बनना था क्रिकेटर और बन गया एक्‍टर!

क्रिकेट छोड़ अभिनय की दुनिया में छा गये आशुतोष सिन्‍हा

-विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ : ‘जाना था जापान पहुँच गये चीन समझ गये ना…!’ इस गाने को पूरी तरह चरितार्थ किया है अभिनेता आशुतोष सिन्हा ने। सब टीवी का सीरियल “लापतागंज, और “लापतागंज का कैरेक्टर “गुड्डू” को हर किसी का चहेता किरदार बना देने वाला अभिनेता आशुतोष सिन्हा, स्कूल और कॉलेज के दिनों में एक क्रिकेटर के तौर पर अपना कैरियर बनाना चाहते थे, पर कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था। ओपनर बैट्समैन और विकेट कीपर की हैसियत से आशुतोष सिन्हा ने कॉलेज रिप्रजेंट किया, यूनिवर्सिटी रिप्रजेंट किया, गया डिस्ट्रिक्ट टीम में अपना स्थान बनाया। फिर गया जूनियर डिस्ट्रिक्ट टीम का कैप्टन बन कर उन दिनों न्यूज़ पेपर के सुर्खियों में छा गये। क्योंकि आशुतोष के कैप्टनशीप में गया डिस्ट्रिक्ट की जूनियर टीम पहली बार सेमीफाइनल तक पहुँच पाई थी। रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में बिहार की टीम से आशुतोष का खेलना लगभग तय माना जा रहा था, पर किसी कारण बिहार की टीम में सलेक्शन न हो पाने से आशुतोष को गहरा सदमा लगा। और फिर इस तरह एक होनहार क्रिकेटर का क्रिकेट से हमेशा-हमेशा के लिये मोहभंग हो गया।

आशुतोष कह्ते हैं कि कोई भी काम अगर दिल से की जाये तो कभी जाया नहीं होता, कभी न कभी, कुछ न कुछ, उसका फायदा ज़रूर मिलता है। आशुतोष ने अपने स्पोर्ट्समैन स्प्रीट को थियेटर की दुनियॉ में इस्तेमाल कर,कम ही समय में, अभिनय के क्षेत्र में अपने लिये अनमोल सुअवसर पैदा कर लिये। अपनी पहली ही फिल्म में ओमपुरी, शबाना आज़मी, शत्रुघ्न सिन्हा, मोहन अगाशे जैसे महान कलाकारों के साथ आशुतोष ने स्क्रीन शेयर किया। प्रोड्यूसर संजय सहाय और “पार” फिल्म बना कर फेमस हुए बंगाल के डायरेक्टर गौतम घोष की हिंदी फिल्म “पतंग”में अशुतोष को पहली बार कैमरे के सामने अभिनय करने का मौका मिला। “पतंग” फिल्म में साथ काम करते हुए दिग्गज कलाकारों ने आशुतोष की अभिनय प्रतिभा को नोटिस भी किया और प्रोत्साहित भी। फिर दोस्तों और चाहने वालों ने धक्का मार-मार कर आशुतोष को मुंबई तक पहुँचा दिया।

आशुतोष कहते हैं, ”माफी चाहता हूं, पर बताना चाहूंगा,जब मैं यहां आया था, तो इस महानगर का नाम बम्बई हुआ करता था। और सी.एस.टी स्टेशन को वी.टी के नाम से जाना जाता था। इस तरह बम्बई के मुंबई तक के सफर का सहयात्री बनकर फिल्म लाइन में संघर्ष करते हुये दिन,महीने, साल कैसे गुजरते चले गये पता ही नहीं चला।”आशुतोष आगे कहते हैं, ”मैंने संघर्ष नहीं, साधना की है। आशुतोष कहते हैं, मुंबई में थियेटर ने मुझे बहुत सहारा दिया। ओम कटारे जी का ‘यात्री थियेटर ग्रुप’ से जुड कर मैंने ने बहुत सारे नाटकों में यादगार किरदार निभाये। आशुतोष बहुत ही सम्मान के साथ ओम कटारे जी का नाम लेते हुये कहते हैं, ”श्री ओम कटारे जी मेरे गुरु हैं, मैंने थियेटर की बारीकियां उन्हीं से सीखी हैं। मुंबई में काफी सालों तक आशुतोष ने अपना पूरा समय सिर्फ थियेटर करते हुये, और शूरजी बल्लभ दास आयुर्वेदिक दवा की कम्पनी में, सुपरवाइज़र के तौर पर पार्ट-टाइम जॉब करते हुये निकाला है। ओमपुरी, शबाना आज़मी, शत्रुघ्न सिन्हा, मोहन अगाशे जैसे महान कालाकारों, और एवार्ड वीनिंग डायरेटर के साथ “पतंग” फिल्म में सिराज के निगेटिव किरदार को पर्दे पर जीवंत कर देने वाले अभिनेता आशुतोष सिन्हा को बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने में इतना समय क्यों लगा?

