लेकिन सच्चाई जान हो गया हैरान – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Thu, 12 Dec 2019 12:14:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 अमेरिका ने इस गांव को समझा लिया था मिसाइल गोदाम,लेकिन सच्चाई जान हो गया हैरान http://www.shauryatimes.com/news/69205 Thu, 12 Dec 2019 12:14:51 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=69205 दुनिया में आप किसी भी देश में घूमने निकल जाएं, हमें हैरान करने वाले तमाम छोटे-बड़े अजूबे मिल ही जाते हैं। चीन को ही ले लीजिए। चीन के पूर्वी इलाके में स्थित फुजियान प्रांत में ऐसे ही अजूबे जंगलों और पहाड़ों के बीच छुपे हुए हैं। ये अजूबे हैं मिट्टी के बने किले, जिन्हें स्थानीय भाषा में टुलो कहा जाता है। टुलो का अर्थ होता है, मिट्टी की बनी इमारतें। ये कोई आम इमारतें नहीं हैं। असल में ये विशाल किले हैं, जिनके भीतर बस्तियां आबाद हैं। इन किलो की अनोखी बनावट ही आकर्षक का केंद्र है. हर इमारत के अंदर कई-कई मुहल्ले बसे हुए हैं।

बाहर से देखने पर कोई भी टुलो आपको आम मिट्टी की इमारत जैसा ही लगेगा। मगर अंदर घुसने पर हमें पता चलता है कि ये तो किले जैसा है। अंदर मुहल्ले के मुहल्ले बसे हुए हैं। पूरी जिंदगी इन्हीं के भीतर गुजरती है। आम तौर पर टुलो एक आंगन के इर्द-गिर्द बनाया जाता है। इसके चारों तरफ घेरेबंदी जैसी करके तीन से चार मंजिला इमारत खड़ी की जाती है। बाहर से ये बेहद मजबूत होते हैं। किसी खतरे की सूरत में ये मजबूत दीवारें, भीतर रहने वाले लोगों की सुरक्षा करती हैं। इन शानदार इमारतों के भीतर आबाद लोग, इन दीवारों के अंदर खुद को और अपनी परंपरा को महफूज रखते आए हैं।  बाहरी दुनिया के लोगों का इनके भीतर जाना मना था। टुलो के अंदर जाने पर आपको कतार से बने लकड़ी के बने कमरे मिलेंगे। आम तौर पर ग्राउंड फ्लोर पर किचेन बने होते हैं। इनके ऊपर की मंजिल पर अनाज रखने का इंतजाम होता है। इनके ऊपर की दो मंजिलें बेडरूम के तौर पर इस्तेमाल होती हैं। सैकड़ों सालों से यहां लोग रह रहे हैं।

शीत युद्ध के दौरान इन किलों को अमेरिका ने मिसाइल सिलो समझ लिया था, जहां मिसाइलें छुपाकर रखी गई थीं। दुनिया को बाद में जाकर इनकी सच्चाई पता चली। इन टुलो को सोलहवीं से बीसवीं सदी के बीच बनाया गया था। 2008 में यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया था।

आपको जानकारी के लिए बता दे की जब चीन में आर्थिक सुधार शुरू किए, तो इन टुलो में रहने वाले बहुत से लोग शहरों में जाकर बस गए। ये शानदार इमारतें वीरान होने लगी थीं। मगर जैसे-जैसे तरक्की हुई और इनकी शोहरत दूर-दराज तक फैली, यहां सैलानियों का आना शुरू हुआ।  चीन के लोग मेहमाननवाजी के लिए भी मशहूर हैं। यहां परंपरा के अनुसार पूरा परिवार एक साथ खाना खाता है। जियांग शहर में शायद यही जिंदगी मिस कर रहे थे। टुलो में वापसी से उन्हें अपनी खोई हुई जिंदगी वापस मिल गई है।

इन टुलो में सैलानियों का बहुत आना-जाना रहता है। लेकिन यहां के बाशिंदे इससे परेशान नहीं होते। वो अपनी निजी जिंदगी में इस ताक-झांक को अच्छा मानते हैं, क्योंकि सैलानी आते हैं, तो उनका कारोबार बेहतर होता है। अगर सैलानियों का आना कम हो जाता है, तब यहां के लोगों को फिक्र हो जाती है। चीन के ये मिट्टी के किले, वाकई पूरब की सभ्यता के शानदार प्रतीक माने जाते हैं।

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