भोलेनाथ को क्यों प्रिय है भस्म – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Mon, 31 Dec 2018 06:27:11 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 भोलेनाथ को क्यों प्रिय है भस्म, जानेंगे तो श्रद्धा से भावुक हो जाएंगे, साथ में पढ़ें महाकाल की भस्मार्ती का राज http://www.shauryatimes.com/news/25258 Mon, 31 Dec 2018 06:27:11 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=25258 आप अक्सर सोचते होंगे कि आखिर भगवान भोलेनाथ को विचित्र सामग्री ही प्रिय क्यों है। चाहे वह जहरीला धतूरा हो, या नशीली भांग। गण भी उनके भूत, गले में लिपटे नागदेव… इसी तरह वे अपने तन पर भस्म रमाए रहते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके शरीर पर लिपटी सौंधी भस्म का क्या कारण है.. आइए आज आपको एक पौराणिक कथा बताते हैं जिसमें छुपा है इसका राज…

भगवान शिव ने अपने तन पर जो भस्म रमाई है वह उनकी पत्नी सती की चिता की भस्म थी जो कि अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत हो वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थी। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गए। जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। उनके क्रोध व बेचैनी से सृष्टि खतरे में पड़ गई।
जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। फरर भी शिव का संताप जारी रहा। तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया। शिव ने विरह की अग्नि में भस्म को ही सती की अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया।
पहले भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था। जहां-जहां उनके अंग गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई। लेकिन पुराणों में भस्म का विवरण भी मिलता है।
भगवान शिव के तन पर भस्म रमाने का एक रहस्य यह भी है कि राख विरक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव चूंकि बहुत ही लौकिक देव लगते हैं। कथाओं के माध्यम से उनका रहन-सहन एक आम सन्यासी सा लगता है। एक ऐसे ऋषि सा जो गृहस्थी का पालन करते हुए मोह माया से विरक्त रहते हैं और संदेश देते हैं कि अंत काल सब कुछ राख हो जाना है।
एक रहस्य यह भी हो सकता है चूंकि भगवान शिव को विनाशक भी माना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि की निर्माण करते हैं तो विष्णु पालन-पोषण लेकिन जब सृष्टि में नकारात्मकता बढ़ जाती है तो भगवान शिव विध्वंस कर डालते हैं। विध्वंस यानि की समाप्ति और भस्म इसी अंत इसी विध्वंस की प्रतीक भी है। शिव हमेशा याद दिलाते रहते हैं कि पाप के रास्ते पर चलना छोड़ दें अन्यथा अंत में सब राख ही होगा।
शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम घमंड करते हैं, जिसकी सुविधा और रक्षा के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं एक दिन इसी इस भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत।
कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है।
रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं।
महाकाल की भस्मार्ती
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्मार्ती विश्व भर में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है क‌ि वर्षों पहले श्मशान भस्‍म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्‍म आरती होती थी लेक‌िन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब कंडे की भस्‍म से आरती-श्रृंगार क‌िया जा रहा है। वर्तमान में महाकाल की भस्‍म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने औषधियुक्त उपलों में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर बनाई भस्‍म का प्रयोग क‌िया जाता है।
जलते कंडे में जड़ीबूटी और कपूर-गुगल की मात्रा इतनी डाली जाती है कि यह भस्म ना सिर्फ सेहत की दृष्टि से उपयुक्त होती है बल्कि स्वाद में भी लाजवाब हो जाती है। श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो वह लौकिक भस्म है।
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