किन कीमतों पर मोदी सरकार ने खरीदा राफेल फ्रांस से, और कैसे बदली UPA कि डील.   

राफेल डील विवाद देश की राजनीति का मुख्य मुद्दा बन गया है. पिछले कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर आरोप लगा चुके हैं. इस डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को चोर तक कह दिया था. लेकिन आखिर ये विवाद क्या है, डील क्या है. इस मामले की पूरी INSIDE STORY यहां पढ़ें… यूपीए सरकार ने

126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया. इसमें 18 विमान तुरंत लेने की स्थिति में थे और बाकी 108 का निर्माण भारत में होना था.

राफेल डील विवाद देश की राजनीति का मुख्य मुद्दा बन गया है. पिछले कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर आरोप लगा चुके हैं. इस डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को चोर तक कह दिया था. लेकिन आखिर ये विवाद क्या है, डील क्या है. इस मामले की पूरी INSIDE STORY यहां पढ़ें... यूपीए सरकार ने  126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया. इसमें 18 विमान तुरंत लेने की स्थिति में थे और बाकी 108 का निर्माण भारत में होना था.    > 18 विमान जो तुरंत लेने की स्थिति में थे, उनका दाम 688 करोड़ रुपए प्रति एयरक्राफ्ट था. जबकि जिन 108 विमान का निर्माण HAL की सहायता से भारत में होना था, उनका दाम 911 करोड़ रुपए प्रति विमान था.    > 2013 में यूरो डिफेंस कंपनी ने विमान की कुछ आइटम पर 20 फीसदी डिसकाउंट का ऑफर दिया. हालांकि, उन्होंने विमान के बेस प्राइस में किसी तरह के बदलाव से इनकार किया.  > राफेल विमान डील किसी तरह का ऑफर या फिर दामों में बदलाव के लिए इनकार करती रही. उनका कारण था कि क्योंकि ऑर्डर में लगातार देरी हो रही है इसलिए 1.22 फीसदी दाम बढ़ने की संभावना है.  > 2013-2014 में भारत में जिन 108 विमानों का निर्माण होना था, वह डील टूट गई.  > फ्रांस का मानना था कि अगर वह भारत में इनका निर्माण करते हैं तो सिर्फ 31 मिलियन घंटे की मैन पावर लगेगी, हालांकि HAL का कहना था ये करीब 100 मिलियन घंटे मैन पावर की खपत होगी.  > 2014  में भारत ने इस पुराने कॉन्ट्रैक्ट को खत्म कर दिया.  > इसके बाद भारत औऱ फ्रांस के बीच सरकार टू सरकार का एग्रीमेंट हुआ. जिसमें फ्रांस से कुल 36 विमान खरीदने का फैसला हुआ, जिसमें शुरुआती 18 विमान का दाम उसका बेस प्राइस जितना ही होगा.  > 2014 में ही इस डील को आगे बढ़ाने के लिए एयर मार्शल भदौरिया को नियुक्त किया गया. इससे पहले इसके लिए ज्वाइंट सेकेट्ररी लेवल के अफसर तैनात थे.  > जिस दाम पर यूपीए की सरकार सहमत हुई थी अगर उनके हिसाब माने तो 36 विमान की कीमत 9503 मिलियन यूरो रहती.  > हालांकि, सौदे में होती लगातार देरी के कारण फ्रांस इसके दाम 11000 मिलियन यूरो तक करना चाहता था.  > पूरी बातचीत के बाद 36 राफेल लड़ाकू विमान के दाम 7889 मिलियन यूरो तक तय हुए.  > इन सभी में फ्रांस करीब 50 फीसदी ऑफसैट यानी 50 फीसदी इन्वेस्ट भारत में करने में राजी हो गया. साथ ही DRDO को इसके तहत सफरां एयरक्राफ्ट इंजन की टेक्नोलॉजी भी मिलनी तय थी.  > भारत सरकार के मुताबिक, इस नए दाम के विमान में मुताबिक कुल 13 नए बदलाव हुए. जिसमें पायलट के लिए हेल्मेट वाली डिस्प्ले, विजुअल रेंज मिसाइल समेत अन्य कई बड़े बदलाव.  > साथ ही अगले सात साल के लिए करीब 75 फीसदी मेंटेनेंस की सुविधा मिलना तय था.  > एनडीए सरकार का दावा है कि ये डील 1.6 बिलियन डॉलर सस्ती है.  > भारत सरकार ने फ्रांस की सरकार से अपील की है कि क्या वह राफेल के दाम जाहिर कर सकते हैं. अभी इस पर फैसला पेंडिंग है.

