जानिए कथा – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Fri, 16 Apr 2021 06:13:38 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 आज इस पूजा विधि से करें माँ कुष्मांडा का पूजन, जानिए कथा http://www.shauryatimes.com/news/108766 Fri, 16 Apr 2021 06:13:38 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=108766 आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है और आज के दिन माँ कुष्मांडा का पूजन किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं माँ कुष्मांडा की कथा और पूजा विधि।

माँ कुष्मांडा की कथा- कहते हैं मां कुष्मांडा वही देवी है जिन्होंने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए ही अवतार लिया था। माँ का वाहन सिंह है। वहीं हिंदू संस्कृति में कुम्हड़े को ही कुष्मांड का नाम दिया गया है इस वजह से इस देवी को कुष्मांडा कहा जाता है। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। इन्हें आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है। कहते हैं जब मां कूष्मांडा की उपासना की जाए तो इससे आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

माँ कुष्मांडा की पूजा विधि- आज स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद मां कूष्मांडा का स्मरण कर लें। अब उसके बाद माँ को धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। अब इसके बाद मां कूष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं। अंत में उसे ही प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं और घर में बाँट भी सकते हैं। ध्यान रहे पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती जरूर करें और इसी के साथ आप अपनी मनोकामना भी उनसे व्यक्त कर दें।

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25 मार्च को मनाई जाएगी है नरसिंह द्वादशी, जानिए कथा http://www.shauryatimes.com/news/106797 Wed, 24 Mar 2021 04:11:25 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=106797 आप सभी जानते ही होंगे भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है। यह अवतार कुछ ऐसा था जिसमें श्री हरि के शरीर आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था। इस वजह से ही इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा जाता है। जिस दिन श्री हरि ने यह अवतार लिया था उसे नरसिम्हा द्वादशी, नरसिंह द्वादशी कहा जाता है। यह हर साल होली से तीन दिन पहले होती है। इस दिन नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 25 मार्च 2021 को आ रहा है। जी हाँ, यह तिथि सुबह 09 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी, ऐसे में आमलकी एकादशी के साथ नरसिंह द्वादशी का व्रत भी 25 मार्च को ही रखा जाएगा। अब हम आपको बताने जा रहे हैं नरसिम्हा द्वादशी की कथा।

नरसिम्हा द्वादशी की कथा- प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर। इस वरदान को पाने के बाद वो खुद को अमर समझने लगा। लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी। इससे नाराज हिरण्यकश्यम ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया। कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया।

उसने अपनी बहत होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यम ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा। तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ। उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु। भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया।

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24 जनवरी को है पुत्रदा एकादशी, जानिए कथा http://www.shauryatimes.com/news/99149 Wed, 20 Jan 2021 03:30:02 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=99149 पौष मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते है। कहा जाता है इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का खास आशीर्वाद प्राप्त होता है। केवल यही नहीं बल्कि इस दिन वह लोग भी उपवास रख सकते हैं और पूजन कर सकते हैं जिन्हे संतान न हो। कहा जाता है संतान प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत करना सबसे उत्तम होता है। वैसे इस बार यह एकादशी 24 जनवरी 2021 को मनाई जाएगी। तो आइए हम आपको बताते हैं शुभ मुहूर्त और कथा।

पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त –
पौष पुत्रदा एकादशी रविवार, जनवरी 24,2021 को।
25वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:13 से 09:21।
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 00:24, जनवरी 26।
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 23, 2021 को 20:56 बजे।
एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 24, 2021 को 22:57 बजे।

पौष पुत्रदा एकादशी कथा – द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था। सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए। लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ।

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