Appeal to CM to cancel the proposal for privatization of Purvanchal Vidyut Vitran Nigam – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Sat, 25 Jul 2020 10:09:58 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की सीएम से अपील http://www.shauryatimes.com/news/80914 Sat, 25 Jul 2020 10:07:33 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=80914 विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने निजीकरण शुरू होने पर दी आन्दोलन की चेतावनी

लखनऊ। विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द किया जाये और ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व अभियंताओं को विश्वास में लेकर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण में चल रहे सुधार के कार्यक्रम सार्वजनिक क्षेत्र में ही जारी रखे जाये जिससे आम जनता को सस्ती और गुणवत्ता परक बिजली मिल सके। संघर्ष समिति ने कहा कि 05 अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से लिखित समझौता किया है कि प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा ऐसे में अब निजीकरण की बात करना समझौते का खुला उल्लंघन है। संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि ऊर्जा निगमों में कही भी निजीकरण करने की कोशिश हुई तो इसका प्रबल विरोध होगा और बिजली कर्मी आंदोलन करने को बाध्य होंगे।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने शनिवार को कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा द्वारा महामारी के दौर में बिजली कर्मियों द्वारा निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाये रखने की बार बार प्रशंसा किये जाने के बाद भी 23 जुलाई को केंद्रीय विद्युत् मंत्री के साथ हुई वार्ता में पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के समाचारों से बिजली कर्मियों को भारी निराशा हुई है और उनमे आक्रोश व्याप्त है। उन्होंने कहा कि बिजली कर्मी ऊर्जा निगमों के सबसे प्रमुख स्टेक होल्डर हैं ऐसे में बिजली कर्मियों को विस्वास में लिए बिना नौकरशाहों के प्रस्ताव पर निजीकरण करना सर्वथा गलत और टकराव बढ़ाने वाला कदम होगा।

संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि प्रबंधन द्वारा रखे गए निजीकरण के ऐसे किसी भी प्रस्ताव को वे व्यापक जनहित में पूरी तरह खारिज कर दें। संघर्ष समिति ने कहा है कि नौकरशाही के दबाव में किया गया बिजली बोर्ड का विघटन और निगमीकरण पूरी तरह विफल रहा है। वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड के विघटन के समय मात्र 77 करोड़ रुपये का सालाना घाटा था जो अब 95,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है इसके बावजूद निगमीकरण पर पुनर्विचार करने के बजाये प्रबन्धन निजीकरण का प्रस्ताव देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहता है जिससे बिजली कर्मियों में भारी रोष है। संघर्ष समिति ने यह भी मांग की कि निजीकरण का एक और प्रयोग करने के पहले 27 साल के ग्रेटर नोएडा के निजीकरण और 10 साल के आगरा के फ्रेंचाइजीकरण की समीक्षा किया जाना जरूरी है।

 

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