जानिए इसकी खासियत – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Tue, 25 Aug 2020 07:44:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 LIC OF INDIA ने लॉन्च किया जीवन अक्षय-7 एन्युटी प्लान, जानिए इसकी खासियत http://www.shauryatimes.com/news/81997 Tue, 25 Aug 2020 07:44:07 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=81997 भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India) नई पॉलिसी लेकर आया है। यह एलआईसी (LIC) की जीवन अक्षय-7 (प्लान नंबर 857) है। यह एक एकल प्रीमियम, नॉन-लिंक्ड, नॉन-पार्टिसिपेटिंग और व्यक्तिगत तत्काल एन्युटी स्कीम है। यह 25 अगस्त 2020 से प्रभावी होगी। एकमुश्त राशि के भुगतान पर शेयरधारकों के पास एन्युटी के 10 उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक को चुनने का विकल्प होता है। पॉलिसी के आरंभ में एन्युटी की दरों की गारंटी दी जाती है और एन्युटी पाने वाले को उम्र भर एन्युटी का भुगतान किया जाता है। इस प्लान को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से खरीदा जा सकता है।

इस प्लान के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य एक लाख रुपये (न्यूनतम वार्षिकी मानदंड के अनुसार) है। पॉलिसी में वार्षिक, अर्धवार्षिक, त्रैमासिक और मासिक एन्युटी के प्रकार उपलब्ध हैं। न्यूनतम एन्युटी 12,000 रुपये सालाना है। यहां अधिकतम खरीद मूल्य की कोई सीमा नहीं है। साथ ही पांच लाख से अधिक के खरीद मूल्य के लिए एन्युटी दर में वृद्धि के रूप में इंसेंटिव उपलब्ध है।

यह प्लान खरीद मूल्य की वापसी के साथ जीवन के लिए तत्काल एन्युटी के विकल्प को छोड़कर 30 वर्ष से 85 वर्ष तक की आयु के लिए उपलब्ध है। पहले वाली स्थिति में यह सौ साल तक के लिए है। दिव्यांगजन (विकलांग आश्रित) को फायदा पहुंचाने के लिए भी योजना खरीदी जा सकती है।

इस योजना में, किन्हीं दो वंशजों, एक ही परिवार के वंशजों (दादा-दादी, माता-पिता, बच्चे, नाती-पोते), पति-पत्नी या भाई-बहन के बीच ज्वाइंट लाइफ एन्युटी ली जा सकती है। पॉलिसी जारी होने के तीन महीने बाद या फ्री-लुक अवधि की समाप्ति के बाद (जो भी बाद में) कभी भी लोन सुविधा उपलब्ध होगी।

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लोगों की पहली पसंद बना ये मुर्गा, जानिए इसकी खासियत http://www.shauryatimes.com/news/26139 Sat, 05 Jan 2019 08:56:09 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=26139 कम कोलेस्ट्राल व वसा के कारण क्षेत्र में भी कड़कनाथ मुर्गा उन लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से मीट से परहेज करते हैं। वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक वर्तमान में कड़कनाथ, आस्ट्रोलाप, कैरी देवेंद्रा व उत्तराखंड की पहली प्रजाति उत्तरा प्रजातियों के कुक्कुट पर यहां की जलवायु का प्रभाव देखने के लिए शोध कर रहे हैं।

ढकरानी केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह बताते हैं कि काश्तकार व पशुपालक ऐसी प्रजातियों को तरजीह देते हैं, जिससे कम समय में ज्यादा मुनाफा हो। यही वजह है कि ग्रामीण कैरी देवेंद्रा प्रजाति ज्यादा पालते हैं। इस कुक्कुट प्रजाति की मुर्गियां साल भर में 200 अंडे तक देती हैं, जबकि मुर्गे करीब दो माह में 1600 ग्राम तक हो जाते हैं। वहीं अन्य प्रजातियों के कुक्कुट साल भर में 80 से 85 के बीच अंडे देते हैं।

इसी को देखते हुए मैदानी व पर्वतीय क्षेत्रों में कैरी देवेंद्रा प्रजाति को ज्यादा तरजीह देते हैं, लेकिन कड़कनाथ प्रजाति अपने आप में अनूठी है। मध्यप्रदेश के झांबुआ में कड़कनाथ रिसर्च सेंटर कड़कनाथ पर विशेष शोध कर रहा है। इस प्रजाति की खूबी यह है कि यह पूरी तरह से काला है। इसका अंडा भी सफेद की जगह काला है। खून लाल की जगह काला है। वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि कड़कनाथ प्रजाति के मीट को लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा मानते हैं, क्योंकि इसके मीट में कोलेस्ट्राल एक प्रतिशत से कम है, वसा भी काफी कम मात्रा में होता है। आजकल कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी में चार प्रजातियों पर यहां की जलवायु का असर जानने को शोध चल रहा है। साथ ही पशुपालन विभाग कुक्कुट प्रजातियों की पूर्ति लोगों तक कर रहा है।

केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. एसएस सिंह की देखरेख में शोध कर रहे वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि यहां की जलवायु में उत्तरा का उत्पादन बेहतर है, लेकिन सबसे ज्यादा डिमांड कैरी देवेंद्रा की करते हैं, क्योंकि उन्हें मीट व अंडे के हिसाब से लाभ चाहिए। वैज्ञानिक बताते हैं कि कम कोलेस्ट्राल की वजह से कड़कनाथ प्रजाति को पसंद किया जा रहा है। कड़कनाथ दुर्लभ मुर्गे की प्रजाति है।

यह काले रंग का मुर्गा होता है जो दूसरी प्रजातियों से ज्यादा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सेहतमंद और कई औषधीय गुणों से भरपूर बताया जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अन्य प्रजातियों से बेहतर बताई जाती है, कड़कनाथ को लोकल भाषा में कालीमासी भी कहा जाता है। वैज्ञानिक ने बताया कि अभी शोध चल रहा है, वैसे चारों प्रजातियां अभी तक जलवायु के हिसाब से उपयुक्त पाई गई हैं।

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