बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकाें में 28 दिनों से नहीं हुई काेई मुठभेड़, वर्षाें बाद थमी गोलियों की आवाज

जगदलपुर : बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकाें में कई वर्षाें के बाद गोलियों की आवाज थम गई है। बस्तर में पिछले दो दशकों से चले आ रहे नक्सल संघर्ष में यह दौर

 

निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। सरकार ने भले ही नक्सलियाें के विरूद्ध औपचारिक

 

रूप से युद्धविराम की घोषणा नहीं की हो, लेकिन लगातार चल रहे मुठभेड़ाें के बीच यह पहली बार है, जब पिछले 28 दिनाे से काेई मुठभेड़ नहीं हुई है।

 

पुलिस-नक्सली मुठभेड़ों का गढ़ माने जाने वाले बस्तर में अब एक शांति स्थापना के लिए कई तरह से पहल की जा रही है। इसलिए अब नक्सलियों

 

को अपने साथियों के साथ निर्णय लेने में सहूलियत हो रही है और लगातार बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण का दाैर जारी है। बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने नक्सलियाें के विरूद्ध औपचारिक रूप से युद्धविराम के सवाल काे इंकार करते हुए कहा कि ऑपरेशन कभी भी बंद नहीं होता, शासन का पहले से भी निर्णय है कि हथियार छोड़कर नक्सली यदि मुख्य धारा में आना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है, लेकिन हथियार लेकर जनता के जान-माल का नुकसान करने का प्रयास यदि कोई करता है, तो उसका जवाब दिया जाएगा।

 

नारायणपुर जिले के महाराष्ट्र सीमा क्षेत्र के फरसबेड़ा और तोयमेटा के जंगल में 28 दिन पहले 23 सितंबर काे मुठभेड़ हुई थी, जिसमें 2.16 करोड़ रुपये के इनामी केंद्रीय समिति सदस्य राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी उर्फ गुड़सा उसेंडी उर्फ विजय और कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी उर्फ गोपन्ना उर्फ बुचन्ना काे ढेर कर दिया गया था। इसके बाद अब गोलियों की आवाज थम जाने से बस्तर संभाग में हथियार बंद नक्सलियाें के बड़ी संख्या में हथियार के साथ आत्मसमर्पण करने का रिकॉर्ड बन रहा है।

 

 

 

गृहमंत्री विजय शर्मा ने इसी महीने की 1 तारीख को कहा था कि हम आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सेफ कॉरिडोर देंगे, किसी को कोई खतरा नहीं है, बेखौफ होकर वापस आएं। गृहमंत्री के 20 दिन पुराने बयान के मायने अब स्पष्ट हो रहे हैं। साथ ही सरकार ने पहले

 

स्पष्ट किया था कि वह किसी तरह के हिंसा को बर्दाश्त नहीं करेगी, लेकिन जमीनी हालात

 

बता रहे हैं कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं है। नक्सल संगठन के भीतर वैचारिक मतभेद, संसाधनों की कमी और लगातार जारी सुरक्षा बलों के दबाव ने नक्सल संगठन की पकड़ कमजोर कर दी है। सरकार की नई रणनीति ऑपरेशन से ज्यादा संवाद अब असर दिखाने लगा है। पुलिस-नक्सल मुठभेड़ों का गढ़ माने जाने वाले

 

बस्तर में अब शांति स्थापना के लिए कई तरह से पहल की जा रही है। नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए सरकार अघाेषित सेफ कॉरिडोर दे रही है।

 

बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि नक्सलियों के लिए कोई सेफ कॉरिडोर की घोषणा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि विगत दिनों नक्सलियाें के केंद्रीय कमेटी के सदस्य रूपेश सहित बस्तर में 210 नक्सलियों ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया और हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्य धारा में लौटे हैं, सरकार ने उनका स्वागत किया और पुर्नवास की सुविधा प्रदान कर रही है। बस्तर संभाग में बचे हुए सक्रिय नक्सलियों से उन्होंने अपील करते हुए कहा कि अभी भी वक्त है, नक्सली मुख्य धारा में लौटते हैं, तो अच्छा होगा अन्यथा उनको गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। —————

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