नई दिल्ली : देशभर में सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए शुरू की गई कैशलेस उपचार योजना के तहत मार्च 2024 से प्राप्त इलाज अनुरोधों में से करीब 20 प्रतिशत को पुलिस द्वारा खारिज कर दिया गया। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी कि अब तक 6,833 उपचार अनुरोधों में से 5,480 को ही पात्र पाया गया, जबकि शेष अनुरोध पुलिस जांच में अस्वीकृत कर दिए गए।
गडकरी ने बताया कि मोटर वाहन दुर्घटना निधि के तहत 73,88,848 रुपये अस्पतालों को भुगतान किए जा चुके हैं।
मंत्री ने बताया कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 162 के तहत कैशलेस ट्रीटमेंट फॉर रोड एक्सिडेंट विक्टिम्स स्कीम, 2025 को इस वर्ष 5 मई को अधिसूचित किया गया। इसके लिए विस्तृत दिशा-निर्देश और मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) 4 जून 2025 को जारी की गई थीं।
योजना के तहत सड़क दुर्घटना के प्रत्येक पीड़ित को दुर्घटना की तारीख से अधिकतम सात दिनों तक 1.5 लाख रुपये तक का कैशलेस इलाज उपलब्ध कराया जाता है। यह सुविधा किसी भी श्रेणी की सड़क पर मोटर वाहन के उपयोग से होने वाली दुर्घटनाओं पर लागू होती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) द्वारा जारी अस्पताल पैनल दिशा-निर्देशों के आधार पर देशभर में कुल 32,557 अस्पताल इस योजना के तहत नामित किए गए हैं। इनमें आयुष्मान भारत पीएम-जेएवाई के तहत पहले से पैनल अस्पताल, जो योजना की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, स्वतः शामिल माने गए हैं।
सबसे अधिक अस्पताल उत्तर प्रदेश (6,140), कर्नाटक (3,607), आंध्र प्रदेश (2,472), तमिलनाडु (2,295) और गुजरात (2,076) में शामिल हैं।
अब तक अस्पतालों द्वारा कुल 2,644 दावे राज्य स्वास्थ्य एजेंसियों को प्रस्तुत किए गए, जिनमें से सभी को मंजूरी दी गई और 73.88 लाख रुपये का भुगतान जारी किया गया।
गडकरी ने बताया कि अस्पतालों को भुगतान मोटर व्हीकल एक्सिडेंट फंड (एमवीएएफ) के माध्यम से किया जाता है- बीमा-युक्त वाहनों के मामलों में भुगतान जनरल इंश्योरेंस काउंसिल करती है।
बिना बीमा वाले वाहनों के मामलों में भुगतान संबंधित जिले के जिलाधिकारी द्वारा किया जाता है।
पीड़ित के डिस्चार्ज होने के बाद अस्पताल आवश्यक दस्तावेजों के साथ दावा राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (एसएचए) को भेजते हैं, जिसके सत्यापन और मंजूरी के बाद भुगतान जारी होता है।
सरकार का कहना है कि यह योजना दुर्घटना पीड़ितों को शुरुआती ‘गोल्डन आवर’ में त्वरित इलाज सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू की गई है, जबकि विपक्षी दलों और विशेषज्ञों का ध्यान पुलिस द्वारा अस्वीकृत किए जा रहे 20 प्रतिशत मामलों पर है, जिनके कारण योजना की प्रभावशीलता पर प्रश्न उठ रहे हैं।
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