नई दिल्ली : चुनाव आयोग से बुधवार को 11 राजनीतिक दलों के 20 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली स्थित निर्वाचन सदन में मुलाकात की। लगभग साढ़े तीन घंटे चली इस बैठक में बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) यानी मतदाता सूची अपडेट करने के अभियान को लेकर विपक्ष ने अपनी गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराई। दलों ने कहा कि इससे व्यापक पैमाने पर मतदाता खासकर प्रवासी मतदाता अपने अधिकार से वंचित हो जायेंगे।
चुनाव आयोग के एक अधिकारी के अनुसार बैठक मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्तों सुखबीर सिंह संधू एवं विवेक जोशी की उपस्थिति में हुई। आयोग ने बताया कि एसआईआर संविधान के अनुच्छेद 326, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 24 जून 2025 को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार हो रहा है। सभी दलों की चिंताओं का उत्तर दिया गया और साथ ही आयोग ने 1.5 लाख से अधिक बूथ स्तर एजेंट नियुक्त करने के लिए पार्टियों का आभार व्यक्त किया।
आयोग से मुलाकात के बाद इन पार्टियों के नेताओं ने साझा पत्रकारों से बातचीत की। इसमें कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और राजद नेता मनोज झा और अन्य नेताओं ने अपनी बात रखी। सिंघवी ने आश्चर्य जताया कि 2003 के बाद राज्य में कई चुनाव हो चुके हैं, फिर भी 22 वर्षों बाद इस प्रकार की प्रक्रिया को जून के अंत में घोषित किया गया। उन्होंने कहा कि पौने आठ करोड़ मतदाताओं का सत्यापन के लिए मात्र डेढ़ महीना कम हैं। दस्तावेज़ों की मांग को लेकर उन्होंने कहा कि जन्म प्रमाणपत्र के साथ माता-पिता के दस्तावेज़ भी माँगे जा रहे हैं, जो गरीब तबके के लिए कठिन होगा। उन्होंने इसे ‘लेवल प्लेयिंग फील्ड’ का उल्लंघन बताया।
वहीं राजद नेता मनोज झा ने कहा कि बैठक सौहार्दपूर्ण नहीं थी और उन्होंने बिहार में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव की ओर से अपनी पार्टी की आपत्तियों का पत्र चुनावा आयोग को सौंपा है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश है। उन्होंने दावा किया कि इससे कम से कम 20 प्रतिशत मतदाता बाहर हो सकते हैं और ऐसी स्थिति होने पर जनता सड़कों पर उतरेगी। उन्होंने मतदान को पहला और जरूरी अधिकार बताते हुए अपेक्षा जताई कि आयोग उनकी चिंताओं पर विचार करेगा।
उल्लेखनीय है कि बिहार देश का दूसरा सबसे बड़ा मतदाता वाला राज्य है। एसआईआर की घोषणा जून में की गई है। विपक्षी दलों की इसको लेकर आपत्तियां हैं। साथ ही आज की बैठक को लेकर भी कई तरह के विषय सामने आये।
सिंघवी ने बैठक के तरीके पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि आयोग को पहले से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल की जानकारी दी गई थी लेकिन फिर भी हमारे कुछ साथियों को बाहर बैठना पड़ा। उन्होंने कहा कि आयोग का कहना था कि केवल अध्यक्ष और एक अन्य प्रतिनिधि ही बैठक में शामिल हो सकता जबकि यह परंपरा नहीं रही है।