उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की गिरती साख पर जताई चिंता, न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई की उठाई मांग

कोच्चि : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कोच्चि में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज (एनयूएएलएस) के छात्रों को संबोधित करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए उसकी पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाए।

उपराष्ट्रपति ने गत 14 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना में अग्निशमन अभियान के दौरान भारी मात्रा में नकदी मिलने पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उपराष्ट्रपति ने कहा, “यह कोई मामूली बात नहीं है। इतना पैसा कहां से आया? यह किसका था? यह एक आपराधिक मामला है और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जो चिंता का विषय है।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में हालिया घटनाएं लोकतंत्र की नींव को हिला रही हैं। यदि लोगों का विश्वास न्यायपालिका से उठ गया तो देश गंभीर संकट में आ जाएगा।

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दी जाने वाली पोस्टिंग पर भी उन्होंने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब सभी को पोस्टिंग नहीं मिलती और कुछ को ही दी जाती है, तो इससे चयन में पक्षपात और संरक्षण की संस्कृति जन्म लेती है। यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सीधा आघात है।

आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में हुए संशोधन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यह उस समय हुआ जब लाखों लोग जेल में थे। मौलिक अधिकार पूरी तरह से निलंबित कर दिए गए थे। प्रस्तावना को बदला जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ था। उन्होंने कहा, “आप माता-पिता को नहीं बदल सकते, उसी तरह संविधान की प्रस्तावना भी नहीं बदली जानी चाहिए।”

उन्होंने संविधान में शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए, अन्यथा लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।

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