लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय मध्यवर्गीय मूल्यों के खिलाफ : हाईकोर्ट

प्रयागराज : शादी का झूठा वादा करके एक महिला का यौन शोषण करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा “ भारतीय मध्यम वर्गीय समाज में स्थापित मूल्यों ” के खिलाफ है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने अदालतों में पहुंचने वाले ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या पर भी नाराजगी व्यक्त की। हाईकोर्ट ने कहा ” सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिव-इन-रिलेशनशिप को वैधानिक बनाए जाने के बाद, न्यायालय ऐसे मामलों से तंग आ चुका है। ये मामले न्यायालय में इसलिए आ रहे हैं क्योंकि लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय मध्यवर्गीय समाज में स्थापित कानून के विरुद्ध है… “।

कोर्ट ने आगे कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप महिलाओं को अनुपात में नुकसान पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि पुरुष ऐसे रिश्ते खत्म होने के बाद आगे बढ़ सकते हैं और यहां तक ​​कि शादी भी कर सकते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए ब्रेकअप के बाद जीवन साथी ढूंढना मुश्किल होता है।

अदालत ने यह टिप्पणी शाने आलम नामक एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिस पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। उस पर आरोप है कि उसने शादी का झूठा आश्वासन देकर पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया।

कोर्ट के समक्ष पीड़िता के वकील ने दलील दी कि आरोपी के कृत्यों ने उसके पूरे जीवन का शोषण किया है, क्योंकि कोई भी उससे शादी करने को तैयार नहीं है।

इन दलीलों पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि हालांकि लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा ने युवा पीढ़ी को काफी आकर्षित किया है, लेकिन इसके दुष्परिणाम वर्तमान मामले जैसे मामलों में देखे जा रहे हैं।

हालांकि, पीठ ने आरोपित को 25 फरवरी से लगातार जेल में रहने, किसी पूर्व आपराधिक इतिहास की अनुपस्थिति, आरोपों की प्रकृति और जेलों में भीड़भाड़ को देखते हुए जमानत दे दी।

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