केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर में उत्तर क्षेत्रीय राष्ट्रीय सम्मेलन आरम्भ

लखनऊ: केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर में दो दिवसीय उत्तर क्षेत्रीय राष्ट्रीय सम्मेलन (17-18नवम्बर 2025) “समर्थ नारी : समृद्ध भारत” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय समाज में नारी की ऐतिहासिक, सामाजिक और समकालीन भूमिका पर व्यापक संवाद स्थापित करना तथा महिलाओं के सशक्तिकरण के नए आयामों को समझना था। उसमें आज समर्थ नारी समृद्ध भारत पर चर्चा हुई है साथ ही नारी से नारायणी तक का भारतीय दृष्टिकोण क्या है इस पर विचार विमर्श हुआ । तृतीय सत्र में प्रदर्शन कला के माध्यम से नारी की आत्म जागृति एवं समग्र सशक्तिकरण पर चर्चा हुई जिसमें कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर शिवानी वी. ने अपने विचार व्यक्त किए लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर मनुका खन्ना ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।

लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्व नारायण झा ने कहा कि “सुरक्षा देना और सुरक्षा का भाव देना दोनों ही आवश्यक हैं—यह सम्मान और आत्मीयता का प्रतीक है।” उन्होंने परिवार में धैर्य, साहस और सकारात्मक वातावरण के महत्व पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि घरों में ऐसी किताबें रखी जाएँ जिनसे बच्चों में आदर्श जीवन-मूल्यों का विकास हो इस कार्यक्रम की संयोजिका डॉक्टर कविता विसारिया ने कहा- नारी का सशक्त होना ही भारत के उज्जवल भविष्य की पहली सरताज वास्तव में एक समर्थ नारी समृद्ध भारत का वह दीपक है जो हर दिशा को प्रकाशमान करता है। भोपाल परिसर कि डॉ. अर्चना दुबे ने “इतिहास वर्तमान का आधार” विषय पर बोलते हुए कहा कि वैदिक काल में नारी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी, परंतु मध्यकाल में परिस्थितियाँ बदलीं। उन्होंने सुरक्षा, परिवारिक पाबंदियों की संवेदनशीलता, और दहेज के विरुद्ध सामूहिक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “नारी स्वतंत्र भी रहे और सुरक्षित भी—यह संतुलन परिवार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है।”

भोपाल परिसर कि प्रो. अर्चना दुबे ने कहा नारी की समरसता मूल रूप से भारतीय संस्कृति की मर्यादा बनाए रखने में है समाज में महिला सशक्तीकरण को दो रूप में देखा जा सकता है यदि उसके साथ आना हज़ार और अत्याचार हो रहा है तो उसका विरोध करती है और उसे अनाचार को रोक कर दूसरा सशक्तिकरण परिवार के प्रति समर्पण रखकर परिवार को संघटित रखकर किया जा सकता भोपाल से डॉ. संगीता गुंडिचा ने कहा समाज में मूल्यों का प्रतिष्ठापन करना और साथ ही संवेदनशील समाज का निर्माण करना कला के द्वारा किस प्रकार सुधा चंद्रन और भूरी बाई ने अपने अब नाराज़ मित्र को सिद्ध किया इसकी चर्चा हुई महिलाओं को प्रबुद्ध करने तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर नेतृत्व करने में अत्यंत उपाधि सिद्ध होगा इस पर चर्चा हुई इस कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के डीन प्रोफ़ेसर शिवानी वी ने कहा भारतीय नारी सी नारायणी तक क़ा विचार भारतीय परम्परा का है वह अनमोल।

शोभा बाजपेयी ने भारतीय परंपरा में स्त्री को परामर्शदात्री बताते हुए कहा कि प्राचीन भारत में अरुंधति जैसी स्त्रियाँ पुरुष ऋषियों के समकक्ष स्थान रखती थीं। उन्होंने आर्थिक साक्षरता को आधुनिक महिलाएँ के लिए अनिवार्य बताया तथा चिपको आंदोलन में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका को उदाहरण के रूप में रखा। डॉ. रानी दधीचि ने नारी की समाज-निर्माण में केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति स्त्री को सदैव ज्ञान, धैर्य और परामर्श का स्रोत मानती है।

लीना सक्सेना ने पंडिता रमाबाई, आनंदीबाई जोशी और अन्य अग्रणी महिलाओं के संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि “आज की स्त्री स्वतंत्रता और मंच पर बोले जाने का अधिकार—150 वर्ष पूर्व की स्त्रियों के कठोर संघर्ष का परिणाम है।” उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लंबे संघर्ष को भी प्रेरक उदाहरण बताया।

अधिवक्ता शिखा सिन्हा ने स्त्री अधिकारों, कानूनी जागरूकता और सुरक्षा कानूनों की अनिवार्यता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “कानून पर्याप्त हैं—जरूरत है कि उनकी समझ हर नारी तक पहुँचे।” द्रौपदी, तुलसीदास और कालिदास के संदर्भों के माध्यम से उन्होंने नारी शक्ति के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया।

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