इसके जवाब में आशुतोष कहते हैं, ”गया जैसे छोटे शहर के मध्यम वर्गीय परिवार से एक साधारण कद–काठी का लडका मुंबई जैसे महानगर में आ कर फिल्म इंडस्ट्री में ख़ुद को साबित करने का प्रयास करता है, उससे समय का हिसाब लिया जाना, मेरे हिसाब से उचित नहीं है।”आशुतोष आगे जोड़ते हैं, ”पानी को भी आसमान पर पहुंच कर बरसने के लिये, पहले सूखना पड़ता है। राइटिंग स्किल के बारे में पूछने पर आशुतोष कहते हैं, ”थियेटर की दुनिया में अच्छे नाटकों की कमी ने मुझे राइटर बनाया।” लेखक के तौर पर आशुतोष सिन्हा ने बहुत सारे नाटक लिखे हैं। इनके लिखे नाटक, देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी हिट हुये हैं। इन नाटकों में बड़े-बड़े फिल्मी कलाकारों ने काम किया है। “लॉफ़्टर क्लब” नाम से आशुतोष की लिखी एक एकांकी संग्रह भी छप कर मार्केट में आ चुकी है। इसमें चार छोटे नाटक हैं, जिसे आशुतोष ने लिखा भी, निर्देशित भी किया, और अपना “चित्रांश थियेटर ग्रुप” बना कर “पृथ्वी थियेटर” के प्लेटफॉर्म शो में इन चारो नाटकों के काफी शोज़ भी किये। फिर नाट्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले कर आशुतोष ने कई एवार्ड जीते। एक समय था जब आशुतोष के निर्देशन में काम करने के लिये कलाकार दूर-दूर से इनके पास आते थे। उन दिनों थियेटर निर्देशक के तौर पर आशुतोष का नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाने लगा था, पर आशुतोष अभिनेता के रूप में पहचान बनाने मुंबई आये थे। इसीलिये जल्दी ही इन्होंने अपने-आप को थियेटर के निर्देशन से अलग कर लिया। आशुतोष कहते हैं, ”आज भी दूसरे निर्देशकों के निर्देशन में मेरे लिखे नाटकों का मंचन देश-विदेश में आये दिन होते रहते हैं।”

आशुतोष के लिखे नाटकों में जिन बडे कलाकारों ने काम किया है, उनमें अभिनेत्री पूनम ढिल्लन, सूरज थापर,रेखा सहाय, लीलीपुट जैसे कुछ नाम प्रमुख हैं। नाटक “द परफेक्ट हस्बैंड” को वर्ल्ड वाईड हिट नाटक की श्रेणी में आज भी रखा जाता है, जिसका एडप्टेशन आशुतोष ने किया था। साथ ही साथ अभिनेत्री पूनम ढिल्लन अभिनित “द परफेक्ट हस्बैंड” नाटक में आशुतोष ने शिवराम का एक बेहद मज़ेदार कैरेक्टर भी निभाया था, जिसके हर एक एंट्री पर दर्शकों की तालियां गूंजती थी। “द परफेक्ट हस्बैंड” नाटक की देश-विदेश में अपार सफलता के बाद आशुतोष ने इसका सीक्वल नाटक लिखा जिसका नाम “द परफेक्ट वाइफ़” था। “द परफेक्ट वाइफ़” नाटक में भी अभिनेत्री पूनम ढिल्लन,सूरज थापर, लीलीपुट जैसे कलाकारों ने काम किया था। प्रोड्यूसर-डयरेक्टर अश्विनी धीर ने “द परफेक्ट हस्बैंड” नाटक में आशुतोष के काम को देख कर इतने प्रभावित हुये कि अपने सब टीवी का सीरियल “लापतागंज” में गुड्डू का किरदार निभाने का मौका दे दिया। आशुतोष ने फिर गुड्डू के किरदार में ऐसी जान फूंकी, कि लोग आज भी उस करेक्‍टर को याद कर मुस्‍कुरा उठते हैं। “लापतागंज” के एक हज़ार से भी ज़्यादा एपिसोड कर चुके आशुतोष सिन्हा के देश-विदेश में अनेकों फैन्स हैं। आशुतोष कहते हैं, ”थियेटर की वजह से ही मैंने विदेश यात्रायें की हैं।” थियेटर शो के लिये अमेरिका, लंदन,दुबई के कई यात्रायें आशुतोष कर चुके हैं।

