मुलायम सिंह यादव को मुंबई के अस्पताल से मिली छुट्टी – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Mon, 30 Dec 2019 07:40:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 मुलायम सिंह यादव को मुंबई के अस्पताल से मिली छुट्टी http://www.shauryatimes.com/news/71761 Mon, 30 Dec 2019 07:40:21 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=71761 समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को मुंबई के एक अस्पताल में उपचार के बाद रविवार को छुट्टी दे दी गई। पेट दर्द की शिकायत के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि यादव को तीन दिनों पहले यहां एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। देश के रक्षा मंत्री रह चुके सपा नेता के करीबी सहायक ने उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती किए जाने की पुष्टि करते हुए बताया कि डॉक्टरों की सलाह पर ऐसा किया गया था। उन्होंने बताया कि उपचार पूरा होने के बाद रविवार को सपा संस्थापक को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। इसके बाद वह लखनऊ लौट गए।

अयोध्या की गोलियों से मुलायम ने लिखी थी राजनीति की इबारत

पार्टियों की पटरियां बदलते हुए मुलायम सिंह यादव वैसे तो तीन दशक की सियासी यात्रा में वर्ष 1989 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए थे लेकिन उनकी राजनीति की असल जमीन इसके बाद अयोध्या से ही तैयार हुई थी। 1990 में जब मुलायम ने कहा था कि अयोध्या में प¨रदा भी पर नहीं मार सकता तो अपनी बात को गलत साबित न होने देने के लिए उन्होंने निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां बरसाने का आदेश देने में देर नहीं लगाई थी। मुलायम की इसी दृढ़ता ने उन्हें रातोंरात मुसलमानों का भरोसेमंद नेता बना दिया था।

यह वो दौर था, जब बतौर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के विवादित ढांचे पर आंच न आने का वचन दे रखा था। ऐसे में देश भर के युवा जब राम मंदिर के निर्माण की भावना से शिलाएं लेकर खेतों-पगडंडियों से छिपते-छिपाते अक्टूबर 1990 में अयोध्या पहुंच गए तो सरकार के आदेश पर सुरक्षा बलों ने सीधी गोलियां चला दी थीं। इस घटना ने दुनिया भर में लोगों को हिला दिया था लेकिन, यहां चली गोलियों ने मुलायम की राजनीति की नई पटकथा भी लिख दी थी। कल्याण सिंह की सरकार के दौरान जब विवादित ढांचा गिरा, तब मुस्लिम वर्ग में मुलायम और मजबूती से स्थापित हो गए।

मुलायम यह संदेश देने में सफल रहे कि कारसेवकों को रोकने के लिए उन्होंने पूरी ताकत न लगाई होती तो ढांचा दो साल पहले 1990 में भी गिर गया होता। दरअसल पार्टी की सत्ता छिन जाने और परिवार में लड़ाई छिड़ जाने के किस्सों को छोड़ दिया जाए तो छह दशकों के लंबे राजनीतिक करियर में मुलायम अपने नाम से उलट अपनी दृढ़ता की वजह से पहचाने गए और जगह बना सके। लगातार आगे बढ़ते रहने के लिए उन्होंने साथी बदलने या नए साथी चुनने में संकोच नहीं किया। इटावा के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को किसान परिवार में जन्मे मुलायम ने 1967 में लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जसवंतनगर के विधायक के तौर पर सियासत का सफर शुरू किया था और लोहिया का निधन होने पर अगले साल 1968 में ही चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल का दामन थाम लिया था।

1989 में वीपी सिंह के साथ जुड़कर मुलायम मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन, अगले ही साल 1990 में केंद्र की वीपी सिंह सरकार गिरी तो चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए कांग्रेस का भी समर्थन जुटा लिया। कांग्रेस ने झटका लिया तो 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन कर बसपा से गठबंधन कर लिया। 1995 में गेस्टहाउस कांड के बाद बसपा का भी साथ छूट गया।

सियासी सफरनामा

-पहली बार 1967 में विधायक बने, फिर 1996 तक आठ बार विधायक चुने गए

– इमरजेंसी में 19 महीने जेल में भी रहे

– 1982-85 तक यूपी विधान परिषद के सदस्य रहे

– 1985-87 तक प्रदेश की विधानसभा में नेता विपक्ष रहे

– 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने

– 1991 में सरकार गिरने के बाद 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई

– 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक भी वह मुख्यमंत्री रहे

– 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री बने

– 2017 में पुत्र अखिलेश ने खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया

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