17 साल पहले चार विमानों से दहल गया था सुपर पावर, अलकायदा ने उकसाया था अंकल सैम को

अमेरिका के न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले को अब 17 साल होने जा रहे हैं। 11 सितंबर, 2001 को हुए इस हमले में 90 से ज्यादा देशों के लोगों की जान चले गई थी। यह एक बहुत बड़ा आतंकी हमला था जिसे अमेरिका के साथ साथ दुनिया के बाकी देश भी अभी तक नहीं भुला पाए हैं। यह हमला अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से दो विमानों के टकराने से हुआ। दरअसल 19 आतंकवादियों ने दो अमेरिकन विमानों अमेरिकन 11 और यूनाइटेड एयरलाइंस फ्लाइट 175 को हाईजैक कर लिया था। बाद में इन्हें वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग से टकरा दिया गया।

ऐसे टकराए थे दो विमान
पहला विमान 11 सितंबर की सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर टकराया। इस अमेरिकन फ्लाइट में 11 क्रू मेंबर्स और 76 लोग मौजूद थे। इस विमान को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टावर से टकरा दिया गया। इसके बाद एक दूसरा विमान यूनाइटेड फ्लाइट 175 ट्विन टावर से 9 बजकर 3 मिनट पर टकरा गया। इसमें 9 क्रू मेंबर और 51 यात्री सवार थे। सभी सवार लोग मारे गए।

बुरी तरह तहस नहस हो गईं दोनों इमारतें

हमले के बाद महज 1 घंटे और 42 मिनट में ये दोनों इमारतें तो ढह ही गईं। साथ ही आसपास की कई इमारतें भी नष्ट हो गईं। 11 सितंबर 2001 को अल कायदा के 19 आतंकियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और पेंसिलवेनिया में हमले कर अमेरिका को दहला दिया था। इस घटना को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने चार हवाई जहाज को हाईजैक किया था। आतंकियों ने दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवर्स में टकरा दिया जबकि तीसरे विमान से पेंटागन पर हमला किया गया। एक विमान पेंसिलवेनिया में क्रैश हो गया था।

हमले के वक्त ट्रेड सेंटर में 18 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे थे। जान बचाने के लिए कई लोग वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की छत से नीचे कुद गए थे। 18 लोगों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद मलबे से जिंदा निकालकर बचाया गया। जबकि इस हमले में कुल 2,996 लोग मारे गए और 6 हजार लोग घायल हो गए। बिल्डिंगों का मलबा 6.5 हेक्टेयर में फैल गया था।

बताया जाता है कि हमले में 100 अरब रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ और हमले की आगे बुझाने में 100 दिनों का समय लग गया। अब तक इस हमले का असर अमेरिका में दिख रहा है। जब मलबे को हटाया गया तब वहां हजारों लोगों के अवशेष मिले। हैरानी की बात तो ये थी कि हमले से एक महीने पहले तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को इसकी जानकारी दी गई थी।

ओसामा बिन लादेन ने ली जिम्मेदारी
इस हमले की जिम्मेदारी अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने ली थी। हालांकि कई सालों के मिशन के बाद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने लादेन को पाकिस्तान में खोजकर मार डाला। लेकिन उस खूबसूरत वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले ने आतंकवाद को और ज्यादा वीभत्स और लाइलाज बना दिया और उस इमारत की भी तस्वीर ही बदल कर रख दी। ये घटना जिस तेजी से हुई उससे संभलने का मौका नहीं मिला लेकिन ये वाकया इतिहास में सबसे बड़े आतंकी हमलों में शुमार हो गया।

हमले का दर्द आज भी झेल रहा है अमेरिका
अमेरिका में 17 साल पहले हुए आतंकी हमले ने आज भी वहां धूल का आतंक फैलाया हुआ है। इस आतंक के तहत देश के करीब 10 हजार लोगों को कैंसर हुआ है। इसी के तहत डब्ल्यूटीसी हेल्थ प्रोग्राम द्वारा एक अध्ययन कराया गया। जिसमें इस हमले से होने वाले स्वास्थ्य के नुकसानों की जांच की गई।

इस अध्ययन में पता चला कि हमला बेशक 2001 में हुआ था लेकिन लोगों के स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव 2012 के बाद अधिक पड़ना शुरू हुआ है। अगर बीते तीन साल की बात करें तो इस दौरान यहां तीन गुना कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ी है। जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगली तीन पीढ़ियां भी अब खतरे में हैं।

इस हमले के बाद से ही अमेरिका ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत कर ली थी। ताकि वहां अन्य कोई हमला न हो पाए। दो टावर गिरने से आज तक यहां धूल के कारण लोग परेशान हैं। आंकड़ों की मानें तो देश में करीब 9,795 लोग कैंसर के मरीज हैं। ये आंकड़ा थमने का नाम नहीं ले रहा है और लगातार बढ़ता जा रहा है।

अलग-अलग तरीके से हो रहा है सेहत पर असर
इस हमले का असर लोगों की सेहत पर अलग अलग तरीके से हो रहा है। इसी बात की जांच के लिए वर्ल्ड हेल्थ प्रग्राम भी शुरू किया गया था। लोगों के कैंसर होने के पीछे की वजह टावर गिरने से फैली धूल है। डॉक्टरों का मानना है कि टावर गिरने से जेट का जला हुआ तेल, एस्बेस्टस के टुकड़े, कांच के टुकड़े और सीमेंट जैसे हानिकारक तत्व धूल में मौजूद थे। जो कि आज भी लोगों की सांस की नली को खराब कर रहे हैं।

2013 के बाद से लगातार बढ़ रही हैं शिकायतें
अध्ययन के दौरान एकत्रित किए गए आंकड़े बताते हैं कि ऐसे मामले 2012 में ही आने शुरू हो गए थे। लेकिन ऐसी शिकायतें 2013 के बाद से लगातार बढ़ती गईं। 2013 तक ऐसी 1500 शिकायतें आई थीं, जो 2015 में बढ़कर 3,204 और 2016 में 8,188 हो गईं। यानी हमले के 17 साल बाद भी ये शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। कहा जा रहा है कि इस धूल का असर अगले 15 सालों तक रहने वाला है।

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