यह कौन सा दाव कौन सा पेंच ?

राघवेन्द्र प्रताप सिंह : खेल और खेल भावना, इसे लेकर इन्डोर से लेकर आउट डोर तक खासी चर्चा होती रही है और भविष्य में भी होती रहेगी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब खिलाड़ियों ने एकजुट होकर अपने खेल से संबंधित संघ के खिलाफ मोर्चा खोला हो। वास्तव में यह स्थिति तभी आती है जबकि खिलाड़ियों के खेल संघों के साथ मतभेद उभरते हैं और फिर यही टकराव और उन्हें आन्दोलन करने को प्रेरित करते हैं। दिल्ली के जंतर मंतर पर इन दिनों भारतीय पहलवानों द्वारा किया जा रहा धरना एवं प्रदर्शन खासा चर्चा में है। इस धरने में कई चीजें उल्लेखनीय हैं। जैसे-ऐसा कभी नहीं देखने को मिला कि तीन ओलंपिक मेडलिस्ट और दो विश्व चैंपियनशिप मेडल विजेता पहलवान धरने पर बैठे हों। अब सवाल यह उठेगा कि आखिर पहलवानों ने आन्दोलन की राह को क्यों आत्मसात किया ? दरअसल, ये लोग ना केवल कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर ‘तानाशाही रवैए’ का आरोप लगा रहे हैं, बल्कि उनके खिलाफ यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं।

यह सर्वविदित है कि बीते करीब एक दशक भारतीय पहलवानों ने कई मंचों पर तिरंगे का न सिर्फ मान रखा बल्कि पदक भी अपनी झोली में डाला। 2008 बीजिंग ओलंपिक्स में सुशील कुमार के ऐतिहासिक कांस्य पदक जीत के बाद भारत में कुश्ती का स्तर लगातार बेहतर होता चला गया। फिर 2012 के लंदन खेलों में सुशील कुमार ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता। इन उपलब्धियों के बाद अब पहलवानों का ना सिर्फ सम्मान बढ़ा बल्कि उन्हें संघ के अलावा कामर्शियल विज्ञापनों के जरिए अर्थलाभ भी होने लगा। 2016 में रियो ओलंपिक में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक जीत कर ये सिलसिला जारी रखा। फिर एक दौर आया, जब बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट ने विश्व चैपियनशिप जैसे बड़े टूर्नामेंट्स में मेडल जीतने शुरू किए। शायद ही कोई मुक़ाबला हो, जहाँ इन दो खिलाड़ियों ने मेडल ना जीते हों। कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियाई खेल या एशियाई चैंपियनशिप, कामयाबी लगातार इन्हें मिलती रही। पहलवानों की कामयाबी को देखते हुए कॉरपोरेट जगत ने भी इस खेल में निवेश किया और प्रो रेसलिंग लीग जैसी प्रतियोगिता भारत में शुरू हुई। साफ है कि इससे खिलाड़ियों को आर्थिक मदद के अलावा विदेशों में जाकर तैयारी करने के रास्ते खुलने लगे और विदेशी कोचों के साथ ट्रेनिंग करने का मौका भी मिलने लगा। पहलवानों के लिए यह मौका किसी संजीवनी से कम नहीं था। उधर सरकार ने भी खिलाड़ियों की मदद करना शुरू किया।

लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ को ग़ैर-सरकारी संगठनों का पहलवानों के साथ ‘डायरेक्ट कॉन्टैक्ट’ गले से नहीं उतरा। वहीं डब्ल्युएफआई ने 2022 में इस तरह की सारी मदद पर रोक लगा और एलान कर दिया कि उसे ग़ैर सरकारी संस्थानों का हस्तक्षेप पसंद नहीं और ये संस्थान अब पहलवानों की मदद की डब्ल्युएफआई अनुमति के बिना नहीं कर सकते। जाहिर है कि इसके बाद पहलवानों को मिलने वाली सुविधाएँ जैसे मनपसंद विदेशी कोच, फिजियो और विदेशों में ट्रेनिंग भी बंद हो गई। उधर, बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और रवि दहिया भारतीय कोचों से साथ तैयारी कर रहे थे। लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें संस्थानों से मिलने वाली मदद बंद होने और मनचाही ट्रेनिंग करने की आज़ादी ख़त्म होने का मलाल भी था। उस अनुबंध के तहत ए-ग्रेड के पहलवानों को, जिनमें बजरंग और विनेश शामिल थे, 30 लाख रुपए सालाना मिलने थे, लेकिन कुश्ती महासंघ ने 2-3 त्रैमासिक किश्तों के बाद ये पैसा देना भी बंद कर दिया। ऐसे में अब खिलाड़ियों को ना तो प्राइवेट स्पॉन्सरशिप से पैसे मिल रहे थे और ना ही फेडरेशन उन्हें अनुबंध के पैसे दे रहा था। जिसके बाद कई खिलाड़ी ने कथित रुप से तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए नया आरोप गढ़ा कि जब भी ट्रायल्स का आयोजन होता है, तो उसका दिन और समय अक्सर उनके हिसाब से तय होता है। एक आरोप ये भी है कि नेशनल चैंपियनशिप के लिए जब खिलाड़ी जुटते हैं, तो वहाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है। यहां इस बात का उल्लेख करना उचित होगा कि कुश्ती में हरियाणा प्रांत के पहलवानों का एक तरह से बोलबाला है।

