गुड़ी पड़वा विशेष : गुड़ी बनाकर समझें अपनी देह और जीवन को – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Thu, 28 Mar 2019 04:52:42 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 गुड़ी पड़वा विशेष : गुड़ी बनाकर समझें अपनी देह और जीवन को http://www.shauryatimes.com/news/37081 Thu, 28 Mar 2019 04:52:42 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=37081
‘गुड़ी पड़वा’, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक। सोने की लंका जीत राम के अयोध्या लौटने का दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा। जब अयोध्यावासियों ने गुड़ी तोरण लगाकर अपनी खुशी का इजहार किया था। बस तभी से चैत्र प्रतिपदा पर गुड़ी की परंपरा का श्रीगणेश हुआ व यह दिन ‘गुड़ी पड़वा’ बतौर जाना गया।
‘गुड़ी पड़वा’ में अध्यात्म मंदिर के दरवाजे यानी मोक्ष द्वार का गहरा गुरुमंत्र छिपा है। तन कर खड़ी ‘गुड़ी’ परमार्थ में पूर्ण शरणागति यानी एकनिष्ठ शरणभाव का संदेश देती है,जो ज्ञानप्राप्ति के, परमानंद का अहम साधन है। वहीं ‘पड़वा’ साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ, पैर, हृदय, आँख, जाँघ, वचन और मन आठ अंगों से भूमि पर लेट कर किया जाने वाला प्रणाम) का संकेत देता है।
गुड़ी मानव देह की प्रतीक है। इस एक दिन के त्योहार में आपको आदर्श जीवन के प्रतिबिंब नजर आते हैं। ‘गुड़ी’ की लाठी को तेल, हल्दी लगा गर्म पानी से नहलाते हैं। उस पर चांदी की लोटी या तांबे का लोटा उल्टा डाल रेशमी जरी वस्त्र पहनाकर फूलों और शक्कर के हार और नीम की टहनी बांधकर घर के दरवाजे पर खड़ी करते हैं।
‘देहयष्टि’ हम इस लफ्ज का इस्तेमाल करते हैं। और स्नान, सुगंधित वस्तुओं, षटरस (मीठा, नमकीन, कडुवा, चरपरा, कसैला और खट्टा छः तरह के रस) वस्त्र, अलंकार,पकवान इन तमाम वस्तुओं का उपभोग इसके लिए जरूरी है। तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रख जीना यही तो ‘गुड़ी’ हमें सिखाती है,लेकिन इस सामर्थ्य के साथ ईश्वरीय अधिष्ठान भी जरूरी हैं, यह बताने से भी नहीं चूकती।
शक्कर के श्वेत-केशरी हार और नीम के फूलों की डाल को समभाव से कंधे पर डाले शान से खड़ी ‘गुड़ी’ कामयाबी और नाकामयाबी में भी बिना गिरे उसे हजम करना भी तो बगैर बोले ही सिखाती है। ऋतु संधिकाल में तृष्णा हरण के लिए शक्कर और अमृत गुणों से भरपूर रोगप्रतिबंधक नीम और गुड़, धनिए की योजना हमारे पूर्वजों के रूढ़ी और आयुर्वेद समन्वय के नजरिए को दर्शाती है। पोर-पोर की लाठी में ‘रीढ़’ की समानता नजर आती हैं, तो चांदी का बर्तन मस्तक का प्रतीक है।
उत्तम चैत्रमास और ऋतु वसंत का यह दिन जब सूर्य किरणों में नई चमक होती है, तनी हुई रीढ़ पर अधिष्ठित बर्तन सूर्य किरणों को इकट्ठा कर उन्हें परावर्तित भी करता है। परिपूर्ण विचारधन और आत्मज्ञान सूर्य से तपस्वी गुरु से साध तेजस्वी बुद्धि हासिल कर लोककल्याण की प्रेरणा से उसे समाज को दान देने का संकेत भी ‘गुड़ी’ ही देती है।
हिन्दू नववर्ष के पहले दिन शालिवाहन शक की शुरुआत इसी दिन से होती है। शालिवाहन राजा ने शंक पर विजय हासिल की और तभी से शालिवाहन कालगणना की शुरुआत हुई। शालिवाहन राजा की सत्ता आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में होने से यह त्योहार बड़े धूमधाम से लेकिन अपनी-अपनी तरह से मनाया जाता है।
इसी दिन राम की नवरात्रि आरंभ होती है। जिसके नौ दिन यानी भक्ति के नौ प्रकार और नौ पायदान हैं-(1)वण (कान से भगवान के बाबद सुनना), (2) कीर्तन, (3) नामजप, (4)पाद्य पूजा, (5) प्रार्थना,पूजा, (6)वंदन, (7)सेवा, (8)ईश्वर से सखाभाव, (9)समर्पण। इसीलिए चैत्र शक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर यह चैत्र शुक्ल नवमी यानी ‘रामनवमी’पर समाप्त होता है।
लेकिन जरा कुदरत के नजरिए से भी गौर करें तो चैत्र वैशाख यानी वसंत ऋतु में जंगली वृक्षों यानी पलाश, गुलमोहर आदि में नई कोंपले फुटाव लेती हैं। इन वृक्षों को कोई भी ,कभी भी खाद-पानी नहीं देता। इनके पूरे विकास की जवाबदारी कुदरत पर होती है। इसलिए वसंत ऋतु को पहली ऋतु और कुदरत के सृजन का प्रतीक माना जाता है। और इसी वसंत की शुरुआत होती है ‘गुड़ी पड़वा’ से।
‘गुड़ी पड़वा’ यानी सिर्फ वस्त्रालंकार, गुड़, धनिए, श्रीखंड पूरी का पर्व नहीं वरन विद्या विनय की सीख देने का दिन हैं। तन कर खड़ी ‘गुड़ी’स्वाभिमान से जीने और जमीन पर लाठी की तरह गिरते ही साष्टांग नमस्कार कर जिंदगी के उतार-चढ़ाव में बगैर टूटे उठने का संदेश देती है।
]]>