नीलामी में स्पेक्ट्रम कीमत कम रखने पर विचार, टेलीकॉम कंपनियों ज्यादा भाव में नीलामी से रह सकती हैं दूर

दूरसंचार विभाग (DoT) चालू वित्त वर्ष में प्रस्तावित स्पेक्ट्रम नीलामी में बेस प्राइस कम रखने पर विचार कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक यह विचार इसलिए हो रहा है ताकि टेलीकॉम कंपनियां नीलामी में हिस्सा ले सकें और उन्हें किफायती दाम में स्पेक्ट्रम मिल सके। सूत्रों का कहना है कि विभाग स्पेक्ट्रम के दाम में 35 फीसद तक की कटौती के बारे में सोच रहा है।

डीओटी के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम अगले वर्ष मार्च से पहले स्पेक्ट्रम नीलामी की तैयारी कर रहे हैं। अभी तक की योजना के मुताबिक यह नीलामी इसी वित्त वर्ष में होनी है। हम स्पेक्ट्रम की कीमत कम करने पर विचार कर रहे हैं। टेलीकॉम मंत्री इस वर्ष इंडिया मोबाइल कांग्रेस के दौरान कह चुके हैं कि सरकार इस वर्ष की नीलामी के लिए स्पेक्ट्रम की कीमत की समीक्षा कर रही है। हालांकि, यह कटौती कितनी होगी, यह अभी तय नहीं किया जा सका है। लेकिन यह 30-35 प्रतिशत तक कम हो सकती है।’

सूत्रों के मुताबिक टेलीकॉम कमीशन इस महीने प्रस्तावित बैठक में स्पेक्ट्रम की बेस प्राइस घटाने के बारे में विचार करेगा। डीओटी का विचार है कि वर्तमान में टेलीकॉम कंपनियों की जिस तरह की माली हालत है, उसमें वे स्पेक्ट्रम के मौजूदा भाव पर नीलामी में हिस्सा लेने की हालत में नहीं हैं। भारत में इस वक्त टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की कीमत दुनियाभर में सबसे ज्यादा है।

डीओटी ने इससे पहले भारतीय टेलीकॉम नियामक प्राधिकरण (ट्राई) से स्पेक्ट्रम की कीमत घटाने की संभावनाओं पर विचार करने को कहा था। ट्राई ने 5-जी स्पेक्ट्रम के लिए प्रति मेगाहट्र्ज 492 करोड़ रुपये की बेस प्राइस रखने का सुझाव दिया। इसका मतलब यह है कि 100 मेगाहट्र्ज 5-जी स्पेक्ट्रम के लिए कंपनियों को करीब 50,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे।

गौरतलब है कि सरकार ने 4जी के अलावा 5जी स्पेक्ट्रम की पहली नीलामी भी चालू वित्त वर्ष में ही करने का लक्ष्य रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष 24 अक्टूबर को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के मामले में टेलीकॉम कंपनियों की दलीलें खारिज करते हुए सरकार के पक्ष में फैसला दिया था। इससे वोडाफोन आइडिया और एयरटेल पर करीब 90,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त देनदारी बन गई है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि कंपनियों को यह रकम अगले वर्ष 24 जनवरी तक चुका देनी है। ऐसे में अगर कंपनियां एजीआर का बकाया चुकाती हैं, तो वे नीलामी में हिस्सा लेने की हालत में नहीं होंगी।

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