प्रस्तावना में बदलाव संविधान की आत्मा से धोखा, आपातकाल का निर्णय बना नासूर : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान किए गए बदलावों को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने 1976 के 42वें संविधान संशोधन के तहत प्रस्तावना में जोड़े गए शब्दों को संविधान की आत्मा से धोखा और भारतीय सभ्यता के साथ विश्वासघात करार दिया।

उपराष्ट्रपति निवास में आयोजित एक समारोह में कर्नाटक के पूर्व एमएलसी और लेखक डीएस वीरैया ने ‘अंबेडकर के संदेश’ पुस्तक की पहली प्रति उपराष्ट्रपति को भेंट की। इस अवसर पर धनखड़ ने कहा कि प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और इसका परिवर्तन उस आत्मा को ठेस पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि भारत को छोड़कर किसी भी देश की संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हुआ। क्योंकि प्रस्तावना एक मूल, अपरिवर्तनीय आधार होती है, लेकिन भारत में इसे उस समय बदला गया, जब देश आपातकाल के अंधकार में था।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए, जो न केवल संविधान निर्माताओं की भावना के साथ धोखा है बल्कि सनातन आत्मा के अपमान के बराबर है। उन्होंने कहा, “ये शब्द नासूर की तरह हैं, जो संविधान की आत्मा में उथल-पुथल पैदा करते हैं। यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र के सबसे अंधकारमय काल में हुआ, जब लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित थे और न्याय व्यवस्था तक पहुंच संभव नहीं थी।

धनखड़ ने कहा कि यह विचारणीय है कि हम भारत के लोग के नाम पर संविधान की आत्मा में परिवर्तन तब किया गया जब वे लोग स्वयं स्वतंत्र नहीं थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक केसों- केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) और गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका ने भी प्रस्तावना को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना है। उन्होंने भीमराव अंबेडकर के योगदान को याद करते हुए कहा कि वे राजनेता नहीं, बल्कि राष्ट्रपुरुष और एक महामानव थे।

उन्होंने संविधान सभा में दिए गए अंतिम भाषण को उद्धृत कर कहा, “अगर भारत के नागरिक अपनी निष्ठा पंथ, भाषा या संस्कृति के आधार पर तय करेंगे और देश को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी।” उन्होंने कहा कि इतिहास को दोहरने से रोकने के लिए हर नागरिक को सजग रहना होगा। धनखड़ ने लोकतंत्र के मंदिरों, संसद और विधानसभाओं की गरिमा पर भी चिंता जताई और कहा कि इन संस्थानों का अपवित्रीकरण नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवधानों के कारण लोकतंत्र की यह पवित्र भूमि आज संकट में है।

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