भुट्टो के बाद अब शरीफ को खत्म करना चाहती है पाकिस्तान सेना – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Tue, 03 Jul 2018 06:29:35 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 भुट्टो के बाद अब शरीफ को खत्म करना चाहती है पाकिस्तान सेना http://www.shauryatimes.com/news/4947 Tue, 03 Jul 2018 06:29:35 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=4947 पाकिस्तान में 25 जुलाई को चुनाव होने वाले हैं. सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से मतदाताओं प्रभावित करने मे लगी हैं. लेकिन इस चुनावी सरगर्मी के बीच एक अदृश्य ताकत भी है जो पाकिस्तान के चुनाव परिणामों पर बड़ा असर डाल सकती है. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के ‘डीप स्टेट’ की.पाकिस्तान में 25 जुलाई को चुनाव होने वाले हैं. सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से मतदाताओं प्रभावित करने मे लगी हैं. लेकिन इस चुनावी सरगर्मी के बीच एक अदृश्य ताकत भी है जो पाकिस्तान के चुनाव परिणामों पर बड़ा असर डाल सकती है. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के 'डीप स्टेट' की.  दरअसल 'डीप स्टेट' किसी भी राज्य की वो अवधारणा है जिसमें सेना, खुफिया विभाग और नौकरशाही परदे के पीछे से राज्य की नीतियों को प्रभावित करते हैं. जबकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार एक मुखौटा भर होती है.  मेमोगेट स्कैंडल मे गिरफ्तारी का खतरा झेल रहे अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का aajtak.in से बातचीत में कहना है कि इस बार पाकिस्तान चुनावों के इमानदारी से होने की संभावना कम है. पाकिस्तानी सेना वहां की न्यायपालिका की मदद से पंजाब प्रांत के सबसे ताकतवर नेता नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन  की हार सुनिश्चित करने मे लगी है. पाकिस्तान की न्यायपालिका ने नवाज़ शरीफ को अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ पीएमएल-एन के कई उम्मीद को अयोग्य घोषित कर दिया है. वहीं पाकिस्तानी सेना के खुफिया विभाग के अधिकारी पीएमएल-एन के बड़े नेताओं को पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में शामिल धमकी दे रहे हैं. चुनावों के ठीक पहले मीडिया की आजादी पर भी लगाम लगा दी गई है.  इसे पढ़े: चुनावी मोड में पाकिस्तान, शरीफ जीतेंगे या इमरान?  हक्कानी का कहना है कि पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद मे ऐसी सरकार चाहती है जो सेना के हुक्मों पर चले न कि ऐसी सरकार जिसे जनता विश्वास प्राप्त है. हांलाकि पाकिस्तानी सेना के इस तरह के प्रयोग अब तक व्यर्थ ही गए हैं. पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हुए हक्कानी कहते हैं कि जब 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग के नेता शेख़ मुजीबुर रहमान ने रिकार्ड बहुमत हासिल किया तो पाकिस्तानी सेना के वेजह हस्तक्षेप के कारण ही बांग्लादेश बना और पाक के दो टुकड़े हो गए. इसके बाद 90 के दशक में सेना की पूरी ताकत पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की अध्यक्षता वाली पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बढ़ती लोकप्रियता को कमतर करने में लगी रही. जिस के लिए भुट्टो के बरक्स सेना ने नवाज़ शरीफ को खड़ा किया.  ह्क्कानी कहते हैं कि अब तीन दशक बाद जब सेना पीपीपी के प्रभाव को लगभग खत्म कर चुकी है तो उसने खुद के द्वारा खड़ा किये हुए नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन को खत्म करने मे अपनी पूरी ताकत झोक दी है.  हक्कानी का कहना है कि 25 जुलाई को होने वाले चुनावो का परिणाम जो भी हो लेकिन स्वभाविक तौर पर ये पाकिस्तान में अस्थिरता लाएगा. अगर डीप स्टेट के पिट्ठू पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और उसके सहयोगी जीत भी जाते हैं तो उनकी कोई विश्वसनियता नही होगी. लिहाजा इस चुनाव मे जीते कोई भी लेकिन हार पाकिस्तान की जनता और लोकतंत्र की होगी.पाकिस्तान में 25 जुलाई को चुनाव होने वाले हैं. सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से मतदाताओं प्रभावित करने मे लगी हैं. लेकिन इस चुनावी सरगर्मी के बीच एक अदृश्य ताकत भी है जो पाकिस्तान के चुनाव परिणामों पर बड़ा असर डाल सकती है. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के 'डीप स्टेट' की.  दरअसल 'डीप स्टेट' किसी भी राज्य की वो अवधारणा है जिसमें सेना, खुफिया विभाग और नौकरशाही परदे के पीछे से राज्य की नीतियों को प्रभावित करते हैं. जबकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार एक मुखौटा भर होती है.  मेमोगेट स्कैंडल मे गिरफ्तारी का खतरा झेल रहे अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का aajtak.in से बातचीत में कहना है कि इस बार पाकिस्तान चुनावों के इमानदारी से होने की संभावना कम है. पाकिस्तानी सेना वहां की न्यायपालिका की मदद से पंजाब प्रांत के सबसे ताकतवर नेता नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन  की हार सुनिश्चित करने मे लगी है. पाकिस्तान की न्यायपालिका ने नवाज़ शरीफ को अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ पीएमएल-एन के कई उम्मीद को अयोग्य घोषित कर दिया है. वहीं पाकिस्तानी सेना के खुफिया विभाग के अधिकारी पीएमएल-एन के बड़े नेताओं को पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में शामिल धमकी दे रहे हैं. चुनावों के ठीक पहले मीडिया की आजादी पर भी लगाम लगा दी गई है.  इसे पढ़े: चुनावी मोड में पाकिस्तान, शरीफ जीतेंगे या इमरान?  हक्कानी का कहना है कि पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद मे ऐसी सरकार चाहती है जो सेना के हुक्मों पर चले न कि ऐसी सरकार जिसे जनता विश्वास प्राप्त है. हांलाकि पाकिस्तानी सेना के इस तरह के प्रयोग अब तक व्यर्थ ही गए हैं. पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हुए हक्कानी कहते हैं कि जब 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग के नेता शेख़ मुजीबुर रहमान ने रिकार्ड बहुमत हासिल किया तो पाकिस्तानी सेना के वेजह हस्तक्षेप के कारण ही बांग्लादेश बना और पाक के दो टुकड़े हो गए. इसके बाद 90 के दशक में सेना की पूरी ताकत पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की अध्यक्षता वाली पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बढ़ती लोकप्रियता को कमतर करने में लगी रही. जिस के लिए भुट्टो के बरक्स सेना ने नवाज़ शरीफ को खड़ा किया.  ह्क्कानी कहते हैं कि अब तीन दशक बाद जब सेना पीपीपी के प्रभाव को लगभग खत्म कर चुकी है तो उसने खुद के द्वारा खड़ा किये हुए नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन को खत्म करने मे अपनी पूरी ताकत झोक दी है.  हक्कानी का कहना है कि 25 जुलाई को होने वाले चुनावो का परिणाम जो भी हो लेकिन स्वभाविक तौर पर ये पाकिस्तान में अस्थिरता लाएगा. अगर डीप स्टेट के पिट्ठू पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और उसके सहयोगी जीत भी जाते हैं तो उनकी कोई विश्वसनियता नही होगी. लिहाजा इस चुनाव मे जीते कोई भी लेकिन हार पाकिस्तान की जनता और लोकतंत्र की होगी.

