Now we are Allahabad students! – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Wed, 08 Jan 2020 11:13:58 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 …अब हम तो ठहरे इलाहाबादी छात्र! http://www.shauryatimes.com/news/73177 Wed, 08 Jan 2020 11:08:51 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=73177 -दिवाकर दुबे

कल की जेएनयू की घटना की मीडिया सोशल मीडिया कवरेज देखकर हमारा मन भयंकर कुंठा में है। हॉलैंड हॉल, एसएसएल, जीइन झा और केपीयूसी हॉस्टलों की दीवारों और छात्रसंघ भवन से सटी दीवारों पर कितने बम तो खाली इस टेस्टिंग में फोड़ दिए गए होंगे कि गुरु! आवाज किसकी दमदार थी। कर्नलगंज थाने से तो हम छात्रों का का गजब का रिश्ता था। अक्सर यहाँ का थानेदार विश्वविद्यालय के किसी छात्रावास का पुरा अन्तःवासी होता ही है। इस लिहाज से हम उन्हें अपना सीनियर ही मानते थे। लेकिन विरोध की स्थिति में हम अपना फ़र्ज़ पूरी शिद्दत से निभाते थे। हम छात्र धर्म पुलिस वाले कानून का धर्म। हम उन्हें धिक्कारते थे, ललकारते थे पुलिस वाले फटकारते थे, कूटते थे पुचकारते थे। कुछ चिर युवा छात्र नेता ही हमारे पंच परमेश्वर थे।हर लड़ाई के बाद कॉफी हॉउस में बैठकर सर्वमान्य समझौता वही करा देते थे। कभी किसी बड़े नेता विधायक की जरूरत ही नहीं पड़ी आज तक।
किसी भी आंदोलन में यहां के नारे गज़ब होते थे। जैसे-

जीतेंगे तो रम चलेगा, हारेंगे तो कट्टा बम चलेगा।
मरिहै कम हड़कइहीं ज्यादा, ….. दादा  ….. दादा।

सारे हॉस्टल्स में तनातनी बनी ही रहती थी। हर हॉस्टल का दूसरे हॉस्टल कुछ यूनिक से नाम रखते आते थे। बम कट्टा की टेस्टिंग अपने हॉस्टल के पिछवाड़े में भी कर लेते थे तब के वारियर छात्र। आयेदिन एक दूसरे ग्रुप की थुराई चलती रहती थी। हॉस्टल के भीतर एबीवीपी, एनएसयूआई, आइसा, एसएफआई, युवजन सभा, बहुजन छात्र संघ के छात्रों का एकसाथ रहना होता था। लेकिन क्या मज़ाल जो कोई हॉस्टल के भीतर घुस के किसी को पीट दे। हॉस्टल के सभी छात्र एक परिवार के सदस्य होते थे। पीसीएस के एग्जाम, डिग्री के एग्जाम में एक दूसरे को डिस्टर्ब नहीं होने देने का अघोषित प्रण लिए होते थे। लल्ला चुंगी से यूनिवर्सिटी चौराहा, लक्ष्मी चौराहे से कटरा नेतराम तक, साइंस फैकल्टी के गेट से हिन्दू हॉस्टल चौराहे तक हमारी अपनी रियासत थी। साला इतना कूटे या कुटाई खाये कभी मीडिया ने इतना महत्त्व दिया ही नहीं। रवीश जी हो चाहे अंजना जी, सरदाना जी हो चाहे अवस्थी थी या वाजपेयी जी किसी पत्रकार ने न हमे पीड़ित बताया न हमने उन्हें बताने की जरूरत ही समझी।

हॉस्टल्स की तनातनी के बीच एक दूसरे से हमारे मधुर सम्बन्ध भी खूब रहते थे। एक दूसरे के राष्ट्रीय नेताओं का एक साथ बन्द मख्खन खाते हुए मजाक उड़ाना हमारी परंपरा सी थी। हम भावुक से या यूं कहें चूतिया हिंदी माध्यम के छात्र इतने आधुनिक कभी नहीं हो पाए कि कभी बाहरी लड़कों को बुलाकर अपने भाइयों जो कि विरोधी विचारधारा के हों, पिटवा सकें। हम ग़रीब घरों से, मध्यम वर्गीय छात्र कभी अपनी गऱीबी को बेच नहीं पाए। न हम देश को गरिया पाए न किसी बाहरी को कैंपस में घुसकर गरियाने का मौका दिया हमने। हम तो दूसरे छात्रों के धर्म विश्वास आस्था का हनन न होने पाए, इस ख्याल से अपनी आस्था, अपने शौक को थोड़ा दबा ही लेते थे। पहले लगता था कि हम कम प्रगतिशील हैं लेकिन कल रात के बाद लगा कि हम ही ठीक थे यार। अपने में निपट लेते थे लेकिन क्या मज़ाल जो कोई दूसरा हमारे हॉस्टल हमारे घर में घुस पाए। जेएनयू सहित सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों को हमारी हॉस्टल परम्परा से सीखने की जरूरत है। एक नारा आज गढ़ रहा हूँ फिर से और इसी के साथ बात समाप्त करूँगा-

चाहे कितनी बढ़े आबादी, सबले बढ़िया इलाहाबादी।।

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