97 हजार करोड़ की लूट अखिलेश सरकार में हुई, “CAG की रिपोर्ट से उठे कई सवाल”

उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी रह चुकी समाजवादी पार्टी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. ऑडिट एजेंसी CAG की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि अखिलेश सरकार में 97 हजार करोड़ की राशि का बंदरबांट किया गया और सरकार इस व्यय के कोई भी दस्तावेज नहीं दिखा पाई है.

उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी रह चुकी समाजवादी पार्टी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. ऑडिट एजेंसी CAG की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि अखिलेश सरकार में 97 हजार करोड़ की राशि का बंदरबांट किया गया और सरकार इस व्यय के कोई भी दस्तावेज नहीं दिखा पाई है.  सरकारी योजनाओं के लिए दी गई मोटी धनराशि का कोई हिसाब-किताब सरकार के पास नहीं है. अगस्त 2018 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार इस राशि का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जमा नहीं कर पाई है. इससे इतनी बड़ी सरकारी राशि के गलत इस्तेमाल का शक पैदा हुआ है. यूपी सरकार अब इस मामले की जांच कराने की बात कर रही है, वहीं सपा ने इस मुद्दे को राजनीति से प्रेरित बताया है.  समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट से भ्रष्टाचार की बात साबित नहीं हो जाती. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक अनुमान है. ऐसी ही रिपोर्ट महाराष्ट्र और गुजरात में आ चुकी हैं लेकिन राज्य सरकार ने तब भी किसी भ्रष्टाचार की बात नहीं मानी थी. यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट ने तो 2 जी में भी घोटले की बात कही थी लेकिन कोर्ट से सभी आरोप खारिज हो चुके हैं.  यूपी सरकार की समाज कल्याण विभाग से लेकर शिक्षा समेत कई विभागों में पैसे के लेन-देन में हेराफेरी का शक जताया जा रहा है. एक ही प्राप्तकर्ता को एक ही विभागों से एक समान राशि आबंटित की गई लेकिन आजतक किसी भी विभाग की ओर से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं मुहैया कराया गया. नियम के मुताबिक राशि आबंटित होने के बाद यह सर्टिफिकेट जमा करना जरूरी होता है और ऐसा न होने पर बकाया राशि का भुगतान रोक दिया जाता है.  कैग ने जिस अवधि में बजट की जांच की है, उस वक्त यूपी में अखिलेश यादव की सरकार थी. यूपी में 2014 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए करीब ढाई लाख से ज्यादा कार्यों के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. इसके बाद से इस राशि पर गड़बड़ी की आशंका पनप रही है.

सरकारी योजनाओं के लिए दी गई मोटी धनराशि का कोई हिसाब-किताब सरकार के पास नहीं है. अगस्त 2018 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार इस राशि का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जमा नहीं कर पाई है. इससे इतनी बड़ी सरकारी राशि के गलत इस्तेमाल का शक पैदा हुआ है. यूपी सरकार अब इस मामले की जांच कराने की बात कर रही है, वहीं सपा ने इस मुद्दे को राजनीति से प्रेरित बताया है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट से भ्रष्टाचार की बात साबित नहीं हो जाती. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक अनुमान है. ऐसी ही रिपोर्ट महाराष्ट्र और गुजरात में आ चुकी हैं लेकिन राज्य सरकार ने तब भी किसी भ्रष्टाचार की बात नहीं मानी थी. यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट ने तो 2 जी में भी घोटले की बात कही थी लेकिन कोर्ट से सभी आरोप खारिज हो चुके हैं.

यूपी सरकार की समाज कल्याण विभाग से लेकर शिक्षा समेत कई विभागों में पैसे के लेन-देन में हेराफेरी का शक जताया जा रहा है. एक ही प्राप्तकर्ता को एक ही विभागों से एक समान राशि आबंटित की गई लेकिन आजतक किसी भी विभाग की ओर से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं मुहैया कराया गया. नियम के मुताबिक राशि आबंटित होने के बाद यह सर्टिफिकेट जमा करना जरूरी होता है और ऐसा न होने पर बकाया राशि का भुगतान रोक दिया जाता है.

कैग ने जिस अवधि में बजट की जांच की है, उस वक्त यूपी में अखिलेश यादव की सरकार थी. यूपी में 2014 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए करीब ढाई लाख से ज्यादा कार्यों के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. इसके बाद से इस राशि पर गड़बड़ी की आशंका पनप रही है.

 

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