भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी: विधानसभा चुनाव 2027 की तैयारी और 2024 के नतीजों का असर

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रविवार को केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी को पार्टी का नया उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया।भाजपा के इस फैसले को 2024 के लोकसभा चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन और 2027 के विधानसभा चुनावों की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। नये प्रदेश अध्यक्ष के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

 

इसके अलावा, अगले वर्ष प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भी नेतृत्व चयन में अहम कारक रहे। ऐसे में पार्टी ने एक बार फिर ओबीसी नेतृत्व को आगे कर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है।

 

नामांकन के बाद पंकज चौधरी ने कहा, ”जो पार्टी दायित्व देती है, उस पर निष्ठा से कार्य करना ही कर्तव्य है। मैं कार्यकर्ताओं के साथ हमेशा खड़ा रहूँगा और उनकी बात सुनूँगा।”

 

दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे हैं और फ़िलहाल गोरखपुर शहरी सीट से विधायक हैं, इसी ज़िले की पड़ोसी सीट महाराजगंज से पंकज चौधरी सांसद हैं। उनके सामने एक बड़ी चुनौती योगी के साथ तालमेल बैठाना भी है।

 

इस फैसले के साथ ही राज्य में पार्टी के सबसे अहम संगठनात्मक पद को लेकर चल रही महीनों की अटकलों पर विराम लग गया। पंकज चौधरी भाजपा के 15वें प्रदेश अध्यक्ष होंगे और वह प्रदेश में पार्टी की कमान संभालने वाले चौथे कुर्मी नेता बने हैं।

 

पंकज चौधरी को संगठन और सरकार दोनों का अनुभवी नेता माना जाता है।साल 2021 से वो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं और वर्तमान में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। पार्टी संगठन में भी उनकी पकड़ मज़बूत रही है।

 

राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ”भाजपा नए समीकरण की तलाश कर रही है। लेकिन इससे बहुत फ़ायदा होने की उम्मीद नहीं है। भाजपा साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे से डरी हुई है। इस फ़ैसले की वजह यह है कि पंकज चौधरी कुर्मी जाति से आते हैं, जिनका प्रदेश के कई ज़िलों में प्रभाव माना जाता है।”

 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, ”ये समझ से परे है कि पूर्वांचल से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का क्या औचित्य है, यह ज़्यादातर ऑप्टिक्स का मामला लगता है। राजनीतिक हलकों में पंकज चौधरी योगी के विरोधी माने जाते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री के क़द के आगे उनकी बराबरी नहीं है। इसके अलावा वो कुर्मियों के सर्वमान्य नेता नहीं हैं।”

 

गौरतलब है कि प्रदेश में सभी दलों से जीतने वाले सांसदों में 11 कुर्मी समुदाय से आते हैं। इस समुदाय की आबादी का ग़ैर-आधिकारिक आंकड़ा क़रीब 7 फ़ीसदी माना जाता है। ये राज्य में यादव के बाद दूसरी प्रभावशाली ओबीसी जाति मानी जाती है।

 

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं।इसमें समाजवादी पार्टी को सबसे अधिक 37, बीजेपी को 33 और उसके सहयोगी अपना दल को एक, रालोद को दो और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) को एक सीट मिली। कांग्रेस के प्रदेश में 6 सांसद हैं।

 

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 52 ब्राह्मण विधायक बने, उसके बाद 49 ठाकुर विधायक बने हैं। तीसरे नंबर पर कुर्मी हैं, जिनके 41 विधायक हैं जबकि चौथे नंबर पर 34 विधायक मुस्लिम हैं।

कुर्मी जाति के विधायकों में से भाजपा गठबंधन से 27 हैं, जिसमें अपना दल भी शामिल है। सपा गठबंधन से 13 और एक कुर्मी विधायक कांग्रेस पार्टी से जीतकर सदन पहुंचे हैं। वहीं यादव विधायकों की कुल संख्या सदन में 27 है।

 

भाजपा पिछड़े वर्गों में अपनी पकड़ मज़बूत करने की रणनीति पर काम करती रही है लेकिन पंकज चौधरी को आगे बढ़ाना इसी सामाजिक समीकरण का हिस्सा माना जा रहा है। यही चुनौती भी है कि कैसे इसको साधे रखा जाए।

 

विधानसभा चुनाव 2027 में भाजपा की निगाह पूरे कुर्मी वोट पर है, इसलिए अनुप्रिया पटेल तो साथ में हैं लेकिन मिर्जापुर और वाराणसी के इलाक़े में अनुप्रिया पटेल का प्रभाव है। लेकिन साल 2024 के लोकसभा चुनाव में ये वोट खिसका है। पूर्वांचल में कुर्मी आबादी कई मंडलों में है। अयोध्या, देवीपाटन मंडल, लखीमपुर खीरी का इलाक़ा और बस्ती मंडल में ठीकठाक वोट हैं।

 

भाजपा के एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, ”पंकज चौधरी के आने से जो कुर्मी का पैसे वाला तबका है वो पार्टी के साथ मज़बूती के साथ रहेगा। इस वजह से खेती किसानी करने वाले लोग भी साथ जुड़ेंगे। पार्टी के सामने दोहरी चुनौती ये है कि 2027 के विधानसभा चुनाव पंकज चौधरी के नेतृत्व की असली परीक्षा होगी । इससे पहले 2026 के पंचायत चुनाव भी हैं, जहां टिकट वितरण को लेकर असंतोष और बगावत की आशंका हमेशा रहती है।”

 

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने बताया कि, “ बड़ी संख्या में टिकट के दावेदारों को संतुष्ट रखना और पार्टी के भीतर एकजुटता बनाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही योगी सरकार के खिलाफ किसी भी संभावित एंटी-इंकम्बेंसी को संभालना भी उनकी जिम्मेदारी होगी।”

 

भाजपा के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने यूनिवार्ता को बताया कि, “ पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो यूपी की ओबीसी आबादी का अहम हिस्सा है। भाजपा ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर समाजवादी पार्टी की PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) राजनीति को चुनौती देने की रणनीति अपनाई है लेकिन कुर्मी समुदाय का वोट कभी एकजुट होकर किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस समुदाय का बड़ा हिस्सा सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर गया था। ऐसे में ओबीसी वोट बैंक को फिर से के पक्ष में मोड़ना आसान नहीं होगा।”

 

गौरतलब है कि भाजपा ने पहले ही केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बना रखा है। पिछड़ी जातियों में लोध समुदाय से चौधरी धर्मपाल और संदीप सिंह मंत्री है। संदीप सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र हैं। वहीं भाजपा का ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) से गठबंधन है।

 

भाजपा ने सामाजिक समीकरण साधने के लिए संजय निषाद की पार्टी से गठबंधन किया है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ छोड़ने के बावजूद भाजपा ने दारा सिंह चौहान को प्रदेश में मंत्री बनाया हुआ है।

 

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं कि, “ पार्टी ने कार्यकर्ता का सम्मान है। यही भाजपा का मूल मंत्र है । सबका साथ , सबका विकास। इसी को लेकर पार्टी आगे बढ़ती है। जहां तक बात अखिलेश यादव की है तो यह उनके पीडीए का जवाब है। उनका पीडीए पूरी तरह से फेल है।”

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