दें। दुनिया भर मे ऐसा ट्रेंड चल रहा है, जिसमें दिखावे खासकर सोशल मीडिया पर दिखावे को बहुत महत्व दिया जा रहा है। इसी के चलते लोग इस आभासी दुनिया को वास्तविक मानने लगे हैं। इसके परिणामस्वरूप बहुत से रोग उन्हें घेर रहे हैं। इन्हें खुद पर हावी होने से रोकना चाहिए।

सर्जरी नहीं है समाधान

बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल की नीलम वाशी का कहना है कि लोग स्नैपचैट डिस्मोर्फिया के शिकार हैं और वे अलग-अलग लुक में सुंदर दिखने के लिए सर्जरी करा रहे हैं। इसका समाधान सर्जरी नहीं है और सर्जरी से लुक और भी खराब होने का खतरा है। ऐसे लागों को सर्जरी के बजाय मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

]]>