इस कथा के बिना अधूरा है रंभा तीज का व्रत

सनातन धर्म में पावन-पवित्र ज्येष्ठ महीने को धार्मिक आधार पर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तीज व्रत भी रखा जाएगा। मान्यता है कि, इस सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर माता पार्वती और शिव जी की पूजा करती है। इस दिन अप्सरा के विभिन्न नामों की पूजा और कुछ उपाय करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते हैं इसका शुभ मुहूर्त और महत्व।

शुभ मुहूर्त

इस वर्ष रंभा तीज का पर्व 29 मई 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का आरंभ 28 मई, बुधवार को रात 1 बजकर 54 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 29 मई, गुरुवार के दिन रात 11 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक, रंभा तीज का व्रत 29 मई को रखा जाएगा।

पूजा विधि

व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रंभा देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करें और देवी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में मौसमी फल, लाल पुष्प, काली चूड़ियां, पायल, आलता, इत्र आदि अर्पित करें। सोलह श्रृंगार करके श्रद्धा से व्रत का संकल्प लें।

रंभा एकादशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और असुर समुद्र का मंथन कर रहे थे, तो समुद्र से 14 रत्न निकले जिनमें एक रंभा अप्सरा भी थी। रंभा बेहद खूबसूरत थी और उनके नृत्य संगीत से तीनों लोक मोहित हो गए थे। वहीं रंभा की सुंदरता के कारण देवता और असुरों ने उन्हें अपने-अपने पक्ष में करने की कोशिश की, लेकिन रंभा ने किसी को भी नहीं चुना। उसने कहा कि, वे केवल उस पथ पर चलेंगी जो धर्म, सत्य और आत्मसम्मान से जुड़ा होगा तभी से रंभा तीनों लोकों में नारी-स्वाभिमान की मिसाल बन गई और तभी से रंभा तीज का पर्व नारी-सम्मान, वैवाहिक सौभाग्य और आत्मबल की प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

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