दरअसल ‘डीप स्टेट’ किसी भी राज्य की वो अवधारणा है जिसमें सेना, खुफिया विभाग और नौकरशाही परदे के पीछे से राज्य की नीतियों को प्रभावित करते हैं. जबकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार एक मुखौटा भर होती है.

मेमोगेट स्कैंडल मे गिरफ्तारी का खतरा झेल रहे अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का aajtak.in से बातचीत में कहना है कि इस बार पाकिस्तान चुनावों के इमानदारी से होने की संभावना कम है. पाकिस्तानी सेना वहां की न्यायपालिका की मदद से पंजाब प्रांत के सबसे ताकतवर नेता नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन  की हार सुनिश्चित करने मे लगी है. पाकिस्तान की न्यायपालिका ने नवाज़ शरीफ को अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ पीएमएल-एन के कई उम्मीद को अयोग्य घोषित कर दिया है. वहीं पाकिस्तानी सेना के खुफिया विभाग के अधिकारी पीएमएल-एन के बड़े नेताओं को पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में शामिल धमकी दे रहे हैं. चुनावों के ठीक पहले मीडिया की आजादी पर भी लगाम लगा दी गई है.

हक्कानी का कहना है कि पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद मे ऐसी सरकार चाहती है जो सेना के हुक्मों पर चले न कि ऐसी सरकार जिसे जनता विश्वास प्राप्त है. हांलाकि पाकिस्तानी सेना के इस तरह के प्रयोग अब तक व्यर्थ ही गए हैं. पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हुए हक्कानी कहते हैं कि जब 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग के नेता शेख़ मुजीबुर रहमान ने रिकार्ड बहुमत हासिल किया तो पाकिस्तानी सेना के वेजह हस्तक्षेप के कारण ही बांग्लादेश बना और पाक के दो टुकड़े हो गए. इसके बाद 90 के दशक में सेना की पूरी ताकत पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की अध्यक्षता वाली पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बढ़ती लोकप्रियता को कमतर करने में लगी रही. जिस के लिए भुट्टो के बरक्स सेना ने नवाज़ शरीफ को खड़ा किया.

ह्क्कानी कहते हैं कि अब तीन दशक बाद जब सेना पीपीपी के प्रभाव को लगभग खत्म कर चुकी है तो उसने खुद के द्वारा खड़ा किये हुए नवाज़ शरीफ की पीएमएल-एन को खत्म करने मे अपनी पूरी ताकत झोक दी है.

हक्कानी का कहना है कि 25 जुलाई को होने वाले चुनावो का परिणाम जो भी हो लेकिन स्वभाविक तौर पर ये पाकिस्तान में अस्थिरता लाएगा. अगर डीप स्टेट के पिट्ठू पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और उसके सहयोगी जीत भी जाते हैं तो उनकी कोई विश्वसनियता नही होगी. लिहाजा इस चुनाव मे जीते कोई भी लेकिन हार पाकिस्तान की जनता और लोकतंत्र की होगी.

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