खैर, दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई दिग्गज पहलवान भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। पहलवानों का आरोप है कि बृजभूषण ने कई महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न किया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले में बृजभूषण के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की हैं। इस प्रदर्शन में साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया जैसे कई बड़े पहलवान शामिल हैं। दरअसल, बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश के गोंडा में रहने वाले दबंग नेता हैं और पूर्वांचल की राजनीति में उनकी अच्छी पकड़ है। यूपी की कैसरगंज लोकसभा से वर्तमान में वह सांसद हैं और छह बार लोकसभा सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। बृजभूषण की छवि एक कट्टर हिंदूवादी के नेता के तौर पर मानी जाती है।

बृजभूषण को किशोरावस्था से ही कुश्ती करने का शौक था और स्थानीय स्तर पर कुश्ती लड़ने जाते थे। यानि वह स्वयं पहलवान हैं और उन्हें पहलवानी के साथ-साथ अब राजनीति के भी सारे दांव-पेंच भरपूर आते हैं। आगे चलकर बृजभूषण ने छात्र राजनीति से अपने सियासी करियर की शुरूआत की। 1991 में राम मंदिर के आंदोलन के दौरान उन्हें भाजपा की ओर लोकसभा का टिकट मिला और उन्होंने जीत दर्ज की। राम मंदिर आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत 40 लोगों को अभियु्क्त बनाया गया। जिसमें बृजभूषण शरण सिंह का नाम भी शामिल था। इस आंदोलन के बाद बृजभूषण की सियासी ताकत में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई और वह तेजतर्रार नेता बनकर उभरे। इसके बाद उन्होंने 2004 में लोकसभा चुनाव जीता। लेकिन 2009 में बृजभूषण ने भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया और एक बार फिर अपनी सीट से जीत दर्ज की। हालांकि 2014 में वो एक फिर भाजपा में शामिल हो गए और कैसरगंज से सांसद बने। इसके बाद वह लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। बृजभूषण शरण सिंह 2011 कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं, 2019 में वह तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए हैं। हालांकि कुछ ही दिनों में इनका इस पद से कार्यकाल समाप्त हो रहा है।

उधर, महिला पहलवानों का ने अपने महासंघ के अध्यक्ष पर संगीन आरोप लगाये हैं। विनेश का कहना है कि जंतर मंतर पर बैठने से तीन-चार महीने पहले, हम एक अधिकारी से मिले थे, हमने उन्हें सब कुछ बताया था कि कैसे महिला एथलीटों का यौन उत्पीड़न और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, जब कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो हम धरने पर बैठ गए। वहीं बजरंग पूनिया के मुताबिक डब्ल्यूएफआई मनमाने ढंग से चलाया जा रहा है और जब तक डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष को हटाया नहीं जाता तब तक यहां बैठे खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेंगे हमारी लड़ाई सरकार या भारतीय खेल प्राधिकरण से नहीं है।

हम डब्ल्यूएफआई के विरुद्ध आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे। यह भारतीय कुश्ती को बचाने की लड़ाई है। उधर, बृजभूषण ने कुश्ती संघ से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है, यह कहते हुए कि इसका मतलब यह होगा कि उन्होंने आरोपों को स्वीकार कर लिया है। उनका कहना है कि अगर मैं इस्तीफा देता हूं तो इसका मतलब है कि मैंने उनके आरोप को स्वीकार कर लिया है, मेरा कार्यकाल खत्म होने वाला है। जब तक नई पार्टी नहीं बनती और सरकार आईओए कमेटी का गठन नहीं करती, तब तक उस कमेटी के तहत चुनाव होते रहेंगे और उसके बाद मेरा कार्यकाल खत्म हो जाएगा। उधर, धरना दे रहे पहलवान बृज भूषण शरण सिंह के काम के तरीके को लेकर तो सवाल उठ ही रहे हैं, खिलाड़ियों ने यौन शोषण के गंभीर आरोप भी लगाए हैं। यहां गौरतलब यह है कि साक्षी मालिक डब्ल्यूएफआई की उस समिति की सदस्या हैं, जो यौन शोषण जैसे मुद्दों को देखती है। इस समिति के पाँच सदस्य हैं। विनेश फोगट ने फिलहाल उन महिला पहलवानों के नाम नहीं बताए हैं, जिनका कथित तौर पर यौन शोषण हुआ है। खेल मंत्रालय ने इस मामले में भारतीय कुश्ती महासंघ से जवाब मांगा है। बृज भूषण शरण सिंह ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने उल्टे खिलाड़ियों पर ही सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि एसोसिएशन में अपने पसंद के लोगों को जगह नहीं मिलने से हरियाणा के खिलाड़ी नाखुश हैं। अब देखना यह है कि इस पूरे प्रकरण में ऊंट किस करवट बैठता है। बृज भूषण शरण सिंह का जो चरित्र और तेवर है, ऐसे में वह आसानी से हथियार डालने वाले नहीं हैं। उधर, धरने पर बैठे पहलवान कौन सा ‘दांव’ चलकर अपने ही कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष को ‘चित्त’ कर पायेंगे, यह आने वाला समय ही बतायेगा।

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