रांची का रिम्स विपक्षी महागठबंधन की सियासी डील का केंद्र बना हुआ है – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Mon, 31 Dec 2018 11:17:48 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 रांची का रिम्स विपक्षी महागठबंधन की सियासी डील का केंद्र बना हुआ है http://www.shauryatimes.com/news/25345 Mon, 31 Dec 2018 11:17:48 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=25345 राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव पटना से दूर रांची के रिम्स (अस्पताल) में रहकर भी महागठबंधन के सारे खेल के रेफरी बने हुए हैं। गठबंधन में शामिल दलों के प्रमुख नेताओं का रांची दौरा बता रहा है कि सीट बंटवारे में आने वाली तमाम अड़चनों और समस्याओं का समाधान सिर्फ लालू के पास है। तभी हर हफ्ते महागठबंधन के बड़े नेताओं ने रांची का फेरा बढ़ा दिया है। अगले हफ्ते किसी न किसी का फिर जाना तय है।

लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला में सजायाफ्ता हैं। वे रांची के होटवार जेल में सजा काट रहे हैं। उनकी तबीयत खराब है, इसलिए फिलहाल इलाज के लिए रांची के रिम्स में रखा गया है। लोग जाते हैं सेहत का हाल जानने, लेकिन मकसद सियासत होता है।

कांग्रेस नेता अधिक कर रहे परिक्रमा

कांग्रेस के नेता कुछ ज्यादा ही परिक्रमा कर रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी और राज्यसभा सदस्य अखिलेश प्रसाद सिंह कई बार लालू के दरबार में दस्तक दे चुके हैं। कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा को अगर अपवाद मान लिया जाए तो पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार शकील अहमद और दिग्विजय सिंह भी रांची का दौरा कर चुके हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय तो रांची के ही रहने वाले हैं। मौका मिलते ही रिम्स में लालू की सुध लेने पहुंच जाते हैं।

हर सप्‍ताह नेता कर रहे मुलाकात

अभी दो दिन पहले उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को लेकर तेजस्वी यादव ने लालू से मुलाकात की। जेल नियमों के तहत लालू से प्रत्येक शनिवार सिर्फ तीन लोगों की ही मुलाकात की इजाजत है। अगर तीन की बंदिश नहीं होती तो अखिलेश प्रसाद सिंह और शरद यादव भी इसी मकसद से दिल्ली से रांची पहुंचे थे। उन दोनों की मुलाकात भी तय थी।

महागठबंधन के फैसलों की धुरी बने लालू

जाहिर है, हिन्दी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के बाद भी बिहार में कांग्रेस का लालू के बिना काम चलता नहीं दिख रहा है। बिहार में 22 सांसदों वाली भाजपा का दो सांसदों वाली पार्टी जदयू के साथ बराबरी के आधार पर सीट बंटवारे की मजबूरी से भी कांग्रेस ने कोई सबक नहीं ग्रहण किया है। तभी तो महागठबंधन में किस दल को स्वीकार करना है और किसे इनकार, किसे कितनी और कौन सी सीट देनी है, अभी भी सब रांची से ही तय किया जा रहा है।

लालू की अहमियत के पीछे उनका जनाधार

लालू की राजनीतिक अहमियत के पीछे उनका अपना जनाधार है। महागठबंधन को उनके साथ यादव व अल्‍पसंख्‍यक वोटों की गोलबंदी की उम्‍मीद है। साथ ही वे देश में भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में एक चेहरा बनकर भी उभरे हैं। इस कारण जेल में भी उनका आशीर्वाद लेने व उनकी राय जानने के लिए नेताओं का जाना जारी है।

अगले सप्‍हाह होगी मांझी की मुलाकात

अगले हफ्ते हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतन राम मांझी भी रांची जाने वाले हैं। प्रदेश कांग्रेस का कोई न कोई नेता भी उनका साथ दे सकता है। साफ है, बिहार में कांग्रेस अभी भी लालू की गोद को ही मुफीद मानकर चल रही है।

कांग्रेस की भी कम नहीं सीटों की हैसियत

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन और सांसदों की संख्या के आधार पर बिहार में कांग्रेस-राजद की सियासी हैसियत में ज्यादा का फर्क नहीं रह गया है। सांसद पप्पू यादव के लालू परिवार से अलग राह पकड़ लेने के बाद राजद के खाते में तीन सांसद बचे हैं और कांग्रेस के पास दो। एनसीपी और संसद की सदस्यता छोड़कर तारिक अनवर के साथ आ जाने से भी कांग्रेस को बिहार में मजबूती मिली है। कांग्रेस के सामने जदयू भी उदाहरण के रूप में है, जिसके सिर्फ दो सांसद हैं, किंतु 22 सदस्यों वाली भाजपा से बराबरी के आधार पर समझौता किया है।

]]>