आज के मुंशतिर से बेहतर थे कल के रज़ा

नवेद शिकोह
नवेद शिकोह

आज नफरत फ़ैलाने, दूरियां पैदा करने और भावनाएं भड़काने का सुपारी किलर बन गया है छोटा और बड़ा पर्दा। आए दिन टीवी डिबेट में धार्मिक तकरार के बीच जूतन-लात की तस्वीरें देखने को मिल ही जाती हैं। कोई दो-चार महीने भी खाली नहीं जाते जब किसी नई फिल्म पर हंगामा ना मचे। अब हनुमान जी पर बनी फिल्म आदिपुरुष में मनोज मुंशतिर के डायलॉग्स भावनाओं को आहत कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस फिल्म को लेकर पैदा हुई कंट्रोवर्सी ट्रेंड कर रही है। एक जमाना वो भी था जब अस्सी के दशक में टीवी पर दिखाए जाने वाला रामायण और फिर महाभारत धारावाहिक देश के साम्प्रदायिक सौहार्द और गंगा जमुनी तहजीब का रंग जमा देता था।

हिन्दुओं को तो छोड़िए मुसलमान के मन में भी श्री राम और कृष्ण जैसे चरित्र बस गए थे। धारावाहिक देख कर गैर मुसलमानों के मन में भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी और श्री कृष्ण के प्रति लगाव बढ़ा था। जाति-धर्म, क्षेत्र तो छोड़िए वन प्राणियों से भी श्री राम का स्नेह देखकर मुसलमान भी सहसा इस तरह अपना जज्बात-ए-ख्याल पेश करते थे-
माना श्री राम मुसलमानों के नहीं भगवान हैं। पर वो सबकी प्रेरणा है, इंसानियत के पैरोकार हैं, रिश्ते निभाने का सलीका सिखाने वाला दिल को छूने वाला मोहब्बत फैलाने वाला किरदार है। रामायण में श्री राम के चरित्र के साथ महाभारत में श्रीकृष्ण के उपदेश भी गैर सनातनियों का भी मार्ग प्रशस्त करते थे। टीवी के पर्दे ने राम, कृष्णा, सीता मइया और हनुमान को ग़ैर सनातनियों के भी दिल में उतार दिया था।

शंकरसुवन, पवनपुत्र, बजरंगी, हनुमान जी की महत्ता इसलिए अहम है क्योंकि उनका चरित्र बताता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी की भक्ति मात्र कितनी शक्ति देती है। धर्म हो या आजादी की लड़ाई, या फिर समरसता और अखंडता क़ायम करने की कोशिश हो। कला,साहित्य और संवाद किसी भी क्रान्ति को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अस्सी के दशक में रामानंद सागर का टीवी फिक्शन रामायण और बीआर चौपड़ा का धारावाहिक महाभारत लोकप्रियता का आलम ये था कि ये धारावाहिक मुस्लिम समाज के भी दिलों दिमाग पर छा गया था। रामायण और महाभारत ने सनातन धर्म की आस्था और विश्वास की क्रांति सी पैदा कर दी थी।

रामायण दूरदर्शन की कामयाबी का मील का पत्थर बन गया था। कांग्रेस सरकार के दौरान दूरदर्शन ने पहली बार किसी धार्मिक ग्रंथ पर आधारित रामायण की कहानी को एप्रूव किया था। इस फिक्शन के जिन संवादों के जरिए श्री राम के मर्म को इंसानियत पसंद समाज के दिलों में उतारा था। महाभारत धारावाहिक की पटकथा बीआर चौपड़ा ने किसी सनातनी लेखक से नहीं लिखवाया था। राही मासूम रज़ा ने महाभारत की आत्मा, मर्म और श्री कृष्ण के उपदेशों को पटकथा में पिरोया था।

लेकिन दुर्भाग्यवश आज गंगा-जमुनी तहज़ीब की हमारी गौरवशाली विरासत को किसी की नज़र लग गई है। भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र को दिलों में उतारने वाले राही मासूम रज़ा हिन्दू माइथालॉजी को दिल की गहराइयों से महसूस कर सकते थे। लेकिन आज पक्के सनातनी होने का बार-बार दावा करने वाले संवाद लेखक मनोज मुंशतिर भी शायद आज सनातनियों की भावनाओं को नहीं समझ पाए हैं। रामायण के प्रसंगों और हनुमान के चरित्र को चरितार्थ करते हुए उन्होंने जिन फूहड़ संवादों का मुजाहिरा किया है वो आहत करने वाले हैं।

सोशल मीडिया में किसी ने लिखा है- मनोज जी आप हिन्दू माइथालॉजी पर कुछ लिखने से पहले भले ही जूतू-चप्पल उतारें या ना उतारें पर लिखते समय महाभारत के पटकथा लेखक राही मासूम रज़ा साहब जैसों की सामने एक तस्वीर ज़रूर रख लिया कीजिए।

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