इस वर्ष के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करने की आखिरी तारीख नजदीक आ रही है जो कि 31 जुलाई 2019 है

 वित्त वर्ष 2018-19 खत्म हो चुका है और अब इस वर्ष के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करने की आखिरी तारीख नजदीक आ रही है जो कि 31 जुलाई 2019 है। इसमें निवेशकों को अपने बीते वर्षों के दौरान किए गए निवेश से जुड़े दस्तावेज देने होंगे, ताकि आप इस बार के आईटीआर में उसका उल्लेख कर अपना टैक्स बचा पाएं। वहीं इस साल के लिए भी नौकरीपेशा निवेशक अभी से निवेश प्लानिंग शुरू कर चुके हैं। अगर आप इस वित्त वर्ष 2019-20 में टैक्स बचाना चाहते हैं तो आपको अपने निवेश पोर्टफोलियो को विशेष तरह से डिजाइन कर लेना चाहिए।

आपको अपने पोर्टफोलियो में तमाम तरह के निवेश विकल्पों का समावेश करना चाहिए। क्योंकि अलग-अलग निवेश विकल्पों का इस्तेमाल कर आप काफी ज्यादा टैक्स बचा सकते हैं। हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको ऐसे ही निवेश विकल्पों और उनके जरिए बचने वाले टैक्स की जानकारी दे रहे हैं। हालांकि अगर आप टैक्स बचत का ज्यादा फायदा उठाना चाहते हैं तो आपको लेटेस्ट टैक्स नियमों की जानकारी होनी चाहिए।

डेट म्युचुअल फंड: डेट म्युचुअल फंड में हुए प्रॉफिट पर टैक्स बचत क्लेम कर सकते हैं। टैक्स एक्सपर्ट और इन्वेस्टमेंट एडवाइजर बलवंत जैन ने बताया कि डेट म्युचुअल फंड पर टैक्स होल्डिंग पीरियड के आधार पर लगाया जाता है। यह दो तरह का होता है…

  • शार्ट टर्म: यह एक तरह की रेगुलर इनकम होती है। इसे रेगुलर इनकम मान लिया जाता है और फिर इस पर स्लैब के आधार पर ही टैक्स लगता है।
  • लॉन्ग टर्म: यह तीन वर्ष या उससे ऊपर की होल्डिंग पीरियड पर लागू होता है। इस पर इंडेक्सेशन के आधार पर टैक्स लागता है। मान लीजिए आपने कोई चीज 100 रुपये की 10 वर्षों के लिए खरीदी….और अब उसकी कीमत इंडेक्शेसन के हिसाब से 200 रुपये हो गई तो इस पर कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्श (सीआईआई) के आधार पर टैक्स लगेगा। सीआईआई को सरकार नोटिफाई करती है जो कि बेस पीरियड के आधार पर होता है।

मान लीजिए आपने कोई चीज 200 रुपये में खरीदी और उसकी मार्केट कॉस्ट कुछ वर्षों में 400 रुपये हो गई। अगर आप उसे 600 रुपये में बेचते हैं तो आपका टैक्सेबल प्रॉफिट 200 रुपये ही माना जाएगा। ऐसे में आपके पास दो विकल्प होंगे बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसद और इंडेक्सेशन के बाद 20 फीसद का टैक्स भरने का।

अगर आपको 10 फीसद या 20 फीसद टैक्स भरने का मन नहीं कर रहा है तो आप एग्जम्पशन क्लेम कर सकते हैं। इसमें आपको सेल से मिली राशि का निवेश कोई मकान खरीदने में करना होगा। आपका टैक्स बच जाएगा। यह छूट आयकर की धारा 54 (F) के अंतर्गत मिलती है।

बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट: यह निवेश का परंपरागत और एक बेहतर विकल्प माना जाता है। फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश पर आयकर की धारा 80C के तहत कर में छूट पाई जा सकती है। यह टैक्स छूट एक वित्त वर्ष के दौरान 1.50 लाख रुपये तक होती है। सीनियर सिटिजन को बैंक एफडी से मिले 50,000 रुपये तक के ब्याज पर टैक्स नहीं देना होता है। बाकि आप जिस इनकम टैक्स स्लैब में आते है फिक्स्ड डिपॉजिट से मिले ब्याज पर उसी हिसाब से कर लगाया जाता है।

सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम: सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम में निवेश पर भी आप टैक्स बचत का क्लेम कर सकते हैं। यह छूट आयकर की धारा 80C के तहत एक वित्त वर्ष के दौरान 1.50 लाख रुपये होती है। अगर ब्याज से होने वाली आय 10,000 रुपये तक है तो टीडीएस नहीं काटा जाता है। बाकी आप जिस टैक्स स्लैब में आते हैं उसी हिसाब से टैक्स देना होगा।  

नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट: अगर आप सुरक्षित निवेश के साथ बेहतर रिटर्न भी चाहते हैं तो आपको इसका चयन करना चाहिए। इस योजना को सरकारी कर्मचारी, बिजनेसमैन और कर अदा करने वाले अन्य वेतन भोगियों की जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए जारी किया गया है। इसमें निवेश की कोई सीमा नहीं होती है। राष्ट्रीय बचत पत्र दो तरह के होते हैं पहल है, टाइप-1 (VIII इश्यू) और दूसरा, टाइप-2 (IX इश्यू)। इस पर टीडीएस नहीं कटता है। ट्रस्ट और एचयूएफ इसमें निवेश नहीं कर सकते हैं। इसमें जमा पर 7.9 फीसद की दर से ब्याज मिलता है। इसमें जमा पर आयकर की धारा 80सी के तहत छूट मिलती है। अगर ब्याज का फिर से निवेश किया जाता है तो धारा 80C के तहत अधिकतम 1.50 लाख रुपये तक की कटौती का दावा कर सकते हैं। नहीं तो अर्जित ब्याज से टैक्स स्लैब के हिसाब से कर देना होता है। 

डाकघर सावधि जमा खाता (Post office fixed deposit account): डॉकघर में फिक्स्ड डिपॉजिट को टाइम डिपॉजिट कहा जाता है, तो कि एक वर्ष, दो वर्ष, तीन वर्ष और पांच वर्ष के लिए होता है। डाकघर सावधि जमा खाता भी निवेश का एक बेहतर माध्यम है, जिसमें आपको 7 से 7.8 फीसद की दर से ब्याज मिलता है। 7.8 फीसद की ब्याज दर आपको पांच वर्षीय खाते पर मिलती है। यह खाता व्यक्तिगत तौर पर खोला जा सकता है। सावधि जमा खाते पर आयकर अधिनियम 80C के तहत आयकर से छूट मिलती है। सीनियर सिटिजन को ब्याज से मिली 50,000 रुपये तक की आय पर टैक्स नहीं देना होता है।

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