इकोनॉमिक सर्वे 2018-19 में निवेश को देश की तरक्की का मुख्य वाहक बताया गया था और शायद ही कोई इससे इत्तेफाक न रखता हो. इससे उत्पादन क्षमता बढ़ती है, कामगारों की उत्पादकता बढ़ती है, नई टेक्नोलॉजी आती है और नौकरियों का सृजन होता है. लेकिन हालात तो इसके बिल्कुल विपरीत दिख रहे हैं. न तो सरकारी निवेश बढ़ रहा है और न ही निजी क्षेत्र का, दोनों में इसे लेकर कोई उत्साह नहीं है, जिससे अर्थव्यवस्था की सुस्ती और बढ़ जाती है.

साल 2010-11 के बाद से केंद्र सरकार का कुल व्यय तेजी से घटा है. साल 2010-11 में यह जीडीपी का 15.4 फीसदी तक था, लेकिन वर्ष 2018-19 तक यह घटकर महज 12.2 फीसदी रह गया. कहा जा रहा है कि राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के भीतर रखने के उद्देश्य से सरकार ने खर्चों में कटौती की है. साल 2010-11 में जीडीपी के 4.8 फीसदी से घटकर 2018-19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 फीसदी रह गया है. लेकिन इकोनॉमिक सर्वे से पता चलता है कि पहले सरकारें ज्यादा टैक्स संग्रह कर राजकोष को मजबूत रखती थीं और अब ऐसा नहीं हो रहा.
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