एआईएडीएमके से निष्कासित पूर्व मंत्री के.ए. सेंगोट्टैयन ने विधायक पद से दिया इस्तीफा

चेन्नई : अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) से निष्कासित पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता के.ए. सेंगोट्टैयन ने बुधवार को अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने विधानसभा सचिवालय में स्पीकर अप्पावू को अपना त्यागपत्र सौंपा।

 

पिछले कई महीनों से सेंगोट्टैयन और एआईएडीएमके के महासचिव एडप्पाड़ी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) के बीच मतभेद चल रहे थे। यह विवाद उस समय और बढ़ गया जब उन्होंने 30 अक्टूबर को टीटीवी दिनाकरन और ओ. पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) के साथ “तेवर गुरु पूजा” कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके बाद ईपीएस ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया।

 

इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि सेंगोट्टैयन टीटीवी दिनाकरन के नेतृत्व वाली अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएसएसके) या द्वरिड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, बीते सोमवार को पत्रकारों की ओर से पूछे गए सवालों पर उन्होंने किसी भी दल में शामिल होने से जुड़ी अटकलों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

 

दरअसल, सेंगोट्टैयन तमिलनाडु के सबसे अनुभवी विधायकों में से एक हैं। वह अब तक 10 विधानसभा चुनावों में उतरे और 9 बार जीते। उन्होंने 1977 में पहली बार एआईएडीएमके के टिकट पर सत्यमंगलम से चुनाव जीता था। 1972 में एम.जी. रामचंद्रन के एआईएडीएमके गठन के बाद वे पार्टी के शुरुआती नेताओं में शामिल रहे। एमजीआर और बाद में जयललिता के विश्वस्त नेताओं में उनकी गिनती होती थी। एमजीआर की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल सेंगोट्टैयन की सक्रियता ने एआईएडीएमके में कई दशकों तक उनका प्रभाव बनाए रखा। अब तमिलनाडु की राजनीति में उनके अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

 

सेंगोट्टैयन का जन्म वर्ष 1948 में इरोड जिले के कुल्लम्पालयम में हुआ था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) से की थी, लेकिन 1972 में एम.जी.आर. द्वारा पार्टी गठन किए जाने के बाद वे उनसे जुड़ गए और एआईएडीएमके की प्रारंभिक गतिविधियों की नींव मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।

 

1975 में कोयम्बटूर में आयोजित आमसभा सम्मेलन को सफल बनाकर सेंगोट्टैयन ने एमजीआर की सराहना हासिल की। इस उपलब्धि ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शुमार किया। 1977 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पहली बार सत्यमंगलम सीट से जीत दर्ज की। इसके बाद 1980 से लेकर अब तक अधिकांश चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की, केवल 1996 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने लंबे समय तक पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और चुनावी रणनीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

एम.जी.आर. के निधन के बाद जब पार्टी दो गुटों में बंटी, तब सेंगोट्टैयन ने जयललिता का साथ दिया और उनके विश्वसनीय नेताओं में शामिल हो गए।

 

मौजूदा राजनीतिक स्थिति में सेंगोट्टैयन के इस्तीफे के बाद चर्चा है कि वे जल्द ही किसी नई राजनीतिक पार्टी में शामिल हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक उनके साथ डीएमके और अन्य दलों के नेताओं की लगातार बातचीत जारी है, जिससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि भविष्य में वे राजनीतिक तौर पर नया कदम उठाने जा रहे हैं।—————

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