प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम के चेयरमैन से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। पूछा है कि उनके अधिकारी व अधिवक्ता का ऐसा रवैया क्यों है।
निगम के अधिकारी राम बाबू सिंह ने हलफनामा दाखिल किया जिसमें किस पद पर कार्यरत हैं, का उल्लेख नहीं किया। जो कि बाध्यकारी है। जब पूछा गया कि पद नाम क्यों नहीं लिखा तो निगम के अधिवक्ता ने कहा कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर के साथ पदनाम की मुहर लगी है, जो हलफनामे का हिस्सा है। उसे स्वीकार किया जाय।
इतना ही नहीं पूरक हलफनामे में एक निर्णय संलग्न करने का उल्लेख है, किन्तु ढूंढने पर भी वह निर्णय हलफनामे में कहीं नहीं मिला। लगता है बिना देखे हलफनामा दाखिल कर दिया गया है, जो निंदनीय है। कोर्ट ने चेयरमैन को 21 मई अगली सुनवाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भारतीय जीवन बीमा निगम की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका में स्थाई लोक अदालत के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई है। जिसने विपक्षी मेघश्याम शर्मा के पक्ष में 74508 रूपये सात फीसदी ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया है और वाद खर्च के रूप में पांच हजार रुपए देने का निर्देश दिया है।
विपक्षी ने पांच बीमा लिया।जिसकी किश्तों का भुगतान तीन साल किया गया। उसके बाद नहीं किया गया।बाद में विपक्षी ने जमा राशि वापस मांगी तो निगम ने इंकार कर दिया।तो लोक अदालत की शरण ली गई और हाईकोर्ट में कैजुअल तरीके से हलफनामा दायर किया गया।
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