एक परिवार अमृतसर में हुए हादसे में मारे गए लाेगों और घायलों केे बीच अपने 13 साल के बेटे काे ढ़ूंढ़ रहा था.

दर्दनाक और दहलाने वाला जोड़ा फाटक रेल हादसा 62 जिंदगियां निगल गया। खून से सना रेलवे ट्रैक इस बात का गवाह बना कि कैसे त्योहार की खुशी में डूबे लोग चंद पलों में ही नि:शब्द हो गए। रेल हादसे के बाद लोग बदहवास हो लाशों के ढेरों पर अपनों की तलाश करते रहे। मन में पीड़ादायक शंका थी कि कहीं उनका अपना काल का ग्रास तो नहीं बन गया। इन्हीं लोगों में शामिल थे अमृतसर के गांव नौशहरा पन्नुआं निवासी फूल सिंह। वह बेचैन और बदहवास से रेलवे ट्रैक पर लाशों के ढेर में अपने 13 साल के बेटे को ढूंढ रहे थे। उनका बेटा अर्शदीप सिंह घर से निकला था और लौटकर नहीं आया। लेकिन, बेटा जीव‍ित मिल गया तो खुशियों का ठिकाना न रहा। वह दिल्‍ली में सही सलसमत मिला। वहां उसके पहुंचने की कहानी भी रोचक है।

जोड़ा फाटक हादसे के बाद से गायब था 13 साल का अर्शदीप, ट्रैक पर अस्‍पताल में ढूंढते रहे परिजन

फूल सिंह जोड़ा फाटक के पास रहता है। दशहरा के दिन शुक्रवार को अर्शदीप घर से निकला था। परिवार वालों ने सोचा दशहरा कार्यक्रम देखने धोबीघाट मैदान में गया होगा। इसी बीच शाम काे जोड़ा फाटक के पास हादसे की खबर मिली तो फूल सिंह व परिवार के लोगों के होश उड़ गए। फूल सिंह उस वक्त वह टिक्की की रेहड़ी लगाकर बैठा था। सब छोड़कर वह फौरन रेलवे ट्रैक पर पहुंचा।

फूल सिंह ने बताया, रेलवे ट्रैक पर दर्द, छटपटाहट और मौत पसरी हुई थी। किससे पूछता कि मेरा बेटा कहां है। हर शख्स लाशों के ढेर में अपनों को तलाश रहा था। मैं भी इन्हीं लाशों में बेटे को ढूंढता रहा। रात 12 बजे तक रेलवे ट्रैक पर ढूंढा, पर उसका पता नहीं चला। इसके बाद मैं सिविल अस्पताल पहुंचा। लाशें यहां भी थीं। अस्पताल में अफरातफरी मची थी। लाशों और घायलों में अर्शदीप को ढूंढा, लेकिन वह यहां भी नहीं मिला।

सामाजिक कार्यकर्ता मंजू गुप्ता के साथ अर्शदीप के परिजन।

फूल सिंह ने कहा, फिर मैं गुरुनानक देव अस्पताल पहुंचा। यहां मुझे दो शव दिखाए गए। शवों का चेहरा इतना बिगड़ चुका था कि पहचान पाना मुश्किल था। मैं कांप उठा कि कहीं बेटे भी इस हादसे का शिकार तो नहीं बन गया। कुछ समझ नहीं आया कि क्या करूं, कहां जाऊं। मैंने सामाजिक कार्यकर्ता मंजू गुप्ता को फोन कर अर्शदीप को ढूंढने में मदद करने को कहा।

मंजू गुप्ता व उनके वालंटियर्स हादसे के बाद से ही राहत एवं बचाव कार्य में जुटे थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर अर्शदीप की फोटो अपलोड कर मदद मांगी। …और फिर एेसी खबर मिली कि पूरे परिवार के लोागें से आंसू बह निकले, लेकिन ये खुशी के आंसू थे। जिस बेटा को उसका पिता लाशों व घायलों में ढूंढ रहा था, वह दिल्ली में था और बिल्‍कुल सही सलामत।

मंजू गुप्ता के अनुसार, मंगलवार सुबह मुझे पता चला कि अर्शदीप दिल्ली में है। दरियागंज इलाके में ‘साथ’ नामक संस्था के सदस्‍यों ने सोशल मीडिया पर लड़के की तस्‍वीर देखी तो उसकी तलाश शुरू की ओर वह दिल्‍ली में मिला। संस्‍था के पदाधिकारियों ने मुझे इस बारे में सूचित किया। मंगलवार को ही मैं और अर्शदीप के पिता उसे वापस लाने के लिए दिल्ली रवाना हुए। मंजू के अनुसार फूल सिंह यह मान चुका था कि उनका बेटा रेल हादसे में मौत की आगोश में चला गया है। वह और परिजन फूट-फूट कर रोने लगते, पर बेटे से बात कर अब उनके चेहरे पर खुशियां लौट आई हैं।

रूठकर गया था घर से

अर्शदीप जरा सी बात पर नाराज होकर घर से गया था। आमतौर पर वह पहले भी रूठकर घर से जाता था तो कई तरनतारन स्थित अपनी बुआ के घर पहुंच जाता था। पिता फूल सिंह के अनुसार मेरी अर्शदीप से फोन पर बात हुई है। उसने बताया है कि वह ट्रेन पकड़कर दिल्ली आ गया था। दिल्ली से अमृतसर वापसी के लिए ट्रेन नहीं मिल रही थी। इसलिए रेलवे स्टेशन पर ही रुका हुआ था। बहरहाल, जोड़ा फाटक में हुए नरसंहार के बाद डरे और सहमे इस परिवार को बेटे की सलामती की खबर ने सुकून दिया है।

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