नई दिल्ली : राज्यसभा ने बुधवार को ध्वनिमत से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसके तहत जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन अधिनियम-2024 को मणिपुर में लागू करने की अनुमति दी गई है। वर्तमान में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है, ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा पारित यह प्रस्ताव राज्य में सीधे प्रभावी होगा।
इसके पहले, केंद्रीय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मणिपुर में जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन अधिनियम-2024 अपनाने के लिए सदन में एक वैधानिक प्रस्ताव पेश किया था। इस पर
चर्चा में भाग लेते हुए वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अयोध्या रामी रेड्डी अल्ला ने कहा कि वैधानिक ढांचे में केवल सतह के जल को नहीं बल्कि भूजल को भी शामिल किया जाना चाहिए।
भूजल राज्यों का विषय है और केवल कुछ ही राज्यों ने इसे नियंत्रित करने का कानून पारित किया है। राज्यों में भूजल की अधिक निगरानी की जरूरत है।
डीएमके सदस्य पी. विल्सन ने सवाल उठाया कि मणिपुर विधानसभा कब तक निलंबित रहेगी? कब तक संसद राज्य विधानसभा की भूमिका निभाती रहेगी। प्रदूषण अब केवल एक वैधानिक चिंता नहीं रह गया है, बल्कि एक राष्ट्रीय आपातकाल बन गया है। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में भीड़भाड़ कम करने के लिए प्रयास करने का सुझाव दिया। राजधानी से ज्यादा प्रदूषण कहीं और दिखाई नहीं देता। दिल्ली एक गैस चैंबर बन गई है। शीतकालीन सत्र को इतने प्रदूषण के दिनों में नहीं करवाना चाहिए। उसके बजाय दूसरे सत्रों में बैठकों की संख्या को बढ़ा देना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस की सदस्य सुष्मिता देव ने मणिपुर में जल्दी ही चुनाव कराने की मांग की। मणिपुर के भाजपा सदस्य संजाओबा लेइसेंबा ने प्रस्ताव का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन है, ऐसे में राज्य विधानसभा की शक्तियां संसद को मिलती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि संसद प्रस्ताव पारित कर एक्ट को मणिपुर में लागू करे। इस प्रस्ताव का सदस्य थंबी दुरैई, माया नारोलिया ने समर्थन किया।
प्रस्ताव पर चर्चा के बाद पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सदन में कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है, इसलिए विधानसभा की जगह संसद को यह प्रस्ताव पारित करना है। मणिपुर में जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन अधिनियम, 2024अपनाने के लिए एक वैधानिक प्रस्ताव पारित होने से वहां भी अब ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग के तहत काम हो सकेगा। उन्होंने कहा कि यह कानून संसद के दोनों सदनों में पिछले साल पारित किया गया था लेकिन इसमें इज ऑफ गर्वनेंस के लिए बाधाएं खड़ी थीं। इस प्रस्ताव के अपनाएं जाने के बाद अब उन प्रावधानों को समाप्त किया जा सकेगा और जनविश्वास को स्थापित किया जा सकेगा। इस प्रस्ताव से अब लोगों को अदालतों के अनावश्यक अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा। कानून उल्लंघन के मामले में जेल के बदले जुर्माना लगाया जाता है। इस राशि का 75 प्रतिशत राशि राज्यों के विकास पर खर्च किया जाएगा।
जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रावधान
जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रावधान के तहत इसमें छोटे मामलों को अपराध श्रेणी से बाहर किया गया है। छोटे तकनीकी उल्लंघनों पर जेल नहीं, बल्कि जुर्माना होगा, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों की सेवा शर्तें केंद्र तय कर सकेगा। कुछ उद्योगों को पुराने कठोर प्रतिबंधों से छूट मिलेगी, कंपनियों और नागरिकों के लिए नियमों को कम अपराधीकरण की दिशा में आसान बनाया गया है। यह विधेयक सरकार के ईज ऑफ बिल कई उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाता है और इसके बदले जुर्माना लगाता है। यह शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होता था। दूसरे राज्य अपने यहां इसे लागू करने के लिए प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। इस कानून के अनुसार, ऐसे किसी भी उद्योग या उपचार संयंत्र की स्थापना के लिए एसपीसीबी की पूर्व सहमति आवश्यक है जिससे जलाशयों, सीवर या भूमि में सीवेज के बहने की आशंका हो। कानून में निर्दिष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार, सीपीसीबी के परामर्श से कुछ श्रेणियों के औद्योगिक संयंत्रों को ऐसी सहमति प्राप्त करने से छूट दे सकती है। एसपीसीबी से ऐसी सहमति प्राप्त किए बिना उद्योग स्थापित करना और संचालित करना छह साल तक की कैद और जुर्माने से दंडनीय है। कानून इसे बरकरार रखता है। एसपीसीबी के अध्यक्ष को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जा
ता है।
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