जलवायु के तहत हो घोषणा तब निकलेंगे सार्थक परिणाम – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Sun, 03 Nov 2019 04:48:32 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 अर्थहीन है सांकेतिक आपातकाल, जलवायु के तहत हो घोषणा तब निकलेंगे सार्थक परिणाम http://www.shauryatimes.com/news/62960 Sun, 03 Nov 2019 04:48:32 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=62960 जलवायु परिवर्तन को लेकर लक्ष्य तय करने के मामले में भारत काफी अच्छा कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के लिए हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी कम है। अक्षय ऊर्जा, जीडीपी के सापेक्ष उत्सर्जन और वन आवरण में हमारा लक्ष्य ज्यादा नहीं है। पहले दो क्षेत्र में तो हम लक्ष्य से आगे रहेंगे लेकिन वन आवरण में पीछे हैं। अगर हम वन आच्छादन क्षेत्र के लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं और कोयला आधारित बिजली प्लांटों का निर्माण बंद कर देते हैं तो हम अपना राष्ट्रीय प्रदर्शन 1.5 डिग्री सेल्सियस के अनुरूप कायम रखने में कामयाब होंगे।

अब अपने देश में प्रति यूनिट अक्षय ऊर्जा की कीमत कोयला उत्पादित बिजली की तुलना में कम है। इसलिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की स्थापना का कोई मजबूत आर्थिक पक्ष नजर नहीं आता है। ऐसे में हम आराम से 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। हम उन देशों में शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन पर सबसे अधिक गंभीरता से काम कर रहे हैं। भारत औपचारिक रूप से आपातकाल घोषित किए बिना ऐसा कर रहा है। क्या हमें आगे और कदम उठाने चाहिए।

अगर हम ऐसा करते हैं तो अतीत में आपातकाल के सांकेतिक मतलब को समझ लेना चाहिए और संभावित परिणामों की समीक्षा कर लेनी चाहिए। यहां तीन संदर्भ देखें। पहला भारतीय राजनीतिक इतिहास के छात्रों के लिए परिचित है। ऐसा आपातकाल जिसमें केंद्र सरकार को अतिरिक्त अधिकार दिए गए। इस तरह के आपातकाल से भारत समेत अन्य देशों में अधिकारों का दुरुपयोग किया गया।

अमेरिकी सरकार ने मेक्सिको सीमा पर दीवार के लिए ऐसा किया। यह सुझाव दिया गया है कि वर्तमान अमेरिकी सरकार के बदलते ही जलवायु आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। यह सोच साफ तौर पर अलोकतांत्रिक है। विशेष रूप से भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह जरूरत से ज्यादा अधिकारों का केंद्रीकरण होगा जबकि जलवायु समस्या से जिम्मेदारीपूर्वक निपटने की जरूरत है। दूसरा संदर्भ विशेष रूप से विकसित देशों के शहरों में घोषित होने वाले जलवायु आपातकाल का है।

इस तरह की घोषणाएं उपयोगी होती हैं क्योंकि इससे नई जलवायु नीति के लिए मार्ग प्रशस्त होता है। सामान्य रूप से जलवायु को लेकर सरकारों के स्तर पर कोई विचार-विमर्श नहीं होता है। आपातकाल से जलवायु को लेकर बनने वाले बजट से लेकर इसके कारण व प्रभाव पर सहमति बनती है। अगर पंचायतों, निगमों या नगरपालिकाएं जलवायु आपातकाल की घोषणा करती हैं तो यह उपयोगी होगा। स्थानीय स्तर पर हजारों जगहों पर जलवायु आपातकाल का एलान किया जाता है तो इससे इसपर खर्च होने वाली राशि की बेहतर उपलब्धता के साथ केंद्रीय सरकार का समर्थन बखूबी प्राप्त होगा।

तीसरे संदर्भ में वे देश हैं जिन्होंने अपने यहां राष्ट्रीय स्तर पर आपातकाल की घोषणा की है। इन सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में कानून बनाया है जिसपर अमल करना भविष्य में आनेवाली सरकारों के लिए भी बाध्यकारी है। वहीं भारत की बात करें तो यहां जलवायु परिवर्तन को लेकर तय किए गए राष्ट्रीय लक्ष्य की कानूनी अनिवार्यता नहीं है।

अगर नेशनल क्लाइमेट एक्ट के तहत जलवायु आपातकाल की घोषणा की जाती है तो इसके सार्थक परिणाम सामने आएंगे अन्यथा केवल सांकेतिक आपातकाल से इस गंभीर और व्यापक समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला है।

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