इस तरह आशुतोष सिन्हा के कामों की लम्बी फ़ेहरिस्त है। आशुतोष अपने इस फ़ेहरिस्त को और बड़ा करने के लिये दिन के 16 से 18 घंटे काम करते हैं। आशुतोष कहते हैं कि उनके कैरियर में बहुत बार चमत्कार हुये हैं। पर बहुत बार बड़े चमत्कार होते-होते रुके भी हैं। फिर याद करते हुये कहते हैं, ”मैं उन दिनों ‘बालाजी टेली फिल्म’ का सीरियल‘बंधन’ का डायलॉग राइटिंग किया करता था, जो डी.डी-2पर टेलिकास्ट हुआ करता था। करीब 100 एपिसोड से भी ज़्यादा लिखने के बाद “बंधन” ऑफ एअर हुआ। फिर से काम की तलाश शुरू हो गयी। तभी ‘स्‍टार प्‍लस’ पर‘बालाजी’ का सीरियल ‘कहानी घर-घर की’ स्टार्ट हुआ था। मुझे ‘कहानी घर-घर की’ का स्क्रीन प्ले लिखने वाले राइटर की टीम में शामिल होने के लिये बुलाया गया। मुझे काम चाहिये भी था, सो मैंने फ़ौरन ज्वाइन कर लिया।” आशुतोष आगे बताते हैं, ”अब मेरे आने से उन दो राइटरों की टीम में कुल तीन राइटर हो गये। हम तीनों राइटर मिल कर पहले स्क्रीन प्ले लिखते, फिर मैं भाग कर ‘बालाजी टेली फिल्म’ के ऑफिस जाता, जहां एकता कपूरजी को स्क्रीनप्ले सुनाना होता था। एकता जी को स्क्रिप्‍ट सुनाने के लिये मुझे काफी इंतज़ार भी करना पडता था, पर मैं एकता जी के सजेशंस का आज भी कायल हूं। उनके सजेशंस सुन कर ऐसा लगता था जैसे वो हम तीनों राइटरों से ज़्यादा कहानी में घुसी हुई हैं। और ये सिर्फ ‘कहानी घर-घर की’ के लिये नहीं, बल्कि ‘बालाजी’ के सारे सीरियलों में उनका ऐसा ही इंवॉल्मेंट हुआ करता था।

आशुतोष बताते हैं, ”एक बार की बात है। एक दिन एकता जी ने एक सीन के बारे में मुझसे पूछ लिया कि किसने लिखा है। मैंने डरते हुये कहा कि मैम हम तीनों ने मिल कर लिखा है। मुझे याद है, मेरी बात सुन कर एकता जी ने मुस्कुरा दिया था। फिर एक दिन एक सीन के बारे में पूछ लिया उन्होंने, मेरा फूलप्रूफ जवाब मैंने दे दिया कि हम सब ने मिल कर लिखा है। एकता जी ने कुछ नहीं कहा सिर्फ़ घूरा मुझे। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था क्या हो रहा है। तभी एकता जी ने फिर एक दिन एक सीन के बारे में पूछ लिया, किसने लिखा है ये सीन सच-सच बताओ मुझे। मैं बुरी तरह डर गया, मुझे लगा आज अंतिम दिन है ‘बालाजी’में मेरा। मैंने हिम्मत जुटाया, क्योंकि उन्होंने सच-सच पर बहुत ज़ोर दिया था। अपनी घबराहट को छिपाते हुये मैंने कहा कि मैम ये सीन मैंने ही लिखा है। सुन कर एकता जी मुस्कुरा पड़ी, और कहा कि मुझे पता था कि ऐसे सारे कॉमिकल सीन्स तुम ही लिख रहे हो, क्योंकि तुम्हारे ज्वाइन करने से पहले ऐसे सीन नहीं आते थे। फ़िर आगे जो उन्होंने मुझसे पूछा, उसे मैंने अपनी मेमोरी में ऐसे सेव किया है कि मैं कभी ना भूल पाऊं। आशुतोष यादों के पुराने पन्‍नों को खोलते हुए बताते हैं, ”एकता जी ने मुझसे पूछा कि आशुतोष तुम मेरे लिये कॉमेडी सीरियल लिखोगे? मैं तो घबराहट के मारे सिर्फ़,हां-हां, ज़रूर लिखूंगा मैम, क्यों नहीं लिखूंगा कह दिया। और फिर एकता जी ने ऐसे अपने सर को हाथ लगाया जैसे ईश्वर ने उनकी मुराद पूरी कर दी हो। जब एकता जी के केबिन से मैं बाहर निकला तो “शो” की ईपी ने मुझे बधाई देते हुये कहा कि आशुतोष समझ लो आज तुम्हारी किस्मत खुल गई। एकता कपूर ने सामने से तुमसे कहा कि आशुतोष तुम मेरे लिये कॉमेडी सीरियल लिखोगे। इससे बड़ी बात एक राइटर के लिये क्या हो सकती है। मैं तो आसमान में उड़ने लगा। रोज नये-नये सपने देखने लगा।

