both are their children! – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Thu, 23 Jan 2020 17:17:36 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 बेटा-बेटी एक समान, दोनों हैं अपनी सन्तान! http://www.shauryatimes.com/news/75514 Thu, 23 Jan 2020 17:17:17 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=75514 24 जनवरी : राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष
पं.हरि ओम शर्मा ‘हरि’
पं.हरि ओम शर्मा ‘हरि’

‘लड़की-लड़का एक समान, दोनों है अपनी सन्तान, इसमें भेद करे जो कोई, वह है अज्ञानी नादान’ गुनगुनाते हुए नारद जी मेरी ही तरफ चले आ रहे थे, सो मैने लपककर महर्षि जी के चरण स्पर्श करते हुए पूछा कि मुनिवर अभी आप यह क्या गुनगुना रहे थे। बेटा-बेटी, अज्ञान-नादान वादान! कृपया अपने अथाह ज्ञान के स्रोत में से दो-चार बूंद ज्ञान की टपकाकर मुझे भी अनुग्रहीत करने की कृपा करें प्रभु! मेरी इस कातरवाणी को सुनकर नारद जी मुस्कराये, झल्लाये, कुछ विचलित व गम्भीर होते हुए बोले, यही तो विकट समस्या है हरिओम! आज का यह तथाकथित ज्ञानी व बुद्धिजीवी, अपने आपको ईश्वर, खुदा, गॉड व गुरूनानक से भी अधिक शक्तिशाली व बुद्धिजीवी समझने लगा है। वह इतना अहंकारी हो गया है कि वह न रामायण की सुनता है, न वेदों की सुनता है, न गीता की बात मानता है, न ही कुरान की शिक्षाये मानता है और न ही बाइबिल से सीख लेता है, न गुरुवाणी की शिक्षाएं उसके गले के नीचे उतरती है। तभी तो वह प्रकृति के काम में दखलंदाजी कर रहा है। जो काम ऊपर वाले का है, उसको खुद ही निपटा रहा है। इन अज्ञानियों को इतना भी नहीं मालूम है कि जीवन-मरण, यश और अपयश, ईश्वर के हाथ है।

आज बुद्धिजीवियों के अहम् को देखकर रावण भी अट्टहास कर कह रहा है कि हे अज्ञानियों! तुम तो मुझसे भी अधिक अज्ञानी हो। मैं तो चारों वेदों का ज्ञाता था, प्रकाण्ड पंडित था, सोनेे के महल में निवास करता था, शिवजी का परम भक्त था, लाखों की संख्या में मेरे नाती-पोते व परपोते थे। काल को मैंने अपने वश में कर रखा था। तब जाकर मैंने ईश्वर को ठेंगा दिखाया था। एक तुम हो कि बिना शक्ति व ज्ञान के भी अपने को शक्तिशाली व ज्ञानी समझ बैठे हो और अपने को ईश्वर से अधिक ज्ञानी समझ रहे हो। वास्तव में तुम्हारे सामने तो मैं भी नतमस्तक हूँ, तुम्हारे अहम् के सामने तो मेरा अहम् भी लज्जित हो रहा है। मैने बीच में ही नारद जी की बात काटते हुए कहा, क्षमा करें देवर्षि जी, यह परम ज्ञान की बातें तो मेरे सिर के ऊपर से होकर निकली जा रही है। मेरे कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रहा है प्रभु! मैं आपसे विनती करता हूँ नारद मुनि कि मैं अज्ञानी हूँ, अनपढ़ हूँ व गँवार हूँ। अतः मुझे कुछ अल्पज्ञान की बातें बतायें प्रभु। यह परम ज्ञान की बातें मेरी समझ से परे की बात है।

मेरी दीनता-हीनता व याचना भरी बातों को सुनकर नारद जी मुस्कराते हुए बोले, वास्तव में ही हरिओम तू बड़ा भोला है। अतः तुझे मैं अपने मन की बात बताता हूँ कि वह इसलिए कि पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी व ज्ञानी तो मेरी बात मानने सुनने के लिए तैयार नही है। सो मैं तुझ जैसे अल्पज्ञानी व भोले इन्सान की खोज में ही नर्कलोक पधारा था। सो आज किस्मत से तू मिल गया। नारद जी मेरी तरफ देख-देखकर ऐसे हर्षित, मगन और प्रफुल्लित हो रहे थे जैसे किसी कवि को कोई कविता सुनने वाला एक अदद इन्सान मिल जाता हैं। चाहे वह भले ही रिक्शेवाला, तांगेवाला, झाूड़ूवाला, कबाड़ीवाला या फेरीवाला ही क्यों न हो। सो नारद जी की बांझे खिलती देख मेरा भी मन गुदगुदाने गया। मेरा रोम-रोम पुलकित होने लगा। मैने पुलकित होते हुए कहा कि अपने ज्ञान की वर्षा करें प्रभु, मैं सुनने के लिए तैयार हूँ। इतना सुनते ही नारद जी बोले, तो तू तैयार है। मैं बोला, हां प्रभु तैयार हूँ। नारद जी बोले, अच्छा पहले तिरवाचा भर कि मैं यह ज्ञान की बात किसी बुद्धिजीवी व ज्ञानी को नहीं बताऊँगा। मैने तिरवाचा भरते हुए कहा कि मुनिवर, आज आप द्वारा बतायी गई यह ज्ञान की बात मैं किसी बुद्धिजीवी को नहीं बताऊँगा, नहीं बताऊँगा, नहीं बताऊँगा। मेरे तिरवाचा को सुनकर नारद जी आश्वस्त होते हुए बोले कि अब तू दोनों कान खोलकर सुन, लड़का और लड़की दोनों एक ही समान है, जो इसमें भेद करता है वह अज्ञानी और नादान है। चाहे वह अपने को कितना अगड़ा व बुद्धिजीवी व परम ज्ञानी ही क्यों न समझे। ईश्वर की दृष्टि में भेद करने वाला इन्सान अज्ञानी, नादान व पापी है। अतः लड़का व लड़की में भेद नहीं करना चाहिए।

