नई दिल्ली। “वैश्वीकरण के दौर में लोक संस्कृति को बचाए रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन मीडिया के माध्यम से लोक संस्कृति को नई पहचान मिली है।” यह विचार पद्मश्री से अलंकृत लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के अपर महानिदेशक के.सतीश नंबूदिरीपाड भी मौजूद थे। ‘लोक संस्कृति एवं मीडिया’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अवस्थी ने कहा कि लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि अखबारों ने लोक संस्कृति को बचाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। मालिनी अवस्थी ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना भारत की लोक संस्कृति में समाहित है। “हिरणी और कौशल्या” का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि किस प्रकार लोकगीतों के माध्यम से त्यौहारों एवं उत्सवों में भी करुण प्रसंगों को याद किया जाता है और सबके हितों को ध्यान में रखा जाता है।
उन्होंने कहा कि हमारी पूरी संस्कृति वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसी हुई है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने उसका सरलीकरण करके लोकगीतों, छंदों और त्यौहारों के अनुरुप न केवल उसे अपनी जीवनशैली में ढ़ाला, बल्कि दायित्व के साथ इसे अगली पीढ़ी के हाथों में भी सौंपा। आज के युवाओं का कर्तव्य है कि पुरखों से मिली अपनी संस्कृति का अनुसरण करें और उसे जीवंत रखें। श्रीमती अवस्थी ने कहा कि आज जो लोक संस्कृति, लोकगीत, लोकगाथाएं हमारे सामने प्रचलित हैं, वे हमारे पूर्वजों के अथक प्रयासों का परिणाम हैं। हमारे पुरखों ने इन्हें कहीं परंपराओं के माध्यम से, तो कहीं लोकगीतों के रूप में संजोए रखा है। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती विष्णुप्रिया पांडेय ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संगीता प्रणवेंद्र ने किया। आईआईएमसी ने देश के प्रख्यात विद्वानों से विद्यार्थियों का संवाद कराने के लिए ‘शुक्रवार संवाद’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है।
Shaurya Times | शौर्य टाइम्स Latest Hindi News Portal