NDA शासन में बैंकों के NPA में 6.2 लाख करोड़ की बढ़त: संसदीय समिति – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Tue, 28 Aug 2018 06:10:59 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 NDA शासन में बैंकों के NPA में 6.2 लाख करोड़ की बढ़त: संसदीय समिति http://www.shauryatimes.com/news/9604 Tue, 28 Aug 2018 06:10:59 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=9604 तमिलनाडु में डीएमके की सियासत में 49 साल के बाद मंगलवार को नेतृत्व परिवर्तन हो गया. एम. करुणानिधि के निधन के बाद उनके बेटे एम. के स्टालिन को अध्यक्ष चुन लिया गया. स्टालिन को परिवार में अपने बड़े भाई एम. के. अलागिरि से जहां चुनौतियों का सामना करना है. वहीं,  राज्य में बदलते राजनीतिक समीकरण भी उनके सामने किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं.  NDA शासन में बैंकों के NPA में 6.2 लाख करोड़ की बढ़त: संसदीय समिति

बता दें कि करुणानिधि ने अपने जीते जी वाइको जैसे अपने विश्वस्त पार्टी के सिपहसलार को पीछे ढकेल कर स्टालिन के लिए राजनीतिक जगह बनाई. लेकिन स्टालिन को पूरी स्वायत्तता नहीं दी और वीटो अपने पास रखा. लेकिन आज उन्हें पार्टी की कमान औपचारिक तौर पर सौंपी जा रही है.

करुणानिधि को अपने जीवन काल में ही उत्तराधिकारी स्टालिन और बेटे एम के अलागिरी के बीच संघर्ष से रूबरू होना पड़ा था. स्टालिन के विरोध के चलते करुणानिधि ने 2014 में अलागिरी को पार्टी से पार्टी से निष्कासित कर दिया था. करुणानिधि के निधन के बाद अलागिरी ने स्टालिन के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं. अलागिरी ने 5 सितंबर को एक बड़ी रैली बुलाई है. इस रैली के साथ ही वह अपनी भविष्य की रणनीति का ऐलान कर सकते हैं.

अलागिरी अगर नई पार्टी बनाते हैं तो उन्हें स्टालिन के विरोधियों का साथ मिल सकता है. ऐसे में दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्टालिन को काफी नुकसान पहुंच सकता है. अलागिरी इसीलिए अपने आपको करुणानिधि के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर रहे हैं.

स्टालिन के सामने करुणानिधि की विरासत को आगे ले जाने की सबसे बड़ी चुनौती है. करुणानिधि बड़े-बड़े दिग्गजों (जैसे कि पेरियार रामास्वामी, सीएन अन्नादुरई, कामराज, एमजी रामचंद्रन, सी राजगोपालाचारी) के बीच जगह बनाने में कामयाब हुए थे. जबकि स्टालिन को अभी अपने आपको साबित करने की सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि स्टालिन को करुणानिधि ने नेतृत्व का प्लेटफार्म प्रदान किया और करुणानिधि के बेटे होने से उन्हें पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं का सम्मान भी मिल रहा है, लेकिन पार्टी को सत्ता में लाने की सबसे बड़ी चुनौती है.

2019 के लोकसभा और उपचुनाव

स्टालिन के नेतृत्व की पहली परीक्षा 2019 का लोकसभा चुनाव है. स्टालिन के नेतृत्व में लड़े 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार मिली थी. इससे पहले 2011 में डीएमके ने राज्य में सत्ता गंवा दी थी और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी मात मिली थी. इस तरह से आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को जिताने की एक बड़ी जिम्मेदारी स्टालिन के कंधों पर होगी. एआईएडीएमके के खिलाफ केवल सत्ता विरोधी लहर के भरोसे चुनाव जीतना आसान नहीं है, क्योंकि राज्य में कई राजनीतिक विकल्प खड़े हो रहे हैं. ऐसे में स्टालिन को मतदाताओं के बीच अपनी अपील को बढ़ाने और उनका भरोसा जीतने की सबसे बड़ी चुनौती है.

उपचुनाव होगा लिट्मस टेस्ट

स्टालिन के नेतृत्व की पहली परीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले थिरुपरनकंद्रुम और तिरुवरुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव होगा. उपचुनाव जीतने के अलावा स्टालिन को पार्टी में वरिष्ठों के साथ संतुलन करना होगा और उन्हें करुणानिधि के बाद एक साथ लेकर चलने की चुनौती है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उपचुनाव में जीत ही पार्टी के भीतर और बाहर स्टालिन का आलोचकों को जवाब होगा.