जिस तल्लीनता से तुम अपने लड़के की पढ़ाई-लिखाई करते हो, उससे भी अधिक तल्लीनता से अपनी लड़की की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो क्योंकि लड़की दो परिवारों की जिम्मेदारी संभालती है। जिस प्रकार तुम अपने लड़के का लालन-पालन, खान-पान व वस्त्रादि पर ध्यान देते हो, उससे भी अधिक बेटी के खान-पान व स्वास्थ्य पर ध्यान दो। वह इसलिए कि लड़की इस सृष्टि की जननी है, उसको आगे की सृष्टि की संरचना करनी है। जैसा लड़की का स्वास्थ्य होगा, वैसा ही हमारी भावी पीढ़ी का स्वास्थ्य होगा। अतः लड़की के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। लड़की, लड़के से अधिक जिम्मेदार है और वह घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी बखूबी निभाती है। साथ ही अपने माता-पिता व अपने सास-ससुर दोनों के मान-सम्मान, स्वाभिमान का अधिक खयाल रखती है जबकि लड़का अपने माता-पिता व सास-ससुर की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। इन दोनों को अपमानित व प्रताणित करते हैं। इतने पर भी यह तथाकथित ज्ञानी लोग अज्ञान के वशीभूत होकर लड़की व लड़का के लालन-पालन में भेदभाव करते हैं।

इतना ही नहीं, यह ज्ञानी लोग ऐसे अज्ञानता के चंगुल में फंस गये हैं कि पत्नी के गर्भ धारण करते ही अल्ट्रासाउंड द्वारा पता लगाते हैं कि गर्भ में लड़की है या लड़का। लड़की का पता लगते ही उसको गर्भ में मार डालते हैं अर्थात डाक्टर की मदद से लड़की की भ्रूण हत्या कर देते हैं। लड़की की भ्रूण हत्या कर अपने हाथ खून से रंग लेते हैं। इतने पर भी यह अज्ञानी लोग अपने को ज्ञानी होने का ढिंढोरा पीटते हैं। यह सब कहते-कहते नारद जी फिर आवेश मे आ गये। क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया, होठ फड़फड़ाने लगे। मैं किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा कि कहीं नारद जी क्रोध के वशीभूत होकर इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को निःसंतान होने का श्राप न दे दें। इस भय से मैं नारद जी के चरणों में गिरकर सुबकने लगा। मेरी यह दशा देखकर नारद जी का दिल थोड़ा पिघला। वह मुझे उठाकर गले लगाते हुए बोले, तू क्यों रोता है? तू कोई बुद्धिजीवी व ज्ञानी थोड़े ही है जो तू डर से कंपकंपा रहा है? नहीं प्रभु, मै अपनी खातिर नहीं, मैं तो उन तथाकथित ज्ञानियों की खातिर डर रहा था कि कहीं आप उनको इस घोर अपराध के लिए कोई श्राप न दे दें।

इतना सुनते ही नारद जी फिर तनाव में आ गये और कुपित होते हुए बोले, तू इन तथाकथित ज्ञानियों का दलाल है क्या? जो इनकी सिफारश कर रहा है। चल पीछे हट, पापी कहीं के! अरे नालायक! तू गीता के ज्ञान को भी नकार रहा है जिसमें लिखा है ‘‘जैसा कर्म करेगा बंदे, फल देगा भगवान, यह है गीता का ज्ञान, यह है…..’’। तू कुरान की शिक्षाओं को भी नकार रहा है जिसमें हिदायत दी गई है – ‘जैसी करनी वैसी भरनी’, तू गूरुवाणी की भी उपेक्षा कर रहा है जिसमें साफ लिखा है – ‘ जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा’, तू बाइबिल को भी नकार रहा है जिसमें साफ अंकित है कि ‘टिट फॉर टैट अर्थात जैसे को तैसा’। अरे पापी कहीं के! ऊपर वाले के यहां देर है, अंधेर नहीं। एक अबला का अपहरण करने वाले रावण को जब ईश्वर ने नहीं बख्शा और एक अबला का सरेआम अपमान करने वाले दुर्योधन को नहीं छोड़ा और एक कन्या की हत्या का प्रयास करने वाले कंस को जिन्दा नहीं छोड़ा तो इन मासूम कन्याओं की गर्भ में हत्या करने वालों को ऊपर वाला कैसे माफ कर सकता है? सो हे तथाकथित ज्ञानियों! बुद्धिजीवियों! जो तुम छिप-छिपकर रात के अंधेरे में डाक्टर के साथ मिलकर जो लड़की की भ्रूण हत्या कर जघन्य अपराध कर रहे हो, उसको ऊपर वाला देख रहा है, जिसकी सजा तुमको आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों, चाहे लग जायें बरसों, परन्तु सजा अवश्य मिलेगी। क्योंकि ईश्वर के यहां देर है, अंधेर नहीं। ऐसा कहकर नारद जी अन्तर्ध्यान हो गये। मेरी आँख खुली तो पता चला कि मैं तो सपना देख रहा था किन्तु सपने में ही सही, नारद जी कह तो सोलह आने सच गये है।

]]>