Scientific significance of Mahashivaratri – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Thu, 20 Feb 2020 18:08:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व http://www.shauryatimes.com/news/78006 Thu, 20 Feb 2020 18:08:00 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=78006
प्रो0 (डॉ0) भरत राज सिंह
लखनऊ : महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की तेरस/चतुर्दशी को हर वर्ष मनाया जाता है। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह तिथि प्रत्येक वर्ष फरवरी अथवा मार्च पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी कहा गया है। भगवान शिव की वेशभूषा भी हिन्दू के अन्य देवी-देवताओं से अलग होती है। श्री महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नन्दी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के उपरांत भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें श्री और संपत्ति भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि की कथा में उनके इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।

कहा जाता है कि हरिद्वार में हो रहे कुंभ मेले पर शाही स्नान इसी दिन शुरू हुआ था और प्रयाग में माघ मेले और कुंभ मेले का समापन महाशिवरात्रि के स्नान के बाद ही होता है। महाशिवरात्रि के दिन से ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होलिका की रंग बयार शुरू हो जाती है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहाँ भी ज्योर्तिलिंग हैं, वहाँ पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शंकरजी का विवाह माता पार्वती जी से हुआ था, उनकी बरात निकली थी। इसका महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दयाभाव उपजता है। कृष्ण चतुर्दशी के स्वामी शिव है इससे इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है वैसे तो शिवरात्रि हर महीने पड़ती है परन्तु फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।

यदि इसे विज्ञान के दृष्टिकोण से परखे तो शिवलिंग एक एनर्जी का पिंड है जो गोल व लम्बा- वृत्ताकार व सर्कुलर पीठम पर सभी शिव मंदिरों में स्थापित होता है, वह ब्रह्माण्डीय शक्ति को शोखता है । रुद्राभिषेक, जलाभिषेक, भस्म आरती, भांग-धतूरा-गांजा और बेल पत्र चढ़ाकर पूजा-अर्चना कर भक्त उस शक्तिशाली उर्जा को अपने में ग्रहण करता है। इसके द्वारा मन व विचारो में शुद्धता व शारीरिक रोग-व्याधियों के कष्ट का निवारण होना स्वाभाविक है । इसी दिन के पश्चात सूर्य उत्तरायण में अग्रसर हो जाता है और ग्रीष्मऋतु का आगमन भी शुरू हो जाता है और मनुष्यमात्र अपने में गर्मी से वचाव हेतु विशेष ध्यान देना शुरू कर देता है।
उपरोक्त की पुष्टि ‘कुछ संतों’ के कथन कि रात भर जागना, पांचों इन्द्रियों की वजह से आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है, उसके प्रति जागृत होना व तन्द्रा को तोड़कर चेतना को शिव के एक तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि का सन्देश है, से भी होती है ।

वैदिक शिव पूजन विधि- 

  • भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर अब स्वस्ति-पाठ करे।
    स्वस्ति-पाठ -स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवारू, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदारू, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
  • इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
  •   यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।
    संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
  •   इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
  • भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।
  • इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।
  •  अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।
  • अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं।
  •  हाथ धोकर भोलेनाथ को नैवेद्य लगाएं।
  • नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें। (जय शिव ओंकारा वाली शिव-आरती)
  • इसके बाद क्षमा-याचना करें।
    क्षमा मंत्र – आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चौव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
    इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
    (लेखक स्कूल आफ मैनेजमेन्ट साइंसेस लखनऊ के महानिदेशक व वैदिक विज्ञान केंद्र, लखनऊ के अध्यक्ष हैं।)
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