अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से एच-1बी वीजा को लेकर नए शुल्क और सख्त नियमों की घोषणा पर भारत ने बैलेंस रिएक्शन दिया है. विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इस कदम को दोनों देशों के आर्थिक हितों पर असर डालने वाला बताया है. इसके साथ ही भारत ने उम्मीद जताई है कि उद्दोग और नीति निर्माता मिलकर इसका कोई न कोई समाधान निकाल लेंगे.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार ने अमेरिकी H1B वीज़ा कार्यक्रम पर प्रस्तावित प्रतिबंधों से संबंधित रिपोर्ट देखी हैं. इस उपाय के पूर्ण निहितार्थों का अध्ययन सभी संबंधित पक्षों द्वारा किया जा रहा है, जिसमें भारतीय उद्योग भी शामिल है, जिसने H1B कार्यक्रम से संबंधित कुछ धारणाओं को स्पष्ट करते हुए एक प्रारंभिक विश्लेषण पहले ही प्रस्तुत कर दिया है… इस उपाय के मानवीय परिणाम होने की संभावना है क्योंकि इससे परिवारों को व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है. सरकार को उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी इन व्यवधानों का उचित समाधान कर सकेंगे.
अमेरिका में काम कर रहे भारतीय टेक्नोलॉजी पेशेवरों और बड़ी कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा प्रोग्राम में बड़े बदलाव करने के लिए एक घोषणा पत्र पर साइन किए हैं. इस घोषणापत्र के अनुसार, अब प्रत्येक आवेदन के लिए प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर का शुल्क देना होगा. ट्रंप का कहना है कि इसका मकसद विदेशी कामगारों की बजाय अमेरिकी लोगों को नौकरी देना है. व्हाइट हाउस में आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारी नौकरियां हमारे नागरिकों को मिलें. हमें अच्छे कामगार चाहिए और यह कदम उसी दिशा में है.
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लूटनिक ने भी इस फैसले का बचाव किया. उन्होंने कहा कि अब बड़ी कंपनियां विदेशी लोगों को सस्ते में काम पर नहीं रखेंगी, क्योंकि पहले सरकार को 1 लाख डॉलर देने होंगे और फिर कर्मचारी को वेतन देना होगा. तो, यह आर्थिक रूप से ठीक नहीं है. आप किसी को प्रशिक्षित करेंगे. आप हमारे देश के किसी अच्छे विश्वविद्यालय से हाल ही में स्नातक हुए किसी व्यक्ति को प्रशिक्षित करेंगे, अमेरिकियों को प्रशिक्षित करेंगे. हमारी नौकरियां छीनने के लिए लोगों को लाना बंद करें. यही यहां की नीति है.