भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपनी स्थापना के बाद से ही देश को अंतिरक्ष के क्षेत्र में कई ऐसे मकाम दिए है, जिससे भारत की शक्ति का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। रविवार को इसरो ने अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाकर एक इतिहास रचा। भारतीय राकेट श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण यान PSLV C-42 ने दो ब्रिटिश उपग्रहों के साथ सफल उड़ान भरा। इस कामयाबी के साथ ही भारत उन देशों की श्रेणी में शामिल हो गया, जिसके पास विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने या भेजने की अपनी तकनीक और क्षमता मौजूद है। आइए जानते हैं इस उड़ान की खूबियां और भविष्य में इसरो की चुनौती।
33 हजार 500 करोड़ डालर: उपग्रह प्रक्षेपण का वैश्विक बाजार
दुनिया में विकास के साथ ही उपग्रह प्रक्षेपण का बाजार तेजी से वृद्धि हुई है। इसरो की इस उड़ान के बाद भारत भी अब इस खेल में प्रमुख खिलाड़ी बनने की दौर में शामिल हो गया है। इसराे इस बाजार की संभावनाओं को न सिर्फ तलाश रहा है, बल्कि सफलतापूर्वक अपने कदम लगातार आगे बढ़ा रहा है। हालांकि, भारत की हिस्सेदारी अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में अपेक्षा से बहुत ही कम है। लेकिन भारत क्रमिक रूप से और सही दिशा में इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
उपग्रह प्रक्षेपण के वैश्विक बाजार की बात करे तो ये फिलहाल 33 हजार 500 करोड़ डालर के पास है, लेकिन भारत की हिस्सेदारी इसमें एक फीसद से भी कम है। भारत के अंतरिक्ष के क्षेत्र में व्यावसायिक लेखाजोखा एन्ट्रिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड के हाथों में है, जो भारत सरकार की एक पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है। एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन भारत की अंतरिक्ष व्यापार कंपनी है। एन्ट्रिक्स का प्रशासनिक नियंत्रण अंतिरक्ष विभाग के पास है।
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