इस बार जनादेश “सामान्य ट्रेंड” तक सीमित नहीं होगा

शाश्वत तिवारी

(शाश्वत तिवारी): लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। उम्मीद के अनुसार ही तारीखें घोषित होते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष में बयानबाजी बढ़ गई है। देश में होने वाले ये आम चुनाव इस बार कई मायनों में खास रहने वाले हैं। इस चुनाव से राजनीतिक स्थिरता से लेकर अगले 20 साल के विजन की तस्वीर साफ हो जाएगी। सत्तापक्ष और विपक्ष की इस नोक-झोंक को लोकतंत्र की खूबसूरती मानकर नजरअंदाज कर दिया जाए, तो भी इन चुनावों से जुड़े कई अहम पहलू हैं, जो इसे खास बनाते हैं। मंदिर की राजनीति तब तक अपनी चमक खो चुकी थी जब तक मोदी ने इसे जनवरी में एक भव्य समारोह के माध्यम से सामने और केंद्र में नहीं ला दिया। इसने बीजेपी के हिंदुत्व की नैया पार लगा दी है। बीजेपी की राजनीति इसी तरह के अन्य ‘कारणों’ से भी संचालित होती हैं। ऐसे में मंदिर के साथ ही “नगरिकता संशोधन अधिनिय” के साथ ही ज्ञानवापी के अंदर पूजा की बहाली, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना, ‘सांस्कृतिक पुनरुद्धार’ के बारे में सामान्य शोर, ये सभी और बहुत कुछ बीजेपी के लिए इस बार के चुनावों के लिए, एक ठोस ग्राउंड बनाने का मौका दे रहे हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि हिंदू पहुंच, विपक्ष के जाति जनगणना की मांग पर भारी पड़ेगी, वहीं राजनैतिक जानकारी की राय में भव्य राम मंदिर निर्माण का विषय, पीएम मोदी की व्यक्तिगत विश्वसनीयता को भी बढ़ाता है।

20 वर्षों का विजन: अब इस बार के चुनाव में जहां BJP नेतृत्व अगले 20 वर्षों का विजन पेश कर रहा है, वहीं कांग्रेस नेतृत्व इसे लोकतंत्र बचाने का आखिरी मौका करार दे रहा है। यानी इन चुनावों का फलक पांच साल के काम के आधार पर अगले पांच साल के लिए जनादेश के सामान्य ट्रेंड तक सीमित नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक चर्चा पीएम मोदी की ही है। बीजेपी और विपक्ष दोनों ही उनके इर्द-गिर्द अपना अभियान चलाते हैं। भाजपा वस्तुतः उनमें ही समाहित हो गई है। विपक्ष उनके प्रति अपनी नापसंदगी से परेशान है। वह जो प्रचार कर रहे हैं- आर्थिक विकास, देश और विदेश में सशक्त राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, सांस्कृतिक ‘पुनरुत्थान’- न केवल भाजपा के लिए, बल्कि विपक्ष के लिए भी मुख्य कैंपने का विषय हैं। विपक्ष इन मापदंडों पर उनकी आलोचना कर रहा है। अपने प्रशंसकों के लिए, वह जीवन से भी बड़े, परिवर्तनकारी व्यक्ति हैं जो स्थिरता का वादा करते हैं। अपने आलोचकों के लिए, वह एक अत्यंत ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं। चुनावी पंडितों के लिए वह सबसे पसंदीदा हैं।

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