दुनिया भर में तेजी से घट रही संख्या – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Fri, 22 Nov 2019 06:49:05 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 जानिए क्‍यों गधों के अस्तित्व पर लटकी ड्रैैगन की तलवार, दुनिया भर में तेजी से घट रही संख्या http://www.shauryatimes.com/news/65825 Fri, 22 Nov 2019 06:49:05 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=65825 दुनिया में गधों की कुल संख्या 4.4 करोड़ है। अगले पांच साल में इनकी यह संख्या आधी रह सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानवरों के कल्याण के लिए काम करने वाली चैरिटी संस्था डंकी सेंक्चुअरी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार गधों के अंगों-प्रत्यंगों से बनने वाली चीनी परंपरागत दवाओं के लिए हर साल 48 लाख गधों की जरूरत है।

चीन के इस परंपरागत उद्योग को इजियाओ कहते हैं। इस उद्योग की जरूरत के लिए हर साल चीन में लाखों की संख्या में गधों को मार दिया जाता है। पिछले तीन दशक के दौरान चीन में इस जीव की संख्या तीन चौथाई कम हो चुकी है। अब चीन दुनिया के तमाम गधा बहुतायत देशों से इनका आयात कर रहा है।

तेजी से घट रही संख्या

गधों के चमड़े के व्यापार और चीनी परंपरागत दवाओं में इस्तेमाल के चलते दुनिया भर में इनकी संख्या तेजी से गिर रही है। केन्या और घाना में भी इनकी संख्या में गिरावट की आशंका है।

भयावह स्थिति

रिपोर्ट बताती है कि यह जानवर अलग-अलग देशों में अलग-अलग समुदायों की आजीविका का साधन हुआ करता था। पूरा परिवार इस जानवर की कमाई पर आश्रित रहता था। अब इस समुदायों से इसे औने-पौने दामों में खरीदकर लंबी यात्रा पर भेज दिया जाता है। तस्करी जैसा यह काम संगठित गिरोह द्वारा किया जाता है। इस यात्रा में गधों को भोजन और पानी भी नहीं दिया जाता। लिहाजा 20 फीसद गधे तो रास्ते में दम तोड़ देते हैं। जब लंबी यात्रा के बाद इन्हें वाहन से उतारा जाता है तो ज्यादातर के पैर टूटे होते हैं। खुर चोटिल हुए रहते हैं। कान और पूंछ पकड़कर उन्हें उतारने के लिए धक्का दिया जाता है।

दर्दनाक हकीकत

रिपोर्ट बताती है कि चीन की परंपरागत दवाओं में इन जानवरों के अंगों की इतनी मांग है कि गर्भवती गधी, गधे के बच्चों और बीमार और चोटिल गधों को भी नहीं बक्शा जा रहा है। इन्हें भी मार दिया जा रहा है।

बहुत उपयोगी है गधा

जिस गधे को दुनिया अनुपयोगी मानती रही है, चीन उससे भी अमानवीय तरीके से अपनी दुकान चमका ले रहा है। इसकी खाल से जिलेटिन बनाया जाता है। जिसका इस्तेमाल वहां की परंपरागत औषधियों में हजारों साल से किया जा रहा है। माना जाता है कि इसके सेवन से रक्त परिसंचरण सुधरता है और एनीमिया (खून की कमी) से मुक्ति मिलती है।

गधा मालिकों की मुसीबत

दुनिया के अतिपिछड़े करीब 50 करोड़ लोगों की आजीविका गधे से चलती है। खाल उद्योग के लिए इनकी बढ़ती मांग ने इनकी कीमतें आसमान पर पहुंचा दी है। नए गधे को खरीदने में इनके पसीने छूट रहे हैं। 2016-19 के बीच केन्या में इनकी कीमतों में 15 हजार रुपये का इजाफा हो चुका है।

संख्या बढ़ाने की चुनौती

डंकी सेंक्चुअरी के अनुसार गधों की संख्या बढ़ाने की बहुत जरूरत है, लेकिन इजियाओ उद्योग की जरूरत को पूरा करने के लिए इसमें 20 साल लगेंगे। गधों का प्रजनन चक्र बहुत धीमा है। इस जानवर की मादा बच्चे को एक साल तक गर्भ में रखती है। इनमें धीरे-धीरे परिवक्वता आती है। इनकी प्रजनन दर भी बहुत कम है। इन वजहों से इनकी संख्या बढ़ाने को लेकर बड़ी चुनौतियां हैं।

देशों ने दिखाई सख्ती

गधों की गिरती संख्या से चिंतित दुनिया के 18 देशों ने इनके मारने पर पाबंदी लगा दी। घाना और माली जैसे देश ने तो इनके बूचड़खाने तक बंद करा दिए लेकिन दूसरे देशों को निर्यात के द्वारा इनका मारा जाना बदस्तूर जारी है।

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