वामपंथ से राष्ट्रवाद तक का सफर: पैर कटने के बाद भी नहीं मानी हार, सदानंदन मास्टर राज्यसभा के लिए नामित

नई दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शनिवार को वरिष्ठ समाजसेवी और शिक्षाविद् सी. सदानंदन मास्टर के साथ-साथ स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर उज्ज्वल निकम, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और इतिहासकार मीनाक्षी जैन सहित कुल चार लोगों को राज्यसभा के लिए नामित किया। संविधान के अनुच्छेद 80(3) के तहत इन लोगों की नामांकित किया गया। यह अनुच्छेद उन लोगों को उच्च सदन में स्थान देने की अनुमति देता है जिन्होंने साहित्य, विज्ञान, कला या सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया हो।

केरल के कन्नूर जिले से आने वाले सदानंदन मास्टर एक समय कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित थे। उनका परिवार भी वामपंथी विचारधारा से जुड़ा था। पिता शिक्षक और सीपीआई(एम) समर्थक, भाई भी पार्टी में सक्रिय थे। छात्र जीवन में जब वे स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे, तब वामपंथी सोच उनका मार्गदर्शक बनी। लेकिन 1984 में जब उन्होंने आरएसएस की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद आधारित विचारधारा को पढ़ना शुरू किया, तो उनके विचार बदलने लगे। प्रसिद्ध मलयालम कवि अक्किथम की रचना ‘भारत दर्शनंगल’ ने उनके विचारों में निर्णायक परिवर्तन लाया और उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने का निर्णय लिया। यह फैसला उनके सामाजिक और वैचारिक जीवन में निर्णायक मोड़ साबित हुआ।

हालांकि विचारधारा बदलने की यह कीमत उन्हें बहुत महंगी पड़ी। 25 जनवरी 1994 की रात उस समय उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई जब सीपीआई(एम) से जुड़े कुछ लोगों ने उन पर जानलेवा हमला किया। उस दिन वह स्कूल से लौट रहे थे और घर में बहन की सगाई का जश्न चल रहा था। रात करीब साढ़े आठ बजे कुछ हमलावरों ने उन्हें बस से उतरते ही घेर लिया और उनके दोनों पैर बेरहमी से काट दिए। यह हमला महज प्रतिशोध नहीं था, बल्कि उन लोगों के लिए एक चेतावनी थी जो विचारधारा बदलने की हिम्मत करते थे। लहूलुहान हालत में वे सड़क किनारे पड़े रहे, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनकी मदद करे। जब पुलिस मौके पर पहुंची, तब तक वे बेहोश हो चुके थे। मात्र 30 साल की उम्र में उन्होंने अपने दोनों पैर गंवा दिए।

लेकिन यह हादसा उनके जीवन की गति को नहीं रोक सका। लंबी शारीरिक और मानसिक लड़ाई के बाद उन्होंने 1999 में फिर से अध्यापन कार्य शुरू किया। त्रिशूर जिले के पेरमंगलम स्थित श्री दुर्गा विलासम हायर सेकेंडरी स्कूल में वे सामाजिक विज्ञान के शिक्षक बने। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने नई ऊर्जा के साथ काम किया और शिक्षकों के अधिकारों की लड़ाई में भी भागीदारी की। वे केरल में नेशनल टीचर्स यूनियन के उपाध्यक्ष बने और संगठन की पत्रिका ‘देशीय अध्यापक वार्ता’ का संपादन भी करते हैं। इसके अलावा वे भारतीय विचार केंद्रम से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं जो एक वैचारिक मंच है।

राजनीति में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। बीजेपी ने उन्हें 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में कोथुपरम्बा सीट से उम्मीदवार बनाया। यह वही इलाका है जहां 1990 के दशक में राजनीतिक हत्याएं आम बात थीं। चुनाव हारने के बावजूद उनका संघर्ष और योगदान कभी रुका नहीं। हाल ही में उन्हें केरल भाजपा का उपाध्यक्ष भी बनाया गया। इससे उनकी पार्टी के भीतर हैसियत के बारे में साफ अनुमान लगाया जा सकता है।

उन्होंने अपनी कॉलेज की सहपाठी वनीता रानी से विवाह किया, जो स्वयं भी शिक्षिका हैं। उनकी बेटी यमुना भारती बीटेक की छात्रा हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य हैं। परिवार, शिक्षा, विचारधारा और समाज सेवा, सदानंदन मास्टर की ज़िंदगी इन सभी क्षेत्रों में संतुलन और प्रतिबद्धता का अद्भुत उदाहरण है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक्स पर उन्हें शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उनका जीवन साहस और अन्याय के आगे न झुकने की मिसाल है। उन्होंने न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में भी अनुकरणीय योगदान दिया है। उनका यह नामांकन देश के लिए प्रेरणा है, खासकर उन युवाओं के लिए जो मुश्किल परिस्थितियों में भी बदलाव का सपना देखते हैं।

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