नई दिल्ली : केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बुधवार को कहा कि संविधान देश के प्रत्येक नागरिक के स्वप्नों और आकांक्षाओं का दर्पण है। शेखावत ने यह बात ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर कही।
दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में भारतीय संविधान के निर्माण के ऐतिहासिक 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित वर्ष भर के कार्यक्रमों का आज भव्य समापन और विचार-विमर्श आयोजित किया गया था। इस अवसर पर उन्होंने संविधान सभा में ‘महिला सदस्यों के अमूल्य योगदान को रेखांकित करने वाली एक विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन किया, जिसका शीर्षक “नींव : भारतीय संविधान की महिला शिल्पी” था। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य देश की बहादुर महिलाओं में से उन 15 महिलाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, जिन्होंने संविधान बनाने के दौरान अपना योगदान दिया था।
संस्कृति मंत्री शेखावत ने कहा, “संविधान केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का संकल्प है। संविधान ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया है।” उन्होंने कहा कि संविधान सभा की बहसों को समझे बिना संविधान की आत्मा को नहीं समझा जा सकता।
मंत्री ने बताया कि भारत की विविध भाषाएँ, संस्कृतियाँ और हजारों वर्षों का ज्ञान तथा कुंभ जैसे सांस्कृतिक उदाहरण ही देश की एकता का आधार हैं, जिसके आधुनिक स्तंभ हमारा संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और समानता के अधिकार हैं।
उन्होंने संविधान सभा की पंद्रह महिला सदस्यों के असाधारण योगदान को रेखांकित किया, जिनमें सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अम्मू स्वामीनाथन, रेणुका रे, बेगम कुदसिया एजाज रसूल, दक्षायणी वेलायुधन, दुर्गाबाई देशमुख, हंसा मेहता, कमला चौधरी, लीला राय, मालती चौधरी, पूर्णिमा बनर्जी, और एनी मस्करेन शामिल थी। उन्होंने कहा कि ये महिलाएँ संख्या में भले कम थीं, पर अपने विचार, साहस और दृष्टि में अद्वितीय थीं।
उन्होंने सभी से संविधान की भावना से गहराई से जुड़ने की अपील करते हुए कहा कि वर्षभर चला कार्यक्रम का समापन एक विराम नहीं, बल्कि संवैधानिक चेतना को आगे बढ़ाने की निरंतर प्रेरणा है।
केंद्रीय संस्कृति सचिव विवेक अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा, “संविधान को केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि राष्ट्र के जीवन-मूल्यों का आधार है। हम सब मिलकर इस महान धरोहर के मूल्यों को अपने कार्यों में उतारें, और एक मजबूत, समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. अलका चावला ने कहा, “‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसी मानवीय संवेदनाओं की मूल प्रेरणा समाज में सबसे पहले स्त्री देती है” उन्होंने कहा कि यदि नागरिक अपने कर्तव्य (ड्यूटी) समझ लें और उनका पालन करें, तो अधिकारों की जरूरत ही नहीं होगी और न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी। उन्होंने ‘कैंपस लॉ सेंटर’ द्वारा शुरू की गई ‘कर्तव्यम’ नामक एक श्रृंखला का भी उल्लेख किया, जिसका उद्देश्य सभी को अपनी ड्यूटी निभाने के लिए प्रेरित करना है।
आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, “यह जीवंत संविधान है, जिसमें जड़ता नहीं है, और यह निरंतर समय के साथ सापेक्ष होते हुए खुद को और अधिक सर्वकालिक सिद्ध करता है।” उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शनी में संविधान सभा में योगदान देने वाली महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया गया है। इस प्रदर्शनी को देश भर के अलग-अलग विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में ले जाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें अगले तीन महीनों में कम से कम 1,000 संस्थानों को शामिल करने का लक्ष्य है।
इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों के एकलव्य विद्यालयों से आए बच्चों और प्रतियोगिताओं (चित्रकला, संगीत) में भाग लेने वाले छात्रों का विशेष रूप से आमंत्रित किया गया।
कार्यक्रम के दौरान संविधान की 75 वर्षीय यात्रा, चुनौतियों और उपलब्धियों पर आधारित एक विशेष वृतचित्र की स्क्रीनिंग भी की गई।
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