युवाओं को ही करना होगा चुनौतियों का सामना : आनंदीबेन पटेल

पूर्वांचल विवि के दीक्षांत समारोह में 65 मेधावियों को दिया स्वर्ण पदक

जौनपुर : शिक्षा ऐसी हो जो हमें आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय भावना भी पैदा करे। देश, समाज के प्रति चुनौतियों का सामना युवाओं को ही करना होगा, तभी हम नए भारत की नई तस्वीर बनाने में सक्षम होंगे। उक्त बातें राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के महंत अवैद्यनाथ संगोष्ठी भवन में मंगलवार को आयोजित विश्वविद्यालय के 23वें दीक्षान्त में सम्बोधित करते हुए कहीं। इस अवसर पर उन्होंने 65 मेधावियों स्नातक से 16 और परास्नातक के 49 मेधावियों को स्वर्ण पदक प्रदान किया। साथ ही 121 पीएचडी उपाधि धारकों को उपाधि से सम्मानित किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति एवं राज्यपाल ने कहा कि देश को टीबी जैसी गंभीर बीमारी से मुक्त कराने की चिंता हर नागरिक की है। पूरा विश्व 2030 तक टीबी मुक्त होने का संकल्प ले रहा है, लेकिन हमारे देश ने इसे 2025 तक खत्म करने का बीड़ा उठाया है।

उन्होंने कहा कि टीबी मरीजों और कुपोषित बच्चों को गोद लेकर हम इससे मुक्ति पा सकते हैं। बाल विवाह और दहेज उन्मूलन के लिए छात्र-छात्राओं से आगे आने को कहा। उन्होंने कहा जब घर में दहेज की मांग शुरू हो तभी लड़कियों को बगावत करनी चाहिए, ताकि उन्हें पूरी जिंदगी इस समस्या से जूझना न पड़े। शादी में वर पक्ष की तरफ से दहेज की मांग की जाय तो बेटियां मंडप से उठ जाएं। साफ कह दें कि उन्हें विवाह नहीं करना है, लड़का कोई और दुल्हन तलाश ले। यह शपथ राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने छात्राओं को दिलाई। बेरोजगारी पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि कौशल विकास के जरिए हम देश का सामाजिक व आर्थिक विकास कर सकते हैं। समारोह में मुुख्य अतिथि इस्कॉन मंदिर, श्रील प्रभुपाद आश्रम जम्मू कश्मीर के नव योगेन्द्र स्वामी ने कहा कि विश्वविद्यालय के मंत्र वाक्य तेजस्विना वधीतमस्तु वेद से लिया गया है। इसके अर्थ में पूरे शिक्षा का सार छिपा है।

इसमें कहा गया है कि हमारा ज्ञान तेजस्वी है। परमेश्वर शिष्य, आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग करायें, हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। उन्होंने श्रीमद्भगवतगीता को मानव जीवन से जोड़ते हुए उनकी चार मुख्य समस्याएं जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि में दुःख दोषों के दर्शन कराते हुए कहा कि इन्हीं चार समस्याओं के समाधान के लिए मानव जीवन मिला है। उन्होंने कहा कि भौतिक समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक है। विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिक पिछले सौ वर्षों से मानव चेतना की उत्पत्ति को समझने में असफल रहे। हमारे एक शिष्य अमेरिका के येल विश्वविद्यालय में पिछले 13 वर्षों से इस विषय पर शोध कर रहे हैं। वे बताते हैं कि अब दुनिया के अग्रणी वैज्ञानिक चेतना की उत्पति का आध्यात्मिक सिद्धांत देने के बारे में सोच रहे हैं जो भौतिक नहीं आध्यात्मिक है। हमारी शिक्षा पद्धति मानव जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बारे में बताती है। परंतु आज का व्यक्ति धर्म, अर्थ तथा काम में ही फंस कर रह गया है।

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