डिप्‍टी CM बोले- इन पर न थोपें अपनी इच्छा,मन की बात लिखने का साहस करने वाले बच्चों का सम्मान,

दैनिक जागरण और यूनिसेफ का महाअभियान लिखना जरूरी है… का समापन कार्यक्रम बुधवार को गोमतीनगर के होटल हिल्टन इन गार्डेन में आयोजित हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह अवसर बेहद खास रहा, क्योंकि कार्यक्रम में वे बच्चे खासतौर से जुटें जिन्होंने सारी बंदिशों को तोड़कर अपने मन की बात लिखने का साहस दिखाया। उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने बेबाक मन की बात लिखने वाले बच्चों को सर्टिफिकेट प्रदान किया। साथ ही विभिन्न विद्यालयों के प्रतिनिधियों को सर्टिफिकेट प्रदान किया गया।

इस दौरान उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि उनको अपने बचपन की याद आ गई। उन्‍होंने कहा कि सोशल मीडिया प्रभावी है। एक समय बच्चे परिवार के साथ भोजन करते थे, लेकिन मोबाइल ने इसे भी प्रभावित किया। अपने बारे में बताते हुए उन्‍होंने कहा कि 12वीं के बाद डॉक्टर को देख डॉक्टर, इंजीनियर को देख इंजीनियर, आइएएस को देख आइएएस बनने की इच्छा होती थी। पोस्ट ग्रेजुएट की बाद पिता जी से बोल पाया कि मुझे अध्यापक बनना है। बच्चों को जो इच्छा करें, वही बनने देना चाहिए। अपनी इच्छा उनपर नहीं थोपनी चाहिए।

बच्चों को उड़ने दें, ट्रैफिक रूल्स का ध्यान रहे:  बेसिक शिक्षा मंत्री 

कार्यक्रम में बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र ने कहा कि अब कम पढ़े-लिखे ग्रामीण अभिवाहक भी अपने बच्चों के शिक्षा के प्रति सजग हुए हैं। स्मार्टफोन बच्चों और अभिवाहक के बीच गैप पैदा कर रहा है। बच्चों से संवाद बढ़ाना जरूरी है। लिखना जरूरी है.. के तहत बच्चों ने अपनी मन की बात कहकर मुझे तो भावुक कर दिया। बच्चों को उड़ने दें, लेकिन ट्रैफिक रूल्स का ध्यान रहते हुए। बच्चों को जो बनना है बनने दें।

वहीं, बाल अधिकार, स्वास्थ्य व सुरक्षा आदि पर चर्चा करते हुए यूनीसेफ के प्रोग्राम मैनेजर अमित मेहरोत्रा ने कहा कि बच्चों को अभिव्यक्ति का अधिकार देना है और समझना है। हम लगातार कार्य कर रहे हैं, बच्चों के शिक्षा आंकड़ों में सुधार आया है।

कार्यक्रम में बातचीत के दौरान बच्‍चों उनके अधिकार के बारे में पूछा गया? जिसका बच्‍चों ने जवाब दिया- बोलने का अधिकार, जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार। वहीं, श्रावस्ती से स्मार्ट बेटी ऋतु ने बताया कि वह मोबाइल की मदद से बाल विवाह के विरुद्ध लोगों को जागरूक करती हैं। वह स्मार्ट बेटी प्रोजेक्ट की सहयोगी हैं।

हल तलाशने की पहल 

पिछले कुछ समय से शहर में एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। किस तरह कम उम्र बच्चे दबाव और मन में घुट रहे स्वच्छंद विचारों के कारण घातक कदम उठा बैठे। यह सारी घटनाएं बेशक सुर्खियां बनीं लेकिन, ऐसी क्या वजह है कि खेलने और पढऩे की उम्र में बच्चे इस हद चले जा रहे हैैं? यह किसी ने नहीं सोचा। सरोकारीय पत्रकारिता के पैरोकार दैनिक जागरण ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को महसूस किया। इसके बाद ही बच्चों के हितों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ भी आगे आई और संयुक्त रूप से इस मुश्किल का हल तलाशने की पहल हुई। काफी विचार के बाद यह तथ्य सामने आए कि कहीं न कहीं पीढिय़ों का अंतर और वैचारिक मतभेद हावी हैं। बच्चे चाहकर भी अपने विचार माता-पिता, शिक्षकों और समाज से नहीं कह पा रहे। इसके बाद ही जागरण ने फैसला किया कि वह बच्चों के मन की बात का मंच बनेगा। जिसके बाद एक अक्टूबर से 19 नवंबर तक सतत अभियान चलाया।

