यहां ड्रेनेज सिस्टम न बनने से दम तोड़ रहा निर्मल गंगा अभियान – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Sun, 16 Jun 2019 10:48:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 यहां ड्रेनेज सिस्टम न बनने से दम तोड़ रहा निर्मल गंगा अभियान, http://www.shauryatimes.com/news/45553 Sun, 16 Jun 2019 10:48:31 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=45553 गंगा को निर्मल और प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार ने भले ही नमामि गंगे योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर दिए। मानसून समय के लिए गंगा को प्रदूषण मुक्ति के लिए कोई योजना ऋषिकेश क्षेत्र में धरातल पर नहीं उतर पाई है। इससे निर्मल गंगा अभियान दम तोड़ता नजर आ रहा है।

क्षेत्र में चार दशक पुरानी सीवर लाइन बिछाई गई थी। पूर्व में सड़कों के किनारे पर्याप्त नालियों का निर्माण नहीं हुआ। मोहल्लों और गलियों की नालियों को सीधे सीवर लाइन के चेंबर से जोड़ दिया गया। यह स्थिति अभी भी यथावत है। नगर क्षेत्र में करीब 150 नालियों को इसी तरह से सीवर लाइन से जोड़ा गया है। सामान्य दिनों में नालियों के जरिये ठोस अवशिष्ट जैसे पानी की बोतल, कपड़े, जूते चप्पल आदि सीवर चेंबर में पहुंचते रहते हैं। जिस कारण आए दिन सीवर लाइन चोक हो जाती है।

रेलवे रोड, देहरादून रोड, दून तिराहा, घाट चौराहा, यात्रा बस अड्डा आदि ऐसे इलाके हैं। जहां जगह-जगह सीवर चेंबर ओवरफ्लो होकर सड़क पर बहते रहते हैं। सीवर का यह गंदा पानी सड़क से होकर नाली में जाता है और नाली से सीधे नालों में मिलकर गंगा में समा जाता है। ऐसे में गंगा प्रदूषण मुक्ति को लेकर विभाग और सरकारों में बैठे लोगों के गंगा को प्रदूषण मुक्ति के दावे बेमानी साबित होते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मायाकुंड पंङ्क्षपग स्टेशन मानसून के दौरान काम करना बंद कर देता था। त्रिवेणी घाट के सीवर चेंबर पूरे दिन ओवरफ्लो होते थे और पक्के घाट में इनका पानी फैल जाता था। जो सीधे गंगा में मिलता था।

सरकार ने इस समस्या से मुक्ति के लिए त्रिवेणी घाट में चार एमएलडी क्षमता का पंङ्क्षपग स्टेशन तैयार किया। इस पंङ्क्षपग स्टेशन से सीवरेज सीधे लक्कड़ घाट स्थित सीवेज प्लांट में पहुंच जाता है। वर्षा काल में गंगा का जलस्तर बढ़ जाता है। इस पंङ्क्षपग स्टेशन की लिफ्टिंग और धारण क्षमता के लेबल से ऊपर गंगा का लेबल हो जाता है। ऐसी स्थिति में पूरे शहर का ड्रेनेज जिसमें नालियों का पानी और सीवर लाइन से ओवरफ्लो होकर मिलने वाला सीवर भी शामिल होता है। वह सरस्वती नाले के जरिये सीधे गंगा में मिलता है। जबकि इस सीवर के पानी को पंपिंग स्टेशन के जरिये आगे भेजने की व्यवस्था है।

मगर मानसून सत्र में यह व्यवस्था साथ देना छोड़ देती है। गंगानगर जैसी बड़ी आबादी वाले क्षेत्र में एक मीटर की नालियां है। यहां बरसात में जलभराव होता है। इन नालियों को छह इंच की सीवर लाइन के चेंबर से जोड़ा गया है। शहरी विकास निदेशालय की टीम तीन सप्ताह पूर्व यहां आकर नमामि गंगे के तहत होने वाले कार्यों का निरीक्षण कर चुकी है। इस दौरान अधिकारियों का कहना था कि देशभर में चयनित पांच हाईटेक शहरों में ऋषिकेश को भी शामिल किया गया है।

इस तरह के हाईटेक शहर में गंगा का प्रदूषण मुक्ति ना होना व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जब कभी भी उच्च स्तरीय समितियों या नमामि गंगे के अधिकारियों की बैठकें हुई हैं। उनमें यह बात प्रमुखता के साथ उठाई जाती रही है कि कृषि के क्षेत्र में आबादी की नालियों को सीवर चेंबर से अलग किया जाए और अलग से ड्रेनेज सिस्टम विकसित किया जाए। विभागों के प्रस्ताव में यह बात शामिल होती रही है मगर इस पर योजना अब तक नहीं बन पाई है।

पेयजल निगम की गंगा विंग के सहायक अभियंता हरीश बंसल ने बताया कि शहरी क्षेत्र में करीब 150 जगह गलियों और मोहल्ले की नालियों को सीवर चेंबर से जोड़ा गया है। वहां पर जालियां टूटी हुई है। जबकि नालियों को सीवर लाइन से अलग रखकर इसके लिए पृथक ड्रेनेज सिस्टम बनाए जाने की जरूरत है। विभाग की ओर से उच्चाधिकारियों को लिखा गया था।

वहीं, मुख्य नगर आयुक्त चतर सिंह चौहान ने कहा कि जहां कहीं भी सीवर चेंबर से नालियों को जोड़े जाने की जानकारी मिलती है वहां नगर निगम की टीम कार्रवाई कर इसे अलग करती है। पूरे नगर क्षेत्र में व्यापक सर्वे कराने के बाद नालियों को सीवर चेंबर से पृथक किया जाएगा। ड्रेनेज सिस्टम विकसित करने के लिए प्रभावी योजना बनाई जाएगी।

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