> 18 विमान जो तुरंत लेने की स्थिति में थे, उनका दाम 688 करोड़ रुपए प्रति एयरक्राफ्ट था. जबकि जिन 108 विमान का निर्माण HAL की सहायता से भारत में होना था, उनका दाम 911 करोड़ रुपए प्रति विमान था.  

> 2013 में यूरो डिफेंस कंपनी ने विमान की कुछ आइटम पर 20 फीसदी डिसकाउंट का ऑफर दिया. हालांकि, उन्होंने विमान के बेस प्राइस में किसी तरह के बदलाव से इनकार किया.

> राफेल विमान डील किसी तरह का ऑफर या फिर दामों में बदलाव के लिए इनकार करती रही. उनका कारण था कि क्योंकि ऑर्डर में लगातार देरी हो रही है इसलिए 1.22 फीसदी दाम बढ़ने की संभावना है.

> 2013-2014 में भारत में जिन 108 विमानों का निर्माण होना था, वह डील टूट गई.

> फ्रांस का मानना था कि अगर वह भारत में इनका निर्माण करते हैं तो सिर्फ 31 मिलियन घंटे की मैन पावर लगेगी, हालांकि HAL का कहना था ये करीब 100 मिलियन घंटे मैन पावर की खपत होगी.

> 2014  में भारत ने इस पुराने कॉन्ट्रैक्ट को खत्म कर दिया.

> इसके बाद भारत औऱ फ्रांस के बीच सरकार टू सरकार का एग्रीमेंट हुआ. जिसमें फ्रांस से कुल 36 विमान खरीदने का फैसला हुआ, जिसमें शुरुआती 18 विमान का दाम उसका बेस प्राइस जितना ही होगा.

> 2014 में ही इस डील को आगे बढ़ाने के लिए एयर मार्शल भदौरिया को नियुक्त किया गया. इससे पहले इसके लिए ज्वाइंट सेकेट्ररी लेवल के अफसर तैनात थे.

> जिस दाम पर यूपीए की सरकार सहमत हुई थी अगर उनके हिसाब माने तो 36 विमान की कीमत 9503 मिलियन यूरो रहती.

> हालांकि, सौदे में होती लगातार देरी के कारण फ्रांस इसके दाम 11000 मिलियन यूरो तक करना चाहता था.

> पूरी बातचीत के बाद 36 राफेल लड़ाकू विमान के दाम 7889 मिलियन यूरो तक तय हुए.

> इन सभी में फ्रांस करीब 50 फीसदी ऑफसैट यानी 50 फीसदी इन्वेस्ट भारत में करने में राजी हो गया. साथ ही DRDO को इसके तहत सफरां एयरक्राफ्ट इंजन की टेक्नोलॉजी भी मिलनी तय थी.

> भारत सरकार के मुताबिक, इस नए दाम के विमान में मुताबिक कुल 13 नए बदलाव हुए. जिसमें पायलट के लिए हेल्मेट वाली डिस्प्ले, विजुअल रेंज मिसाइल समेत अन्य कई बड़े बदलाव.

> साथ ही अगले सात साल के लिए करीब 75 फीसदी मेंटेनेंस की सुविधा मिलना तय था.

> एनडीए सरकार का दावा है कि ये डील 1.6 बिलियन डॉलर सस्ती है.

> भारत सरकार ने फ्रांस की सरकार से अपील की है कि क्या वह राफेल के दाम जाहिर कर सकते हैं. अभी इस पर फैसला पेंडिंग है.

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