राजनीति का रणक्षेत्र कुरुक्षेत्र, यहां हर दूसरी बार बदलते गए ‘अर्जुन’

विश्वभर में गीतास्थली और महाभारत भूमि के रूप में विख्यात। पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के यहां से दो बार चुनाव लडऩे के कारण राजनीति के रणक्षेत्र में भी इसकी ख्याति कम नहीं। उन्होंने चौथी और पांचवीं लोकसभा में यहां का प्रतिनिधित्व किया था।

17वीं लोकसभा के लिए रणभेरी बज चुकी है। प्रदेश में छठे चरण में 12 मई को मतदान होगा। इस बार राजनीतिक दलों के पास उम्मीदवारों के चयन और चयनित उम्मीदवारों के पास प्रचार का पर्याप्त समय रहेगा। वैसे तो पूरे प्रदेश में ही इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा, लेकिन यहां और भी दिलचस्प होने की उम्मीद है।

इन पर खेला जा सकता है दांव

भाजपा के सांसद राजकुमार सैनी ने अलग पार्टी खड़ी कर ली है। उनकी बयानबाजी ने न सिर्फ कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र, बल्कि पूरे हरियाणा की राजनीति को नया ही मुद्दा दे दिया है। कमोबेश इन चुनाव में प्रदेशभर में वह मुखर दिखेगा। कांग्रेस एक बार फिर नवीन ङ्क्षजदल पर दांव खेल सकती है तो इनेलो से निकली जननायक जनता पार्टी से भाजपा के बागी जयभगवान शर्मा डीडी को टिकट दिए जाने की संभावना है। इनेलो या तो प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा को मैदान उतार सकता है या फिर महिला खाप पंचायत की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.संतोष दहिया को। भाजपा में कई नाम सामने हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल डॉ.देवव्रत, राज्यमंत्री नायब सैनी, कैथल विधानसभा से तीन बार इनेलो से चुनाव हार चुके कैलाश भगत शामिल हैं।

हर बार बदलते रहे समीकरण

इतिहास पर नजर डाली जाए तो 1977 में अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर 10 चुनावों में पांच पार्टियों के सांसद चुने गए। यानि कोई भी इसे अपने लिए पक्की सीट का दावा नहीं कर सका। हालांकि सबसे ज्यादा कांग्रेस के सांसद यहां से चुन कर गए। नवीन जिंदल और कैलाशो सैनी दो-दो बार यहां से सांसद बने। वर्ष 2014 में कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार नवीन जिंदल को मैदान में उतारा था, लेकिन वे उस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे। पांच साल बाद उन्होंने फिर से अपनी सक्रियता कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में बढ़ा दी हैं। चौथी बार कांग्रेस के चेहरे हो सकते हैं।

1977 में बदला हेडक्वार्टर

वर्ष 1977 तक इस लोकसभा सीट का हेड क्वार्टर कैथल रहा। तत्कालीन सांसद पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने इसे कैथल से बदलकर कुरुक्षेत्र कराया और तब से यह कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट कही जाने लगी। इससे पहले दूसरी लोकसभा से लेकर पांचवीं तक के चार चुनाव कैथल लोकसभा सीट पर ही हुए और चारों कांग्रेस पार्टी ने जीते। हेड क्वार्टर बदलते ही कांग्रेस का यहां से वर्चस्व टूटा और उसके बाद यह पार्टी आठवीं लोकसभा में 1984 में लौटी।

2014 की स्थिति यह थी

  • उम्मीदवार        पार्टी       वोट मिले
  • राजकुमार सैनी    भाजपा    418112
  • बलबीर सैनी        इनेलो      288376
  • नवीन ‍जिंदल       कांग्रेस     287722

कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट एक नजर पर

  • लोकसभा            वर्ष            सांसद बने        पार्टी
  • दूसरी (कैथल)     1957-62    मूलचंद जैन      कांग्रेस
  • तीसरी (कैथल)   1962-67    देवी दत्त पुरी      कांग्रेस
  • चौथी (कैथल)     1967-71    गुलजारी लाल   कांग्रेस
  • पांचवीं (कैथल)    1971-77    गुलजारी लाल   कांग्रेस
  • छठी (कुरुक्षेत्र)     1977-80    रघबीर            जनता पार्टी
  • सातवीं              1980-84     मनोहर लाल    जनता पार्टी
  • आठवीं              1984-89     हरपाल           कांग्रेस
  • नौवीं                1989-91     गुरदयाल         जनता दल
  • 10वीं               1991-96     सरदार तारा       कांग्रेस
  • 11वीं               1996-98     ओमप्रकाश        हरियाणा विकास पार्टी
  • 12वीं               1998-99     कैलाशो सैनी      इनेलो
  • 13वीं               1999-04     कैलोशो सैनी      इनेलो
  • 14वीं               2004-09     नवीन              कांग्रेस
  • 15वीं               2009-14     नवीन              कांग्रेस
  • 16वीं               2014-19     राजकुमार        भाजपा

वोटर मीटर

  • वर्ष 2014 में कुल 11 लाख 68 हजार 405 वोटर थे
  • इस बार 16 लाख आठ हजार मतदाता हैं।
  • आठ लाख 56 हजार 202 पुरुष हैं।
  • और सात लाख 51 हजार 834 महिला मतदाता हैं।

तीन जिलों के नौ विधानसभा क्षेत्र शामिल

कुरुक्षेत्र धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से तो 48 कोस में फैला है, लेकिन लोकसभा सीट की हैसियत से इसमें तीन जिलों के नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। कुरुक्षेत्र के थानेसर, लाडवा, शाहाबाद व पिहोवा, कैथल के कैथल, गुहला, कलायत और पूंडरी और यमुनानगर जिले का रादौर हलका शामिल है।

नहीं टूटा रघुबीर सिंह का रिकॉर्ड

वर्ष 1977 में जब देश से इमरजेंसी हटी तो कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भारतीय लोकदल ने रघुबीर सिंह विर्क को मैदान में उतारा था। तब 79.05 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था। रघुबीर सिंह ने सर्वाधिक 76.92 फीसद वोट लेने का रिकॉर्ड बनाया। इस रिकॉर्ड को तोडऩा तो दूर अब तक कोई आसपास भी नहीं पहुंच सका।

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