किसानों और ईमानदार पत्रकारिता की दिक्कतों को सामने रखता नाटक ‘चौथी आवाज़’ का भावपूर्ण मंचन

लखनऊ : संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगेजी सभागार में रविवार को नाटक ‘चौथी आवाज़’ का मंचन किया गया। पवन सिंह द्वारा लिखित और नवीन श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित यह नाटक कपास किसानों की दुर्दशा व एक ईमानदार पत्रकार के संघर्ष को दिखाता है। राजनैतिक और कारपोरेट मीडिया मिलकर कैसे पत्रकारिता की शुचिता को खत्म करते हैं, उसे बहुत ही खूबसूरत तरीके से मंचित किया गया। नाटक के कथानक के अनुसार विनोद त्यागी जिस अखबार में कार्यरत होता है, उसके मालिक की काटन मिलें होती हैं। यह जानते हुए भी विनोद त्यागी कपास किसानों पर एक स्टोरी करता है। बाद में उसे पता चलता है कि मुख्यमंत्री व कपास मंत्री के साथ काटन मिल मालिक एसोसिएशन के नेता गोपाल गन्ना कपास का समर्थन मूल्य कम करने के लिए मुख्यमंत्री आवास पर आता है। एक हजार करोड़ की डील फाइनल होती है।

विनोद त्यागी मुख्यमंत्री के मुहलगे चपरासी को अपनी ओर मिलाकर स्टिंग ऑपरेशन करता है, लेकिन वह उसे प्रकाशित नहीं कर पाता है। मुख्यमंत्री के दबाव में अखबार के काटन मिल मालिक की मिलें बंद करने का आदेश जारी कर दिया जाता है। विनोद त्यागी की नौकरी चली जाती है। अब उसे कोई अखबार नौकरी देने को तैयार नहीं होता है। घर में भुखमरी जैसे हालात हैं। स्टिंग ऑपरेशन की पैन ड्राइव अभी भी विनोद त्यागी के पास है। त्यागी उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर देता है। हंगामा खड़ा हो जाता है। लोगों के सहयोग से बाद में विनोद त्यागी अपना न्यूज पोर्टल खोलता है। ईमानदार पत्रकारिता के लिए उसकी लड़ाई जारी रहती है।

नाटक के मुख्य कलाकारों में अनुपम बिसारिया कपास मंत्री, मुख्यमंत्री की भूमिका में अर्जुन कुमार, पत्रकार की भूमिका में सुमित श्रीवास्तव, संपादक- अपर्णा त्रिपाठी, समाचार संपादक की भूमिका में अखबारी प्रसाद सिन्हा, पत्रकार की पत्नी की भूमिका में तान्या सूरी और चपरासी की दमदार भूमिका में आशुतोष जायसवाल व क्रासिंग वाल की भूमिका में अनुपम मिश्रा, काटन मिल मालिक की भूमिका में गौरव तिवारी ने प्रभावित किया। कलाकार गौरव शर्मा,तन्वी, अभिषेक यादव, पी.डी. सावंत की भूमिका ने भी प्रभावित किया। संगीत राहुल शर्मा, प्रकाश-तमाल बोस, मुख सज्जा-दिनेश अवस्थी, मंच संचालिका- शालिनी द्विवेदी, वेशभूषा-अपर्णा, तन्वी, तान्या ने संभाली। जबकि पूर्वाभ्यास प्रभारी- अभिषेक यादव का था।

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