वे आगे बताते हैं, एक दिन मुझे एकता जी को स्क्रिप्‍ट सुना कर, अपने नाटक ‘अभी तो मैं जवान हूं’ के रिहर्सल के लिये जाना था, जिसका शो अगले दिन होने वाला था। नाटक के डायरेक्टर ओम कटारे जी ने मुझे धमकी दे रखी थी। क्योंकि दो दिन के रिहर्सल में एक दिन मैं पहले ही बंक कर चुका था। हालांकि इस नाटक के काफी शो हो चुके थे, इस लिये अब हर शो से पहले दो दिन का ही रिहर्सल रखा जाता था। ख़ैर, स्क्रिप्‍ट सुना कर मुझे रिहर्सल में जाने की जल्दी थी, पर एकताजी मिलने आईं अपनी सहेलियों के साथ बिज़ी थीं। जैसे-जैसे समय बीत रहा था मेरा टेंशन बढता जा रहा था। मैंने ई.पी को धीरे से कहा मुझे देर हो रही है। ई.पी ने एकताजी को बताया कि आशुतोष को नाटक के रिहर्सल के लिये जाना है। एकता जी ने मेरी तरफ़ एक बार देखा, फ़िर ई.पी से कहा ठीक है आशुतोष को जाने दो। एकताजी का कहना कि आशुतोष को जाने दो,मेरे लिये ऐसा परमाणु बम सबित हुआ, जिसने मेरे सारे सपने ध्वस्त कर दिये। मैं बिल्कुल बे रोज़गार हो गया था।‘बालाजी’ में मेरे लिये अब कोई काम नहीं था। हो जाता तो चमत्कार था, पर होते-होते रह गया, लेकिन कुछ चमत्कार मेरे जीवन में ज़रूर हुए हैं जिसके लिये मैं ईश्वर को हृदय से धन्यवाद करता हूं।” बोलते-बोलते आशुतोष थोड़े भावुक हो जाते हैं।

अपने-आप को नॉर्मल करते हुये आशुतोष आगे बताते हैं, ”उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस वाली एक हिंदी फीचर फिल्म आगामी अक्टूबर माह में रिलीज़ होने जा रही है, जिसका टाइटल है “केयरलेस”। “केयरलेस” फिल्म के बारे में पूछने पर आशुतोष मना करते हुये कहते हैं, ”अपने किरदार और फिल्म की कहानी के बारे में फिलहाल मीडिया में कुछ भी कहने की प्रोड्यूसर की तरफ़ से इजाज़त नहीं है मुझे।”पर इतना ज़रूर बताया आशुतोष ने कि “केयरलेस” फिल्म के डायरेक्टर आलोक श्रीवास्तवजी ने एडिटिंग स्टूडियो में जब फिल्म की फाइनल एडिटिंग देखी, तो वो अपने-आप को रोक नहीं पाये, स्टूडियो से ही मुझे फ़ोन कर के मेरे काम की तारीफ़ करते की, और उन्होंने मुझे ढेरों शुभकामनायें भी दीं। इसके अलावा “केयरलेस” फिल्म के एडिटर प्रकाश झा जी ने भी मुझे फ़ोन किया, और मेरे काम की तारीफ़ की। भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर आशुतोष ने ख़ुद के लिखे शेर कुछ यूं कह दिये– ”आशियाना आसमान में बन जाये ऐसी कोई चाहत नहीं, पर ऊंचाई को एक बार करीब से निहारना तो है मुझे। अंत में आशुतोष अपनी जीवन संगिनी श्रीमती रेखा सिन्हा के सहयोग की सराहना करते हुये कहते हैं, ”मैं जब भी हताश या निराश हुआ हूं, मेरी पत्नी रेखा सिन्हाजी ने ही मुझे सम्भाला है। उनकी त्याग और तपस्या को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।”

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