‘वृक्ष माता’ सालूमरदा थिमक्का का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार

बेंगलुरु : पद्मश्री से सम्मानित और ‘वृक्ष माता’ के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध सालूमरदा थिमक्का का शनिवार को बेंगलुरु के ज्ञानभारती कला ग्राम परिसर में पूरे राज्य सरकार के सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

 

पुलिस टीम की सलामी और राज्य सरकार के सम्मान में पुष्पांजलि अर्पित करके उनका संपूर्ण शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार किया गया। इससे पहले राज्य के गृह मंत्री डॉ. जी. परमेश्वर और वन मंत्री ईश्वर खंड्रे सहित सैकड़ों गणमान्य व्यक्तियों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आम जनता ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

 

वास्तव में, एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी 114 वर्षीय थिमक्का ने संतान न होने के दुःख को हरियाली संरक्षण के पवित्र धर्म में बदल दिया। उन्होंने अपने जीवन के कई दशक पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित किए और 8,000 से ज़्यादा पेड़ लगाए और उनकी देखभाल की। उनके ये शब्द, “संतान न होने का दुःख पेड़ों के रूप में दूर हो गया है” सैकड़ों लोगों के दिलों में गूंज उठे।

 

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् ‘सालुमरदा’ थिम्मक्का ने कर्नाटक के बेंगलुरु दक्षिण जिले में 5 किलोमीटर लंबी सड़क के किनारे लगभग 400 बरगद के पेड़ लगाए और उनकी देखभाल की। यह काम उन्होंने 1950 के दशक से 25 साल तक अपने पति चिक्कैया के साथ मिलकर किया। थिम्मक्का को उनके इस काम के लिए ‘सालुमरदा’ (पेड़ों की कतार) का उपनाम मिला था। वह बिना किसी औपचारिक शिक्षा या सरकारी मदद के पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ जीवन के लिए आवाज उठाती रहीं। हजारों पेड़ों को मातृ प्रेम से पोषित करने वाली थिमक्का का निधन राज्य में प्रकृति आंदोलन के लिए एक बड़ी क्षति है।———

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