50 दिनों चली मुहिम आज समापन 

करीब 50 दिनों चली हमारी उसी मुहिम का बुधवार को समारोह पूर्वक समापन हो रहा है। कार्यक्रम में बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी भी विशिष्ट अतिथि रहे। दैनिक जागरण के राज्‍य संपादक आशुतोष शुक्‍ल व स्थानीय संपादक सदगुरु शरण अवस्थी, यूनीसेफ के प्रोग्राम मैनेजर अमित मेहरोत्रा, कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट गीताली त्रिवेदी के अलावा शिक्षक और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग पूरे अभियान के बाबत अपने विचार साझा किए।

हमारे शब्दों की कीमत पता चली

  • गोमती नगर विस्तार सेंट फ्रांसिस के कक्षा-6 के छात्र आरव दुबे बताते हैं कि पापा के व्यस्त रहने की शिकायत मुङो उनसे लंबे समय से थी। मगर दैनिक जागरण ने मुङो अपनी बात रखने का एक मंच दिया। मैं बहुत खुश हूं। पहली बार किसी अखबार को देख रहा हूं, जो बच्चों की बातों को इतने अच्छे तरीके से रख रहा है। मुङो बुधवार के कार्यक्रम का बेसब्री से इंतजार है।
  • जापलिंग रोड लखनऊ पब्लिक कोलिजिएट के कक्षा 12वीं के छात्र रोहन साहू का कहना है कि मैंने पत्र के माध्यम से अपने दर्द को बयां किया और ‘दैनिक जागरण’ ने उसका प्रकाशन कर मेरा हौसला तो बढ़ाया। पिता जी का गुस्सा भी कम हो गया है। पत्र में मैंने पिता जी के सपनों को साकार करने के साथ ही गुस्से को दूर रखने की व्यथा लिखी थी। पिता जी को इसका एहसास हुआ और मुङो भी अब अच्छा लगता है। सम्मान से हौसला बढ़ेगा।
  • गोमतीनगर सीएमएस के कक्षा 12वीं के छात्र सृजन वर्मा का कहना है कि पढ़ाई के साथ ही अब मैं खेलता भी हूं और पिता जी खुश रहते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ क्रिकेट भी खेलता हूं। पिता जी अब नहीं टोकते हैं। पत्र लिखने के बाद आए इस बदलाव से मुङो काफी अच्छा लग रहा है। ‘दैनिक जागरण’ के प्रयास से मेरी पिता जी तक पहुंची है और उनके अंदर बदलाव आया। सम्मान से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।
  • महानगर माउंटफोर्ट इंटर कॉलेज के कक्षा 10 के छात्र ध्रुव राठौर ने बताया कि पत्र लिखने की जिज्ञासा जागी और परिवार को भी मैं अपनी भावनाओं से अवगत कराने में सफल हुआ। दैनिक जागरण के इस प्रयास से ही शिक्षकों और मेरे परिवार में बदलाव आए हैं। सम्मान से मेरे साथ मेरे परिवार का भी हौसला बढ़ेगा। दैनिक जागरण का यह सराहनीय कदम है।
  • अलीगंज के केंद्रीय विद्यालय के कक्षा आठ के छात्र यश आदित्य सिंह ने बताया कि दैनिक जागरण ने अपने मन की बात लिखने के लिए एक बेहतर मंच दिया। इस वजह से मैं अपनी बात सबके सामने रख सका। मम्मी-पापा ने खेल-खेल में मुङो काफी कुछ सिखाया और जागरण ने मेरी बात सभी तक पहुंचाई। साथ ही अब इसके सम्मान मिलना मेरे के लिए गर्व की बात है।
  • गोमती नगर रेड हिल स्कूल के कक्षा-8 के छात्र पृथ्वी सिंह का कहना है कि मेरे पापा के सामाजिक कार्यो के प्रति जुझारूपन ने मुझे लिखने के लिए मजबूर किया। दैनिक जागरण के लिखना जरूरी है अभियान के चलते मुङो पता चला कि वास्तविकता में हमारे शब्दों की भी कीमत है। उस पर अब हमको बड़े समारोह में सम्मानित किया जाएगा, ये और गौरव की बात है।

 

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