तमिल सियासत में कमल हासन-रजनीकांत

तमिलनाडु की सियासत में दो बड़े स्टार एंट्री कर चुके हैं. कमल हसन और राजनीकांत ने अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर राज्य में अपने स्टारडम का फायदा उठाना चाहते हैं. दोनों अभिनेताओं के अच्छे खासे फैन हैं, जिनके भरोसे वे राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं. दक्षिण की राजनीति में कई अभिनेताओं ने अपने स्टारडम का फायदा उठाया भी है. ऐसे में स्टालिन के सामने कमल हसन और रजनीकांत एक बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं.

बीजेपी एंट्री करने की जुगत में  

तमिलनाडु की सियासत में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं है. इसके बावजूद बीजेपी ने राज्य में उम्मीदें नहीं छोड़ी है. बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के जरिए अपनी जड़ें जमाना चाहती है. इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष कई बार राज्य का दौरा कर चुके हैं. करुणानिधि की बीमारी के दौरान मोदी उन्हें देखने गए और निधन के बाद अंतिम संस्कार में भी पहुंचे. इसके अलावा जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके में जिस तरह से राजनीतिक उथल पुथल हुई है. उससे बीजेपी को उम्मीद नजर आई हैं. बीजेपी के पास रजनीकांत भी एक विकल्प के रूप में हैं. इसके अलावा बीजेपी के पास मोदी जैसा कद्दावर चेहरा है. ये डीएमके के लिए बड़ी चुनौती है.

स्टालिन कैसे करेंगे जोड़-तोड़?

करुणानिधि राजनीतिक जोड़-तोड़ में माहिर थे. इसी का नतीजा था कि कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी से गठबंधन कर लेते थे, वैसा अनुभव स्टालिन को नहीं है. उन्होंने अब तक किसी अन्य पार्टी से गठबंधन नहीं किया है. कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन है. स्टालिन के अधिकांश सलाहकार भी पेशेवर हैं जिन्हें राजनीतिक उखाड़-पछाड़ का कोई अनुभव नहीं है.

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NDA शासन में बैंकों के NPA में 6.2 लाख करोड़ की बढ़त: संसदीय समिति http://www.shauryatimes.com/news/9601 Tue, 28 Aug 2018 06:03:37 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=9601 एक संसदीय समिति के अनुसार एनडीए के शासनकाल में बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) में 6.2 लाख करोड़ रुपये की बढ़त हुई है. समिति की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह से बैंकों को 5.1 लाख करोड़ रुपये तक की प्रोविजनिंग करनी पड़ी है. इस रिपोर्ट को वित्त समिति ने सोमवार को मंजूर किया है.  NDA शासन में बैंकों के NPA में 6.2 लाख करोड़ की बढ़त: संसदीय समिति

यह आंकड़ा मार्च 2015 से मार्च 2018 के बीच का है. जब कोई लोन वापस नहीं मिलता है तो बैंक को उस रकम की व्यवस्था किसी और खाते से करनी होती है, इसे ही प्रोविजनिंग कहते हैं. कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस समिति ने इसके लिए‍ काफी हद तक रिजर्व बैंक को जिम्मेदार माना है. समिति ने RBI से सवाल किया है कि वह आखिर दिसंबर, 2015 में हुई एसेट क्वालिटी की समीक्षा (AQR) से पहले जरूरी उपाय करने में विफल क्यों रहा? 

सूत्रों के मुताबिक आरबीआई को यह पता लगाने की जरूरत है कि आखिरकार AQR से पहले दबाव वाले खातों के शुरुआती संकेत क्यों नहीं मिल सके? यह रिपोर्ट संसद के शीतकालीन सत्र में पेश की जाएगी.

इस समिति के सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल थे. समिति ने इसकी वजह जाननी चाही है कि आखिर क्यों कर्जों के रीस्ट्रक्चरिंग (वापसी की शर्तों में फेरबदल) के द्वारा दबाव वाले खातों को एनपीए बनने दिया जा रहा है?

सूत्रों के अनुसार, नॉन परफॉर्मिंग एसेट या फंसे कर्जों के बढ़ने की समस्या इस सरकार को विरासत में मिली है और इसमें रिजर्व बैंक ने भी वाजिब भूमिका नहीं निभाई है.

रिपोर्ट में यह मसला भी उठाया गया है कि भारत में कर्ज-जीडीपी अनुपात दिसंबर, 2017 में महज 54.5 फीसदी है, जबकि यह चीन में 208.7 फीसदी, यूके में 170.5 फीसदी और यूएसए में 152.2 फीसदी है.

गौरतलब है कि क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2018 में देश में बैंकों का कुल एनपीए करीब 10.3 लाख करोड़ रुपये था.

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